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पेपर लीक एवं परीक्षा निरस्तीकरण के परेशान युवा-शीला

  • वर्तमान समय में पेपर लीक की घटनाएं बहुत अधिक बढ़ गई है जो आने वाली पीढ़ी के भविष्य के लिए खतरनाक हैं। समय रहते यदि ऐसी घटनाओं को नहीं रोका गया तो यह सरकार के समक्ष बहूत बड़ी चुनौती खड़ी कर सकती है। सीबीएसई व पीएसईबी नीट जैसे महत्वपूर्ण परीक्षा के पेपर लीक की घटनाओं ने देश के हर नागरिक को झकझोर कर रख दिया हैं। इस समस्या पर काबू पाने के लिए उचित तकनीक का इस्तेमाल आवश्यक है। आखिर पेपर लीक का कारण क्या है? सामान्यतः यह देखा गया है कि विद्यार्थियों के साथ-साथ उनके अभिभावक भी चाहते हैं की किसी तरह बच्चा पास हो जाए। इसके लिए वे कुछ भी करने को तैयार रहते हैं।
    हमारी परीक्षा प्रणाली में यह देखा गया है की पेपर सेट तैयार होने से लेकर परीक्षा केंद्रों पर उनके वितरण तक सैकड़ों लोग शामिल रहते हैं। आज भी पेपर सेट करने वाला शिक्षक हाथ से लिखता है। फिर किसी कर्मचारी द्वारा कंप्यूटर पर टाइप किया जाता है। प्रश्नपत्र बोर्ड के पास जाने के बाद ¨प्रिटिंग¨के लिए जाता है। ¨प्रिटिंग¨के बाद पैकेजिंग होती है। इस प्रक्रिया में कोई एक कमजोर कड़ी दवाब या पैसे के लालच में पेपर लीक जैसा गुनाह कर बैठती है। पेपर सेट होने और उसके परीक्षा केंद्र में वितरित होने के दौरान कम से कम व्यक्तियों का दखल होगा तो लीक होने की संभावना न के बराबर होगी। हालांकि इसके लिए डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने की जरूरत है।असल में ऐसी वारदातें न केवल बेरोजगार युवा परीक्षार्थियों तथा सरकार को आर्थिक व मानसिक नुकसान पहुंचाती हैं, वरन सरकार की साख और विश्वसनीयता भी प्रभावित होती है। परीक्षाओं की विश्वसनीयता पर तो सवाल उठते ही हैं। परीक्षाओं की विश्वसनीयता लाने और अपनी साख को बचाए रखने के लिए जरूरी है कि सरकार नियम-कानून सख्त कर दोषियों पर न केवल जुर्माने की राशि करोड़ों में करें, बल्कि कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। इसके साथ ही उच्च स्तर पर संबंधित परीक्षा विभाग में किसी एक की जवाबदेही भी सुनिश्चित करनी होगी, ताकि युवा बेरोजगारों की जिंदगी से खिलवाड़ करने वाले बेदाग न निकल पाएं। तभी युवाओं का भविष्य सुरक्षित हो सकेगा।
    वर्तमान समय बच्चों सहित पूरे परिवार का ध्यान केवल बच्चों के अंकों के उतार-चढ़ाव पर ही रहता है। 99%वाला बच्चा भी इसलिए उदास हो जाता है कि किसी और ने 99.1 अंक लाकर प्रथम स्थान प्राप्त किया है,इसलिए खुशियों के माहौल में संतुष्टि नदारद रहती है।
    हम समझ ही नहीं पा रहे कि हम अपने बच्चों को जीवन की किस दौड़ में शामिल करा रहे हैं। जहां बहुत सारे बच्चे परिणाम आने के पहले और बाद में आत्महत्या करने की कोशिश करते है। कुछ के तो आत्महत्या के बाद आने वाले परीक्षा परिणाम में बहुत अच्छे नंबर भी होते थे जिन्हें देख उनके माता-पिता जीवन भर का दुःख सहन करने के लिए मजबूर हो जाते है।
    पहले के समय में आस-पड़ोस वाले उन बच्चों का उदाहरण देकर दूसरे बच्चों को मोटिवेट किया करते थे ताकि वो कोई गलत कदम न उठाए, जिसका परिणाम होता था कि बच्चे अंकों की दौड़ में जीवन में संतुलन बनाना सीख लेते थे और बड़ी परीक्षाओं में फेल होने पर भी जीवन की परीक्षा में वे पास हो जाते थे। तब कोटा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि विभिन्न स्थानों से इतनी बड़ी संख्या में हृदय विदारक खबरे कम ही आती थी तब सबसे संवेदनशील पड़ाव 10-12 वीं ही हुआ करते थे।

