काम-धंधे के सिलसिले में जब रमेश पहली बार शहर आया तो उसे अपने मकान में ठहरने की जगह सुरेश ने ही दी थी।उस समय सुरेश अपने कमरे में अकेला ही रहता था। रमेश और सुरेश एक ही गांव के रहने वाले थे और बचपन में साथ- साथ एक ही स्कूल में पढ़े भी थे। परिवार की माली हालत ठीक न होने के कारण सुरेश ने हाईस्कूल के बाद पढ़ाई छोड़ दी और शहर कमाने चला आया। सुरेश को शहर में रहते हुए लगभग सात साल हो गए थे। सुरेश ने रमेश को उसी फैक्ट्री में काम पर लगवा दिया जहां वह पिछले कई वर्षों से काम कर रहा था। सुरेश की वजह से रमेश को काम के लिए बहुत दौड़- भाग नही करनी पड़ी थी, जबकि सुरेश जब काम के सिलसिले में पहली बार शहर आया था तो उसे कई रातें फुटपाथ पर बितानी पड़ी थी। अब दोनों को एक-दूसरे का साथ मिल गया था। दोनों एक साथ काम पर जाते और आपस में मिलकर घर का काम भी निपटाते। दोनों का समय बहुत अच्छे से गुजर रहा था। रमेश को भी अब शहर में काम करते हुए एक साल बीत गया था। थोड़ा-थोड़ा करके उसने भी कुछ पैसे जुटा लिए थे।
रमेश के बूढ़े मां-बाप अभी गांव में ही रहते थे। रमेश साल भर में कहीं एक-दो बार ही उनसे मिलने गांव जाता था। इस बार दीवाली में जब रमेश गांव गया तो उसकी बूढ़ी मां रो-रो कर कहने लगी, बेटा अब हमारी जिंदगी का कोई ठिकाना नहीं, पता नहीं कब भगवान के घर से बुलावा आ जाए। अब तो मन में एक ही इच्छा है कि तुम्हारी बहू का मुंह देख लें। तभी रमेश के पिता बोले बेटा तुम कहो तो राधेश्याम की बेटी से तुम्हारी शादी की बात चलाऊं। उसकी बेटी राधा बहुत ही सुशील है। एक बार राधेश्याम ने उसकी शादी के सिलसिले में मुझसे बात चलाई थी। अपने मां-बाप की इच्छा का सम्मान करते हुए रमेश ने बोला, ठीक है पिताजी आप शादी की बात चलाइए, अबकी बार होली की छुट्टी में जब घर आऊंगा तो शादी करके ही वापस जाऊंगा। शादी के लिए रमेश की रजामंदी पाकर उसके बूढ़े मां-बाप की खुशी का कोई ठिकाना न रहा। अगले दिन सुबह रमेश वापस शहर चला गया। रमेश के शहर जाने के कुछ दिन बाद ही उसके पिता ने राधेश्याम की बेटी से रमेश की शादी पक्की कर दी। छह महीने बाद जब होली की छुट्टी में रमेश गांव वापस आया तो उसके मां-बाप ने बड़े धूम-धाम से उसकी शादी कराई। घर में नई बहू आने के बाद रमेश के माता-पिता बहुत खुश रहने लगे। खुश हो भी क्यों न, बहू के रूप में उन्हें बेटी जो मिल गई थी। राधा अपने सास- ससुर का ख्याल अपने मां-बाप की ही तरह रखती थी। उनकी छोटी- बड़ी हर जरूरतों का ध्यान रखती थी। शादी के एक महीने बाद रमेश राधा को लेकर शहर आ गया। शहर में रमेश का अपना खुद का कोई ठिकाना तो था नहीं इसलिए अभी रमेश राधा के साथ सुरेश के घर में ही रहता था। सुरेश का मकान बहुत बड़ा नहीं था। पहले सुरेश और रमेश किसी तरह गुजर-बसर कर लेते थे। पर घर में राधा के आने के बाद अब दिक्कत हो रही थी। दो कमरों वाले छोटे से घर में राधा भी अपने आप को असहज महसूस करती थी। उसने कई बार रमेश से कहीं अलग घर लेने की बात कही लिहाजा कुछ समय बाद रमेश ने सुरेश के घर से थोड़ी ही दूरी पर किराए का छोटा-सा मकान ले लिया और उसमें राधा के साथ रहने लगा। रमेश और राधा जब तक सुरेश के घर में थे, तब तक सुरेश को बहुत आराम था। उसे सुबह-शाम दोनों टाइम बना बनाया नाश्ता और खाना मिल जाता था। राधा सुरेश को अपने बड़े भाई की तरह मानती थी। वह सुरेश को घर का कोई काम नहीं करने देती थी। घर की साफ-सफाई से लेकर सारा काम खुद ही करती थी। यहां तक कि राधा रमेश के साथ-साथ सुरेश के कपड़े भी धुल देती थी। घर में राधा के आने के बाद सुरेश बहुत ही आराम तलब हो गया था। रमेश और राधा के अलग रहने से सुरेश को अब बहुत परेशानी हो रही थी। शाम को काम से लौटने के बाद सुरेश अक्सर रमेश के साथ उसके घर पर ही चला जाता और वहीं पर नाश्ता- खाना करके रात को सोने के वक्त ही अपने कमरे पर जाता था। हालांकि रमेश को यह अच्छा नहीं लगता था पर वह करता भी क्या। रमेश, सुरेश के एहसानों तले दबा जो था। जब रमेश और सुरेश एक साथ रहते थे तो दोनों बहुत ही अच्छे तरीके से अपना सारा काम करते थे लेकिन रमेश के अलग होने के बाद सुरेश अस्त-व्यस्त हो गया था। सुरेश अब रोज शाम को शराब पीता था। फैक्ट्री के काम-काज में भी अब उसका मन नहीं लगता था। धीरे-धीरे समय बीतता गया। रमेश और राधा को सुरेश से अलग हुए छह महीने से भी ज्यादा हो गया था।
