यह सत्य है कि हर इंसान को इस दुनिया में रहने के लिए अपने अस्तित्व को बनाए रखना आवश्यक है क्योंकि इतिहास गवाह है कि जो अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए वातावरण के साथ समायोजित नहीं होगा अनुकूलित नहीं होगा वह नष्ट हो जाएगा। इस दुनिया में जो शक्तिहीन है वह हर समय अन्याय को सहने के लिए तैयार रहता है क्योंकि उसकी कमजोरी का नाजायज फायदा लोग उठाते हैं और अपने स्वार्थ को पूरा करते हैं। वास्तव में संसार में अगर शासन करना है तो आपको शक्ति संपन्न होना आवश्यक है इसलिए अपनी क्षमताओं को पहचानना सीखें। प्रत्येक आदमी के पास शक्ति का भंडार होता है लेकिन फिर भी व्यक्ति अपने अंदर छिपी हुई शक्ति को नहीं पहचान पाता। और हमेशा शिकायत करता रहता है कि हम क्या करें, हम कमजोर हैं। अपने आप को अशक्त, अक्षम और कमजोर अनुभव करते रहते हैं।शक्ति के होने पर भी अशक्ति की बात करते रहते हैं। अपनी अतः निहित शक्तियों को जो व्यक्ति पहचान जाता है वही इस दुनिया में राज करता है। स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है कि अगर आपको लगेगी मेरी नैया डूब रही है तो अध्यात्म का हाथ थाम लो। अध्यात्म की शक्ति व्यक्ति को शक्तिशाली बनाता है बहुत से लोग जो खुद को कमजोर लाचार महसूस करते हैं उसकी वजह यही है कि वह अपने शक्ति से परिचित नहीं होते हैं, और अपनी शक्ति का उपयोग करना नहीं जानते हैं। इसलिए शक्ति संपन्न होते हुए भी अपने आप को कमजोर अनुभव करते हैं शक्ति का अनुभव शक्ति का उपयोग करना अध्यात्म के द्वारा ही संभव हो सकता है जो व्यक्ति अपने अंदर की शक्ति को पहचान जाता है ऐसा व्यक्ति आत्मा का आनंद उठा पता है आत्मा का आनंद शक्ति का परिचायक है, जिसे अपनी शक्ति पर भरोसा नहीं होता है जो अपनी शक्ति को नहीं पहचानता है उसकी सहायता स्वयं भगवान भी नहीं करते हैं। लेकिन जो अपनी शक्ति इसको पहचान लेता है उसको शक्ति का अनुभव करना पड़ता है। प्रत्येक व्यक्ति के दो रूप होते हैं एक सृजनात्मक और दूसरा ध्वंसात्मक।कोई व्यक्ति अपनी शक्ति का उपयोग सृजन के लिए करता है, तो कोई अपनी शक्ति का प्रयोग ध्वंस करने के लिए करता है। बहुत से लोग दुनिया में ऐसे हैं जो शक्तिशाली हैं लेकिन अपना शक्ति का प्रयोग केवल ध्वंस करने के लिए करते हैं निर्माण की बातों को जानते ही नहीं है। हमारे आसपास चोर लुटेरों की कमी नहीं है दुनिया में हत्या अपराध आतंक करने वालों की भी कमी नहीं है। सब बड़ा अपराध शक्तिशाली आदमी ही करता है। हमारी दुनिया में साधु पुरुषों को भी कमी नहीं है अहिंसा का विकास, सत्य का विकास, शांति का विकास, व्यक्ति के अंदर हो तो व्यक्ति शक्तिशाली बनता जाता है यह जागृति के साथ पैदा होते हैं। लेकिन वास्तव में लोगों को जागृत कैसे करें, कि वह अपनी शक्ति का सदुपयोग करें। जीवन में जितनी कामनाएं होगी जितनी आकांक्षाएं होगी उतनी ही व्यक्ति अपनी शक्ति का प्रयोग करना चाहता है। इसलिए आकांक्षा निष्काम होनी चाहिए व्यक्ति में सृजनात्मक शक्ति तभी बढ़ेगी जब व्यक्ति अपने शक्तियों का प्रयोग सृजन में लगाएगा।
डाक्टर शीला शर्मा, बिलासपुर