विधुर”
सुबह-सुबह साधू महाराज “तान पूरा”बजाते हुए गली से जा रहें हैं और गा रहे हैं!
“आए भी अकेला जाए भी अकेला,
दो दिन की जिंदगी है दो दिन का मेला “।
दीनदयाल जी ने दरवाजा खोला।
“राम राम महाराज”
महाराज जी बोले सब कुशल मंगल है भाई?
कहाँ महाराज!आपका गाना सुना तो मेरी आँखें खुल गईं आपने इतना सही गाना गाया।
मनुष्य किस मृगतृष्णा में फंसकर अपना जीवन चुनौतियां के घेरे में ले आता है कि अन्त में निराशा ही हाथ लगती है।
भाई ज़िन्दगी से क्यों निराश लगते हो? उचित समझो तो अपना दुःख साझा कर सकते हो!
महाराज जी अंदर आईये कुछ जलपान ग्रहण कर लीजिए दीनदयाल जी बोले।
भाई मुझे कुछ नहीं चाहिए बस एक गिलास ठंडा पानी पिला दो, दीनदयाल जी पानी लेकर आए बोले महाराज आप अंदर क्यों नहीं आ रहे?
घर में मेरे सिवा कोई नहीं है बच्चे सब बाहर शहरों में नौकरी कर रहे हैं, मैं अकेला ही रहता हूं।
महाराज जी बोले आप की पत्नी?
पत्नी का सुख मेरी किस्मत में नहीं है, मेरी पहली पत्नी को संसार छोड़ें 5 वर्ष हो गए! उस समय मेरी उम्र ५५ वर्ष की थी, मैं रिटायर भी नहीं हुआ था! बच्चों की शादियाँ हो गई थी बेटी विदेश में थी बेटा यही बेंगलुरु में जॉब करता था जीवन अपनी धार में बह रहा था पर ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था मेरा घर बिखर गया।
साधु महाराज बोल फिर क्या हुआ? आप मुझसे खुलकर बात कर सकते हैं मैं भी एक गृहस्थ था साधु बाद के बना हूं एकाकी जीवन से तंग आकर!
ऐसा क्या हुआ महाराज?
मैं रेलवे में नौकरी करता था मेरे कोई संतान नहीं थी फिर भी हम और पत्नी अपने को सुखी महसूस करते थे, परन्तु जीवन में बिछड़ना तो लिखा ही होता है मेरी मेरी 70 वर्ष की आयु में पत्नी ने संसार से मुख मोड़ लिया ईश्वर के चरणों में जगह का गई मैं अकेला क्या करता मैंने अपना गृहस्थी का सामान एक मंदिर के पुजारी को दे दिया और रुपया मंदिर के ट्रस्ट में जमा कर दिया बदले में मैंने रहने की जगह और दो टाइम कब भोजन मांगा तानपूरा बजाना मेरा शौक है सो सुबह-सुबह की सैर करता हूं और इसको बाजा के वही लाइनें जो आपको पसंद आईं गाता रहता हूं, जीवन का सत्य भी तो यही है।
बच्चों ने कहा कि पिता जी अभी आपका रिटायरमेंट नहीं हुआ है आप अकेले कैसे रहोगे हम लोग भी दूर-दूर हैं इसलिए हम बहन भाई दोनों चाहते हैं कि आपकी दूसरी शादी कर दी जाए!
“मुझे हंसी आई इस उम्र में दूसरी शादी”
बेटा बोला रिटायरमेंट के बाद भी तो आपको किसी का सहारा चाहिए होगा?
दीदी विदेश में रहती है और मैं भी दिल्ली में रहता हूं और आपकी बहू और मैं दोनों नौकरी करते हैं, बच्चों को हॉस्टल में रखते हैं तो हम आपको अपने साथ तो नहीं ले जा सकते क्योंकि दिल्ली जैसे शहर में अकेले घर में “बुजुर्गों का रहना खतरे से खाली नहीं है आए दिन हादसे होते रहते हैं”
मैं भी महाराज मृगतृष्णा में फंस गया दूसरी शादी कर ली।
मेरी दूसरी पत्नी भी विधवा थी उसका एक बेटा था जो कि दूसरे शहर में नौकरी करता था उसकी अभी शादी नहीं-नहीं हुई थी मैंने सोचा था कि उसकी शादी भी मैं धूमधाम से कर दूंगा उसको पिता की कमी महसूस नहीं होने दूंगा।
भाई फिर क्या हो गया ?
रिटायरमेंट के बाद हम पति-पत्नी सुखी जीवन जी रहे थे बच्चे भी आते जाते थे हाल-चाल पूछते रहते थे ऐसा नहीं लगता था कि बच्चों में अपनापन नहीं है।
ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था मेरी दूसरी पत्नी एक वर्ष पहले इस दुनिया से परलोकवासी हो गई।
अब मेरे जीवन की धारा ही बदल गई उसका बेटा कहता है माँ नहीं है तो मेरा आपसे रिश्ता खत्म!
मेरे अपने बच्चों ने पहले ही अपनी समस्याएं गिना दी थीं बच्चों ने दूसरी शादी क्यों करवाई थी यह सब मेरी समझ में अब आया सबअपनी जिम्मेदारियां से बचने के लिए हल निकाले थे।
भाई फिर आप ने क्या सोचा?
सोचता है क्या बेटी के घर जाकर रह नहीं सकता वह भी पति पत्नी नौकरी करते हैं बच्चे स्कूल चले जाते हैं अकेले घर में क्या करूंगा और फिर 6 महीने बाद वह वापस आना ही पड़ेगा। अब तो जीवन अकेला ही काटना है बच्चों से कहा अभी तो मेरे हाथ पर चल रहे हैं जब हाथ पैर नहीं चलेंगे तब क्या करोगे?
पापा हम लोगों ने आपके रहने की “ओल्ड एज होम”व्यवस्था कर दी है आप वहां पर रहिए वहां आपको हम उम्र लोग भी मिल जाएंगे और आपकी देखभाल भी होती रहेगी।
मैंने कहा मेरे पास इतना पैसा नहीं है कि मैं वहां का खर्चा उठा सकूं! बहू बोली हम और दीदी आपको रुपया भेजा करेंगे आपको किसी तरह की कमी नहीं होने देंगे।
जिनको पाल पोस कर इतना बड़ा किया उनकी खुशियों को महत्व दिया अपनी खुशियों को मिटा दिया आज उनके दिलों में पैसे की चकाचौंध में पिता की भावनाएं समझ नहीं आती बच्चों के संग बुढ़ापे में साथ रहने का सुख क्या पैसा दे
सकता है।
आपकी सार्थक भजन से जीवन की सच्चाई सामने आ गई।
“आए भी अकेला जाए भी अकेला,
दो दिन की जिंदगी है दो दिन का मेला।”
मेरा मन इस सच्चाई से व्याकुल होकर सोचने लगा दूसरी शादी करना कहाँ तक सही है।।
रचना -शीला श्रीवास्तव भोपाल