एक दिन रात को जब रमेश और राधा खाना खा रहे थे तो राधा ने डरते हुए रमेश से कहा कि कई दिनों से आपसे एक बात कहना चाहती हूं पर डर लगता है कहीं आप नाराज़ न हो जाएं।रमेश ने कहा इसमें डरने की क्या बात है। तुम मेरी पत्नी हो। तुम अपनी बात मुझसे नहीं कहोगी तो फिर किससे कहोगी। राधा, तुम्हें जो कुछ भी कहना है बेझिझक कहो। रमेश के इतना कहते ही राधा सिसक- सिसक कर रोने लगी। रमेश ने उसके आंसू पोंछते हुए कहा राधा बताओ आखिर बात क्या है।तब राधा ने रमेश को बताया कि सुरेश भैया अक्सर दोपहर में मुझे फोन करके गंदी-गंदी बातें करते हैं। कहते हैं कि तुम रमेश को छोड़कर मेरे साथ रहो। मैं तुम्हें रानी बनाकर रखूंगा। मेरे मना करने पर मुझे गंदी-गंदी गालियां और आपको जान से मारने की धमकी देते हैं। परसों तो उन्होंने सारी हदें पार कर दी। दोपहर में जब आप काम पर गए थे, तो सुरेश भैया शराब के नशे में घर आए और मुझसे जोर-जबरदस्ती करने लगे। किसी तरह मैं अपने आप को बचा पाई। राधा की बात सुनकर रमेश का खून खौल उठा।अब दोनों ने सुरेश को सबक सिखाने की ठान ली। अगले दिन रमेश जब काम करने फैक्ट्री गया तो सुरेश से ऐसे मिला जैसे कि उसे कुछ पता ही नहीं हो। रमेश ने सुरेश से कहा कि यार तू कई दिनों से घर नहीं आया। राधा भी तुमको पूछ रही थी। आज राधा का जन्मदिन है।शाम का खाना सब लोग साथ में मिलकर खाते हैं। आज मैं फैक्ट्री से थोड़ा जल्दी घर निकलूंगा,राधा को बाजार ले जाना है। तुम शाम को आठ बजे तक घर आ जाना। जब रमेश ने कहा कि राधा भी उसे पूछ रही थी तो सुरेश को लगा कि शायद राधा उसकी बात मान गई है। अब सुरेश की खुशी का कोई ठिकाना न रहा। आज वह बार-बार घड़ी देख रहा था कि कब आठ बजे और वह राधा से मिलने रमेश के घर पहुंचे। रात को ठीक आठ बजे सुरेश हाथों में फूलों का गुलदस्ता लेकर रमेश के घर पहुंच गया। जैसे ही राधा ने दरवाजा खोला सुरेश ने राधा के हाथों में फूलों का गुलदस्ता थमाते हुए उसे जन्मदिन की बधाई दी। रमेश ने सुरेश को अपने बगल में बिठा लिया और राधा से चाय-नाश्ता लाने के लिए बोला। सुरेश ने आज भी शराब पी रखी थी। उसके मुंह से बदबू आ रही थी। रमेश ने सुरेश को पहले नाश्ता और फिर जमकर खाना खिलाया। थोड़ी देर बाद रमेश ने घर पर रखा म्यूजिक सिस्टम बजा दिया। गाने की धुन पर सुरेश थिरकने लगा। बंद कमरे में रमेश ने अचानक बाजे की आवाज बहुत तेज कर दी और सुरेश को लात-घूसों से पीटने लगा। सुरेश समझ ही नहीं पाया कि हो क्या रहा है। तभी राधा भी उसके सामने आ गई और उसकी सारी काली करतूतें बताने लगी। गुस्से में रमेश ने सुरेश के प्राइवेट पार्ट पर कस कर प्रहार किया,उसे करंट के झटके भी दिए। बाजे की तेज धुन में रमेश और उसकी पत्नी ने लाठी-डंडों से उसकी जमकर पिटाई की। सुरेश ने बचाव के लिए बहुत आवाज लगाई पर उसकी आवाज किसी को सुनाई नहीं पड़ी। मारते-मारते जब वह बेहोश हो गया तो दोनों ने उसे उठाकर सड़क के किनारे फेंक दिया। रात काफी हो चुकी थी इसलिए सड़क पर लोगों का आना-जाना बंद था। सुरेश पूरी रात सड़क के किनारे अधमरा सा पड़ा रहा। अगले दिन सुबह जब सड़क पर लोगों का आना-जाना शुरू हुआ तो किसी ने उसके मुंह पर पानी के छींटें मारे तो सुरेश ने हल्की आंखें खोली। लोगों के पूछने पर सुरेश ने किसी को कुछ भी नहीं बताया। आस- पास के जानने वाले लोगों ने उसे उठाकर उसके कमरे तक पहुंचाया।बिस्तर पर मरणासन्न पड़े सुरेश को अब बहुत पछतावा हो रहा था।अपनी गंदी हरकतों के चलते आज उसने भाई समान दोस्त को खो दिया था।
– सुनील कुमार
बहराइच,उत्तर प्रदेश।
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