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शिवलोत्री महादेव मंदिर पिंजौर-किरण बाला

चंडीगढ़ से लगभग 25 किलोमीटर दूर शिवलोत्री महादेव मंदिर जो कि पंचकुला के पिंजौर शहर में स्थित है अपने आप में एक अनूठा मंदिर है । पिंजौर का प्राचीन नाम पंचपुर था जो उस समय राजा विराट की नगरी हुआ करता था। शिवालिक की पहाड़ी की तलहटी में बना हुआ यह एक ऐसा पुरातन मंदिर है जो बाहर के लोगों के लिए अभी भी अज्ञात है। कहा जाता है कि यह मंदिर 5000 साल पहले पांडवों द्वारा स्थापित किया गया है। अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने इस क्षेत्र में अपना समय व्यतीत किया था। पांडवों द्वारा बनाया गया द्रौपदी कुंड, चण्डी मंदिर, हनुमान मंदिर इत्यादि स्थान इस बात की गवाही देते हैं।
पिंजौर बस स्टैंड से इस मंदिर की दूरी 2 किलोमीटर है। इस मंदिर तक पहुँचने के लिए चार पहिया वाहन को नही ले जाया जा सकता यदि ले भी गए तो उसे मध्य में ही छोड़ना पड़ता है क्योंकि वहाँ तक पहुँचने का मार्ग एक तो सँकरा है तो दूसरे कच्चा और पथरीला है। दोपहिया वाहन द्वारा भी बड़ी सावधानी से जाना पड़ता है । कच्चा और ढलान वाला मार्ग होने के कारण अधिकतर लोग वहाँ पैदल जाना ही पसंद करते हैं। यदि आप ट्रैकिंग के शौकीन हैं तो आपके लिए यह अच्छा विकल्प हो सकता है।मार्ग में चलते हुए आपको ऐसा आभास होगा कि आप जंगल के मध्य से गुजर रहे हैं।
प्राकृतिक नजारे का आनंद उठाते हुए आप बिना किसी कठिनाई के वहाँ पहुँच सकते हैं। किंवदंतियों के अनुसार यदि किसी को मार्ग में सर्प के दर्शन हों जाएं तो वह भाग्यशाली होता है। इस सर्प का संबध वे सीधे तक्षक से जोड़ते हैं। सँकरे और गुफा युक्त मार्ग से होकर जब हम वहाँ पहुंचते हैं तो हमें पहाड़ियों के मध्य से निकलने वाली कौशल्या नदी के दर्शन होते हैं। वर्षा ऋतु में इसे पार करना थोड़ा कठिन होता है क्योंकि नदी के उस पार पहुँचने के लिए कोई स्थाई पुल नहीं है।
मंदिर के समीप ही पहाड़ी में से निकलने वाला प्राकृतिक झरना है मानो वह स्वयं शिवलिंग का जलाभिषेक कर रहा हो । इस झरने की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसके पास जाकर जितनी ऊँची आवाज़ में ऊँ नमः शिवाय बोला जाता है उतनी ही तेजी से यह बहता है। यहाँ के पुजारी के अनुसार इस स्थान को भीम गोडा भी कहा जाता है ।
उस समय जब पाण्डव वन – वन भटक रहे थे तब पानी की उपलब्धता हेतु महाबली भीम ने अपने गोडे से जल उपलब्ध करवाया था। पूरा एक वर्ष व्यतीत करते हुए उन्हें प्रतिदिन एक बावड़ी (सीढ़ीदार कुँए )का निर्माण करना होता था जो कि सुरक्षा की दृष्टि से उपयुक्त था कि कहीं कोई इसमें विष न मिला दे । इस प्रकार इस क्षेत्र में 365 बावड़ियो का निर्माण हुआ जिनमें से आज भी 14 से 15 शेष हैं जिनमें अभी भी जल है। द्रौपदी कुण्ड के अलावा यहाँ अर्जुन कुण्ड भी है जहाँ स्नान करने से चर्म रोग सही होते हैं। माता कुंती के कहने पर ही भीम ने पूजा अर्चना हेतु इस शिवलिंग की स्थापना की थी।
शिवरात्रि पर तो यहाँ की शोभा देखते ही बनती है। वर्ष में सबसे ज्यादा भीड़ झ्न दिनों में ही होती है। इस दिन यहाँ विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। बाकी के दिनों में यहाँ का वातावरण शांत और मनोरम होता है। यह प्राचीन मंदिर आज भी लोगों के लिए भक्ति एवं आस्था का प्रतीक है । यदि आप कभी चण्डीगढ़ या शिमला घूमने आएं तो पिंजौर अवश्य आएं । यहाँ न केवल पांडवों द्वारा निर्मित मंदिर ही हैं अपितु 17 वीं शताब्दी का मुगल शैली में निर्मित एक बहुत ही सुंदर उद्यान भी है जिसे पिंजौर गार्डन के नाम से जाना जाता है।

किरण बाला ( चण्डीगढ़ )

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