ऐसा नहीं है की आज के माता पिता बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रखते हैं। बस नंबर और कैरियर की प्रतिस्पर्धा उनमें ठूस-ठूस कर भर रहे हैं जो बच्चों को खुद को समझने, समझाने का मौका नहीं देते।आज के दौर में तनाव एक ऐसी समस्या है जो बच्चों को तेजी से अपनी आगोश में ले रहा है।इस स्थिति में बच्चों को यह समझाना बेहद जरूरी है कि नंबरों के इतर भी खूबसूरत दुनिया है। कम अंकों वाले भी दुनिया में बड़ी उपलब्धियां हासिल करते हैं। अपने परिवार और देश का नाम रौशन करते हैं। तनाव का हल आत्महत्या नहीं बल्कि मजबूती से खुद को नई चुनौतियों के लिए तैयार करना होता है। खुद को तनाव से बाहर निकालना होता है।
बच्चें जैसे-जैसे बड़े होते हैं उनके मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल अति आवश्यक हो जाती है। माता पिता को यह समझना जरूरी हो जाता है कि हर बच्चे में कोई ना कोई विशेष गुण होता है, कुछ बच्चे पढ़ने में अच्छा करते हैं तो कुछ का मन पढ़ने में बिल्कुल नहीं लगता उन्हें कुछ और करना होता है इस पर नंबरों का दबाव किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है।पेपर लीक होने या परीक्षा निरस्तीकरण होने पर मेहनत करने वाले बच्चे हताश हो जाते हैं बच्चों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इससे बच्चे मानसिक रूप से परेशान हो जाते हैं जो बच्चों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर हो सकता है। बच्चे ही देश का भविष्य हैं इनके मानसिक स्तर का मजबूत होना देश हित के लिए बेहद जरूरी है। भारत युवाओं का देश है और हर बच्चे में कुछ खास गुण जन्मजात होते हैं जिन्हें पहचान उन्हें आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करने का काम माता पिता और शिक्षकों का है।
किसी भी प्रतियोगी परीक्षा के लिए जी तोड़ मेहनत करने के पश्चात बच्चों को यह मालूम होता है कि यह परीक्षा निरस्त हो गया है तो उनमें निराशा घर कर जाती है। हर बच्चा प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से अपने मंजिल पर पहुंच कर नंबर वन बने रहने की इच्छा रखता है और यही इच्छा उसके अंदर जुनून को भर देता है। यह चाहत ही उन्हें और अधिक मेहनत करने के लिए प्रेरित करता है और जीवन के सभी प्रकार के आनंद से वो वंचित हो कर सतत परीक्षा की तैयारी में अपने समय को व्यतीत करते हैं। अपने समाज परिवार से दूर जाकर वह कोचिंग करता है और परीक्षा की तैयारी करता है।लेकिन विडंबना यह है कि समाज का एक तबका अपने स्वार्थ और लालच की अंधी दौड़ में दौड़ रहा है, जहाँ उसने सिर्फ अपने और अपने स्वार्थ के लिए सोचना और करना शुरू कर दिया है। उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसका व्यवहार और भ्रष्ट आदतें दूसरों के लिए कितनी परेशानियाँ खड़ी कर देती हैं। आज का भारत युवा भारत है, जहाँ युवा वर्ग अपने भविष्य को लेकर दिन-रात मेहनत कर रहा है और सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ने के लिए जी-तोड़ प्रयास कर रहा है। उसकी इस मेहनत में उसका परिवार और उसके अपने हर वक्त उसके साथ खड़े रहते हैं, चाहे वह कितना ही गरीब क्यों न हो। गरीब और मेहनत कश परिवार भी अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस ऑफिसर बनाना चाहते हैं और इसके लिए वे हर संभव और अथक प्रयास करते हैं। परंतु आज वे हारने लगे हैं क्योंकि समाज के कुछ लोगों के हाथ में ही पूरी शक्ति और सारा धन सिमट गया है।
