भारत में मुसलमानों को अल्पसंख्यक का दर्जा देने का निर्णय उनके जनसंख्या अनुपात के आधार पर नहीं, बल्कि उनके सामाजिक और आर्थिक स्थिति के आधार पर लिया गया है। भारतीय संविधान में अल्पसंख्यक समुदायों को विशेष अधिकार और सुरक्षा प्रदान की गई है, ताकि वे समाज में समान अवसर प्राप्त कर सकें और उन्हें किसी भी प्रकार की भेदभाव का सामना न करना पड़े।
हालांकि मुसलमानों की जनसंख्या कुल जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा है, पर वे आज भी कई क्षेत्रों में पिछड़े हुए हैं, जैसे कि शिक्षा, रोजगार और समग्र विकास। इसीलिए उन्हें अल्पसंख्यक दर्जा प्रदान किया जाता है ताकि उनकी विशेष समस्याओं को हल किया जा सके और उन्हें मुख्यधारा में शामिल किया जा सके।
भारत में कई मुस्लिम समुदाय गरीबी, शिक्षा की कमी, और रोजगार के अवसरों की कमी का सामना कर रहे हैं। अल्पसंख्यक दर्जा उन्हें विशेष योजनाओं और समर्थन प्राप्त करने में मदद करता है, जो उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति को सुधारने में सहायक हो सकता है।अल्पसंख्यक दर्जा का उद्देश्य सभी समुदायों के लिए समान अवसर और न्याय सुनिश्चित करना है। पर कभी-कभी इस तरह की नीतियाँ विवादास्पद हो सकती है।
यह बात बिल्कुल सही है कि हम अपने देश में ही मेहमान बनकर रह गए हैं।
इसी संदर्भ में मुझे एक घटना याद आ रही है…
अभी दो-तीन महीने पहले हीं हमलोग जम्मू कश्मीर की यात्रा पर थे। शिकारे ( लकड़ी का एक घर जो डल झील में बीचो-बीच होता है और यात्री उसमें रात गुजारते हैं )पर जाने को लेकर शिकारे वाले से बात हो रही थी। वह शिकारे तक ले जाने का हमारे से डबल ट्रिपल भाड़ा मांग रहा था और इसी बात को लेकर हमलोगो में थोड़ी बकझक होने लगी।
बात ही बात में शिकारे वाले ने मुझसे कहा, – “अरे मैं आपसे ज्यादा पैसे कैसे लूँगा!आप तो हमारे मेहमान है।”पता नहीं क्यों मेरे अंदर का हिंदुत्व जाग उठा और मैं बहुत गुस्से में आ गई। गुस्से में ही मैंने बोला कि वाह भाई,”मेरे घर में आकर तुम लोगों ने कब्जा कर लिया और अपने हीं घर में मै बन गयी मेहमान और तुम मेजवान?
मेरे पति मुझे इशारा करते रहे कि, चुप रहो!लेकिन मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर था।
यह हिंदुत्व का मजाक ही तो है कि हिंदुस्तान में हिंदुस्तानी होने के बाद भी हमें अपने अधिकार के लिए लड़ना होता है।
सीमा रानी
पटना
सही कहा है आपने।
अल्पसंख्यक का दर्जा देने का आधार ही गलत है जो कौम हजारों साल तक शासक रही हो उसे अल्पसंख्यक का दर्जा देना तुष्टिकरण के अलावा कुछ नहीं था।