राव तुलाराम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक ऐसे नायक थे, जिनके साहस, नेतृत्व, और दूरदर्शिता को भुलाया नहीं जा सकता। उन्हें महज एक योद्धा कहकर उनका मूल्यांकन करना उनकी महानता को कम आंकना होगा। उनकी वीरता के अनगिनत पहलू हैं, जो उनके संघर्ष की गहराई और उनकी देशभक्ति को दर्शाते हैं।
1857 की क्रांति के दौरान राव तुलाराम ने अंग्रेजों के खिलाफ एक अद्वितीय मोर्चा तैयार किया। उन्होंने केवल हथियारों के दम पर नहीं, बल्कि अपनी अद्वितीय सैन्य रणनीति और गुरिल्ला युद्धकला के बल पर अंग्रेजों को कड़ी चुनौती दी। उनकी गुरिल्ला युद्ध नीति ने अंग्रेजी सेना को भ्रमित कर दिया और उनकी बड़ी और संगठित सेना के खिलाफ अपने छोटे-छोटे दलों से अचानक हमले कर उन्हें भारी नुकसान पहुंचाया। उनकी इस चतुराई ने यह साबित किया कि एक सच्चा योद्धा केवल ताकत से नहीं, बल्कि अपनी बुद्धिमत्ता और रणनीति से भी युद्ध जीतता है।
राव तुलाराम की दूरदर्शिता का एक और अनदेखा पहलू उनकी विदेशी समर्थन जुटाने की कोशिश थी। जब उन्होंने देखा कि भारतीयों के पास अंग्रेजों के आधुनिक हथियारों का मुकाबला करने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं, तो उन्होंने काबुल की ओर रुख किया। वहाँ से उन्होंने ईरान, रूस, और अन्य देशों के शासकों से सहयोग मांगने का प्रयास किया। यह कदम उनकी सोच की गहराई और उनके देशप्रेम का एक अनूठा उदाहरण है। उनकी इस कोशिश ने यह साबित किया कि सच्चे नेता वही होते हैं जो हर परिस्थिति में, हर स्तर पर अपने देश की स्वतंत्रता के लिए प्रयास करते हैं।
राव तुलाराम सिर्फ एक योद्धा ही नहीं, बल्कि एक सामाजिक सुधारक भी थे। उन्होंने अपने क्षेत्र में न केवल सैनिक मोर्चा संभाला, बल्कि समाज में बदलाव लाने के भी प्रयास किए। किसानों और मजदूरों के जीवन में सुधार लाने के लिए उन्होंने कई योजनाएं चलाईं। उनके शासन के दौरान शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को भी प्राथमिकता दी गई। उनके इन पहलुओं से पता चलता है किवे एक संवेदनशील और समाज-सेवी नेता भी थे, जिनका उद्देश्य केवल युद्ध जीतना नहीं, बल्कि समाज को समृद्ध और सशक्त बनाना भी था।
उनके संघर्ष का एक और दिल को छू लेने वाला पहलू यह है कि उन्हें केवल अंग्रेजों से ही नहीं, बल्कि अपने ही समाज के कुछ लोगों से भी लड़ाई लड़नी पड़ी। कुछ स्थानीय जमींदार और रजवाड़े अंग्रेजों के प्रति वफादार थे और उन्होंने राव तुलाराम के प्रयासों में बाधाएं उत्पन्न कीं। उनका अपनों के साथ संघर्ष हमें सिखाता है कि कभी-कभी हमें अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अपने ही लोगों के विरोध का भी सामना करना पड़ता है और यह तब होता है जब अपने ही झूठ फरेब और गद्दारी का रास्ता अपना लेते हैं। और ऐसी स्थिति में एक सच्चा योद्धा वही कहलाता है ;जो हर चुनौती को पार कर अपनी राह पर अडिग रहता है।
राव तुलाराम का अंतिम समय भी उनकी अदम्य इच्छाशक्ति और देशप्रेम का प्रमाण है। काबुल में रहते हुए, उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ समर्थन जुटाने के अपने प्रयास जारी रखा। लेकिन एक लंबी बीमारी के कारण 1863 में उनका निधन हो गया, लेकिन उन्होंने अपने अंतिम समय तक संघर्ष का दामन नहीं छोड़ा। उनके इस समर्पण ने यह सिद्ध किया कि एक सच्चा योद्धा वही है जो अपनी अंतिम सांस तक अपने आदर्शों के लिए लड़ता है।
इस प्रकार, राव तुलाराम का जीवन केवल वीरता की कहानी नहीं है, बल्कि यह संकल्प, धैर्य, और निस्वार्थ देशभक्ति का जीता-जागता उदाहरण है। उनका संघर्ष हमें यह सिखाता है कि सच्ची महानता केवल युद्ध जीतने में नहीं, बल्कि अपने लक्ष्य और अपने लोगों के प्रति निःस्वार्थ समर्पण में है। उनकी अनसुनी कहानी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो हमें अपने कर्तव्यों के प्रति सच्ची निष्ठा और समर्पण की प्रेरणा देता है।
ऐसे महान योद्धा को शत-शत नमन कि उनके इस साहसिक और सामाजिक कदम के कारण आज हम स्वतंत्रता की हवा में विश्वास ले पा रहे हैं हम आभारी हैं उनके हर एक कार्य के लिए जिन्होंने हमारी आजादी के लिए उठाया। अब आभारी हैं उनके हर एक साहसिक कार्य के लिए जिनसे हमने शिखा की हमें कभी भी हिम्मत नहीं हरनी चाहिए चाहे परिस्थितियों कितनी भी विपरीत क्यों ना हो।
श्रीमती रेखा
हिसार हरियाणा
शिक्षिका ,कवयित्री
संस्थापिका सनशाइन ऑफ़ इंडिया