आज के समय को प्रतियोगिता का समय कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा।जब हम ध्यान से देखते हैं, तो यह साफ नजर आता है कि किसी आम इंसान के लिए किसी अच्छी नौकरी पर पहुंचना और तरक्की करना मुश्किल होता जा रहा है। आज विभिन्न परीक्षाओं मे बहुत सारी कमियां और परेशानियां दृष्टिगोचर हो रही है। आज न केवल राज्य बल्कि देश स्तर पर भी अगर कोई परीक्षा आयोजित होती है, तो वह पूरी तरह से बिना भ्रष्टाचार, बिना किसी शक, और बिना किसी परेशानी के आसानी से पूरी क्यों नहीं होती। पेपर लीक होने के कारण सही प्रतिभा का चयन नहीं हो पा रहा है। इससे हर वर्ग के लोगों को बराबरी से आगे बढ़ने का मौका नहीं मिलता।यह केवल सरकार की विफलता नहीं है, यह हम सबकी कमी है। हम स्वार्थ सिद्धि में इतने अंधे हो गए हैं , लगता है पूरा सिस्टम भ्रष्टाचार में डूब गया है, जिससे सिर उठाना मुश्किल हो रहा है।कोई भी राज्य पूरी तरह से परीक्षाएँ आयोजित नहीं कर पा रहा है। इसके लिए सिस्टम को बदलने की जरूरत है। अगर किसी छात्र के मन में कोई शंका है, तो उसे दूर करना विभाग की और सरकार की जिम्मेदारी है। क्या एक परीक्षा आयोजित करना और उसे सफलतापूर्वक संपन्न करना सचमुच इतना कठिन काम है? अगर यह नहीं हो पा रहा है, तो या तो सिस्टम में बहुत खामियाँ हैं या भ्रष्टाचार इतना गहरा गया है कि लोग उससे बाहर नहीं निकालना चाहते।
आज पीएससी, यूपीएससी, नीट और जेईई की तैयारी करने के लिए बच्चे और उनके परिवार अपना सब कुछ न्योछावर कर रहे हैं। वे अपने शहर और गाँव छोड़कर दूसरे जगहों पर जाकर दिन-रात मेहनत करते हैं। कितने बच्चे तनाव में चले जाते हैं, कितने बच्चे आत्महत्या जैसे कदम भी उठा लेते हैं। और सरकार एक परीक्षा सही तरीके से संचालित नहीं कर पाती। ऐसी सरकार, ऐसा सिस्टम, और ऐसी प्रणाली का क्या फायदा? शिक्षा ही तो किसी देश विकास का प्रमुख आधार होती है। अगर यह सही नहीं होगा तो विकास ही कल्पना करना भी व्यर्थ है।एक और जहां हम एक विकसित भारत की बात करते हैं, वही अपने बच्चों को एक परीक्षा बिना भ्रष्टाचार, बिना किसी शक और बिना किसी गलती के नहीं दे सकते। वहाँ हम उनके उज्जवल भविष्य की, भारत के गर्व की, और दुनिया के सामने एक उदाहरण बनने की मिसाल की बात कैसे कर सकते हैं? अगर हम भारत को विकसित बनाना चाहते हैं तो सबसे पहले शिक्षण व्यवस्था को सुधारना होगा, इसमें हमें उन कमियों को ढूँढना होगा जो शिक्षा के विकास में बाधक है। भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाना होगा। अब समय आ गया है कि हम इसके केंद्र पर काम करें और इसके लिए सरकारों को निश्चय करना होगा।
तानाशाही और अराजकता से विद्रोह उत्पन्न होता। आजकल जिस प्रकार से परीक्षाओं में गड़बड़ियाँ हो रही हैं, अगर ऐसा ही चलता रहा तो बच्चे विद्रोह ही करेंगे । फिर कोई भी सरकार हो, क्या फर्क पड़ता है उन्हें? और उन्हें हक है अपने भविष्य के बारे में सोचने का और निर्णय लेने का, अब वक्त आ गया है सरकारों को, परीक्षा विभाग को, और बड़े-बड़े संस्थानों को इस बारे में विचार करना चाहिए। सम्यक विचार करने के बाद एक संतुलित और पूरी तरह से निष्पक्ष समाधान देना चाहिए। तभी हम आगे के भविष्य के बारे में कुछ बेहतर सोच सकते हैं।

डाक्‍टर शीला शर्मा
बिलासपुर, छत्‍तीसगढ़

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