“धन्य हैं वो वीर जिन्होंने सर्वस्व देश पर वार दिया
माँ भारती का कर्ज़ उन्होंने सहर्ष फर्ज से उतार दिया”
देश को गुलामी के बंधन से मुक्त कराने के लिए असंख्य देशभक्त अपनी जान की बाजी लगाने से भी पीछे नहीं हटे। जिन्हें आज भी याद करते हुए हम उनके प्रति श्रद्धा से नतमस्तक हो जाते हैं। किंतु कुछ ऐसे भी गुमनाम क्रांतिकारी हैं जिनका जिक्र इतिहास के पन्नों पर अंकित नहीं है। ऐसे ही क्रांतिकारियों की सूची में लाला दूनीचंद का नाम भी आता है धन्य है पंजाब प्रांत की वो माटी जिसमें दूनीचंद जैसे अनगिनत देश भक्त यौद्धाओं ने जन्म लिया। लाला दूनीचंद जी का जन्म अंबाला की पटियाला रियासत के गांव मानकपुरा में सन् 1873 में हुआ था। इनके पिता का नाम तेलू राम था। अपनी प्राथमिक शिक्षा यहीं से करने के पश्चात वे मैट्रिक की परीक्षा के लिए पटियाला चले गए। उनकी उच्च शिक्षा पटियाला और लाहौर के क्रिश्चियन कॉलेज में हुई। वकालत की पढ़ाई करने के उपरांत उन्होंने अंबाला में वकालत करना प्रारंभ कर दिया। सन् 1907 में जब देश में उपनिवेशीकरण विधेयक लागू हुआ तो इससे पंजाब के किसानों को अत्यंत गरीबी का सामना करना पड़ा। किसान नेताओं ने लाला लाजपत राय और अजीत सिंह के नेतृत्व में इसके विरोध में पंजाब में आंदोलन आरंभ कर दिया। इस समय लाला लाजपत राय कांग्रेस के विभाजन के बाद उससे अलग हो चुके थे ।लाला हरदयाल के साथ वे इस आंदोलन में कूद पड़े। ऐसे में लाला दूनीचंद से भी किसानों की दयनीय स्थिति देखी ना गई और वे अपनी वकालत को छोड़ कर इस आंदोलन में सक्रिय तौर पर शामिल हो गए। 9 मई 1907 को सरकार ने लाला लाजपत राय और अजीत सिंह को देश से निर्वासित कर दिया गया। ऐसे में लाला दूनीचंद किसानों के साथ डटे रहे । 1920 के असहयोग आंदोलन के दौरान उन्होंने अम्बाला तथा पटियाला के ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा किया और वहाँ जनसभाओं में लोगों से नशीले पदार्थों का उपयोग न करने के लिए अपील की और इनका बहिष्कार करने के लिए कहा । ऐसे में ब्रिटिश सरकार तिलमिला उठी परिणामस्वरूप उन्हें 6 महीने के कठोर कारावास की सजा सुनाते हुए डेरा गाजी खान जेल में भेज दिया गया ।
23 जुलाई 1923 को जेल से रिहा होने के बाद वे पुनः देश सेवा में जुट गए। सन् 1930 में महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में देश में सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ हुआ तो वे दूनीचंद जी भी इसमें शामिल हो गए। उन्होंने लोगों को आंदोलन के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया । इस बार उन्हें पुनः कांग्रेस कमेटी के सदस्यों के साथ कारावास की सजा सुना दी गई। जेल से रिहा होने के बाद वे स्वराज पार्टी का गठन होने के बाद उसमें सम्मिलित हो गए और उसके टिकट पर चुनाव के बाद केन्द्रीय असेंबली के सदस्य चुने गए । बाद में वे पंजाब प्रदेश के अध्यक्ष के रूप में चयनित हुए । सन् 1937 के निर्वाचन के बाद उन्होंने पंजाब असेम्बली के सदस्य के रुप में भी कार्य किया।
लाला दूनीचंद न केवल सच्चे देश भक्त थे अपितु एक समाज सुधारक भी थे। उनके जीवन पर स्वामी दयानंद के विचारों का प्रभाव था। इसी से प्रेरित होकर उन्होंने आर्य समाज अपना लिया। उनका व्यक्तित्व उदार विचारों से परिपूर्ण था। उन्होंने हरिजनों के उद्धार और विशेषकर महिला शिक्षा के कार्यों में विशेष योगदान देते हुए एक सच्चे समाज सुधारक की भूमिका भी निभाई। उन्होंने पंजाब में कई शैक्षणिक संस्थानों में धन का दान भी किया। वे विधवा पुनर्विवाह के समर्थक थे। उन्होंने उस समय चल रही सामाजिक कुप्रथाओं का सीधे तौर पर विरोध किया। सन् 1965 में वे इस नश्वर शरीर को छोड़ कर इस संसार को अलविदा कह कर चले गए। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात वे राजनीति से दूर हो गए। वे जब तक जीवित रहे देश सेवा में ही संलग्न रहे। ऐसे महान व्यक्तित्व और उदार विचारों वाले स्वतंत्रता सेनानी लाला दूनीचंद जी को हम सभी भारतवासी अपने हृदय में एक सदैव याद करते रहेंगे।
किरण बाला (चण्डीगढ़)