छत्तीसगढ का जांजगीर चांपा क्षेत्र में भी भगवान विष्णु का एक अधूरा मंदिर है। यह मंदिर बिलासपुर से करीब 60 मील दूरी पर स्थति है। इस मंदिर के अधूरा रहने के पीछे माना जाता है कि शिवरीनारायण मंदिर और जांजगीर मंदिर के निर्माण के बीच एक प्रतियोगिता शुरू हुई और जो मंदिर पहले बनता उसी मंदिर में भगवान विष्णु पधारेंगे। शिवरीनारायण मंदिर पहले बन गया और जांजगीर मंदिर को अधूरा छोड़ दिया गया था। स्थानीय स्तर पर इस मंदिर को नकटा मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर लाल मिट्टी की ईंटो से बना है। एक अन्य कथा के अनुसार इस मंदिर निर्माण की प्रतियोगिता में पाली के शिव मंदिर को भी शामिल किया था। मंदिर के पास मौजूद तालाब के बारे में कहा जाता है कि भीम ने पांच बार फाबड़ा चलाकर खोदा था।छत्तीसगढ़ के कल्चुरी नरेश जाज्वल्य देव प्रथम ने भीमा तालाब के किनारे 11 वीं शताब्दी में एक मंदिर का निर्माण करवाया था। यह मंदिर भारतीय स्थापत्य का अनुपम उदाहरण है। ये मंदिर पूर्वाभिमुखी है, और सप्तरथ योजना से बना हुआ है। इस मंदिर की खासियत ये है कि यहां पर शिखर हीन विमान मात्र ही मौजूद है। गर्भगृह के दोनो ओर दो कलात्मक स्तंभ है जिन्हे देखकर यह आभास होता है कि पुराने समय में मंदिर के सामने महामंडप निर्मित था, परन्तु अब उसके अवशेष ही रह गए हैं।मंदिर के चारों ओर अत्यन्त सुंदर एवं अलंकरणयुक्त प्रतिमाये बनाई गई हैं। छत्तीसगढ के किसी भी मंदिर मे रामायण से सम्बंधित इतने दृश्य कहीं नहीं मिलते जितने इस विष्णु मंदिर में हैं। इतनी सजावट के बावजूद मंदिर के गर्भगृह में कोई मूर्ति नहीं है। आज तक यह मंदिर सूना है और एक दीप के लिये तरस रहा है।
इस मंदिर के निर्माण से संबंधित अनेक जनुश्रुतियां प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक दंतकथा के अनुसार एक निश्चित समयावधि जिसे कुछ लोग इस छैमासी रात कहते हैं, में शिवरीनारायण मंदिर और जांजगीर के इस मंदिर के निर्माण में प्रतियोगिता हुई बतायी गई है। कहते हैं कि भगवान नारायण ने घोषणा की थी कि जो मंदिर पहले पूरा होगा, वे उसी में प्रविष्ट होंगे। शिवरीनारायण का मंदिर पहले पूरा हो गया और भगवान ँनारायण उसमें प्रविष्ट हुए। इस तरह जांजगीर का यह मंदिर सदा के लिए अधूरा छूट गया। एक अन्य दंतकथा महाबली भीम से जुड़ी भी प्रचलित है। कहा जाता है किंवदंती के अनुसार भीम को इस मंदिर का शिल्पी बताया गया है। इसके अनुसार एक बार भीम और विश्वकर्मा में एक रात में मंदिर बनाने की प्रतियोगिता हुई। तब भीम ने इस मंदिर का निर्माण कार्य आरम्भ किया। मंदिर निर्माण के दौरान जब भीम की छेनी-हथौड़ी नीचे गिर जाती तब उसका हाथी उसे वापस लाकर देता था। इस प्रकार कई बार हुआ, लेकिन आखिरी बार भीम की छेनी पास के तालाब में चली गयी, जिसे हाथी वापस नहीं ला सका और सवेरा हो गया। भीम को प्रतियोगिता हारने का बहुत दुख हुआ और गुस्से में आकर उन्होंने हाथी के दो टुकड़े कर दिया। इस प्रकार मंदिर अधूरा रह गया। आज भी मंदिर परिसर में भीम और हाथी की एक खंडित प्रतिमा है।
बढ़िया जानकारी 🙏