छात्रों को शिक्षित करना अपने आप में कला है जिसमें धैर्य का होना एक महत्वपूर्ण गुण है। जिस तरह हर व्यक्ति वैज्ञानिक नही हो सकता उसी तरह हर व्यक्ति शिक्षक भी नही हो सकता। चूँकि हमारे देश में शिक्षा कभी गंभीर मुद्दा रहा ही नही है इसलिए कभी शिक्षकों के विषय या स्तर पर शायद ही विचार किया गया हो। शिक्षित करने के लिए शारीरिक दंड जैसे प्रयोग अशिक्षित शिक्षक ही कर सकता है, प्रत्येक बच्चा अपने आप में अलग होता है। शिक्षा के स्तर पर विपरीत प्रभावअशिक्षित शिक्षकों के कारण होता है ना कि छात्रों व दंड के कारण। विद्यालय में शारीरिक दंड एवं डांट इत्यादि पर प्रतिबंध लगने के बाद अनुशासनहीनता की कुछ गतिविधियां बढ़ी है। लेकिन यह भी वहीं बढ़ी है जहां पर अनुशासन की समझ नहीं है।
परंतु महत्वपूर्ण बात यह है की दंड एवं डांट पर प्रतिबंध लगने के बाद बच्चे अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त करने लगे हैं, बच्चों पर जो मानसिक डर था वो डर कम हुआ है। बच्चे दंड एवं डांट के कारण कभी-कभी सही कार्य को भी ठीक ढंग से नहीं कर पाते थे। लेकिन यह डर कम होने के कारण वे खुलकर किसी कार्य को कर देते हैं।
यह बात तो निश्चित है बालकों के दिमाग से दबाव कम हुआ है और यह बच्चों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
कहीं-कहीं तो आपने देखा होगा कितना शारीरिक दंड दिया जाता है, वह भी मासूम बच्चों को जिसमें उनका कोई दोष नहीं होता बच्चे हैं, स्वाभाविक है गलती तो करेंगे लेकिन दंड एवं डांट की बजाय समझाने से सुधार किया जा सकता है, जो बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होता है।
अनुशासनहीनता को अच्छी शिक्षा व उचित वातावरण देकर नियंत्रित किया जा सकता है । इसके लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है ताकि विद्यार्थी उज्जल भविष्य की ओरअग्रसित हो सकें । अनुशासन में रहने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि राष्ट्र की उन्नति का मार्ग प्रशस्त हो जाता है ।
अक्सर देखने में आता है कि विद्यालय में फीस नहीं जमा होने के कारण बच्चे को शारीरिक दण्ड दिया जाता है, बहुत लोग इसका पक्ष भी लेते हैं. मेरी नजर में यह अतार्किक तो है ही, अमानवीय भी है।
जी हां, अनुशासन हीनता युवा होते हुए बच्चो में बढ़ जरूर रही है लेकिन यह सभी के साथ नहीं है। निर्भर करता है कि उनकी परवरिश किस तरह हो रही है, अच्छी परवरिश के जितने जिम्मेदार अभिभावक होते है उतना ही प्रभाव आस पास के माहौल का भी होता है।
किशोर अवस्था में ऐसी स्थिति खड़ी हो जाती है जब युवा उन्हें किसी बात पर टोके जाने या सुधारे जाने पर बिगड़ जाते है, वो उमर ही ऐसी होती है। हम सभी कभी ना कभी इस परिस्थिति से जरूर गुजरे है, उस उमर में लगता है कि हम अपना भला बुरा समझते है और किसी को हमे कुछ कहने की जरूरत नहीं और अपने मर्ज़ी के मालिक हैं।
लेकिन समय के साथ वो अपनी जिम्मेदारियां समझते है और रस्ते पर आ जाते। शारीरिक दंड के मुकाबले आर्थिक दंड ज्यादा असरकारक होता है क्योंकि शारीरिक दंड पाने के बाद उसका भय निकल जाता है।
स्कूलों में शारीरिक दंड दिया जाना अनावश्यक है, और बच्चों के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाता है । शारीरिक दंड के कारण बच्चे हिंसक होने लगते हैं और उनके अवांछनीय व्यवहार में कोई कमी नही आती दम। शारीरिक दंड दिए जाने के कारण बच्चे संबंधित शिक्षक के प्रति शत्रुता का भाव रखने लगते हैं यह उनके संपूर्ण विकास में बाधक हैं।
बच्चा जब छोटा होता है दिल का बहुत कच्चा होता है,
राह हम जो दिखाए वहीं उसका बेहतर कल होता है,
हम कहते तो है बेटा तुम ऐसा करना वैसा करना,पर जब बच्चा बाहर की दुनिया में जाता है,तो बहुत सारी चीज़े उसे अपनी ओर आकर्षित करती है,ओर वो उसमे इतना सम्मोहित हो जाता है,की उस अपने घर वालों की बातो से ज्यादा बाहर वालो की बाते,उनका रहन सहन,खाना पीना,बोल चाल, ज्यादा अच्छी लगने लगा जाती है,ओर इसी भावना के साथ बच्चे बड़े होते जाते है,ओर आज कल तो ये सब आम बात हो गई, अनुशासन को तोड़ना, युवा वही करते है जो करने को मना किया जाता है, ट्रैफिक रूल्स, कॉलेज रूल्स,ओर भी बहुत कुछ!आज कल के बच्चे सोशलाइज हो गए है।
मैं इस बात से पूरी तरह से सहमत हूँ कि विद्यार्थियों को अनुशासित करने के लिए आजकल शिक्षक के हाथों में अधिकार बहुत कम है और विद्यार्थियों के पास छूट बहुत ज्यादा है I हम अपने शिक्षको से बहुत डरते थे और उनका आदर भी करते थे I लड़कों की पिटाई तो अक्सर होती थी किन्तु हम लड़कियां तो उनके ज़रा से गुस्से से ही डर जाया करती थी I हम आज भी अपने शिक्षकों का सम्मान करते हैं I आजकल के विद्यार्थियों में अनुशासन की कमी है, वे अपने शिक्षको पर हावी रहते हैं और उनके माता-पिता भी इस बात के लिए पूरे जिम्मेदार हैं जो अपने बच्चों को संस्कार नहीं देते।जो अनुशासित रहेगा तो उसको देख कर लोग अनुकरण करे।
इस कदर जनसंख्या वृद्धि और सुविधाओं की कमी लोगों में यह भावना पैदा करती है कि जोर-जबरदस्ती से ऊन्ची आवाज मे बोल कर यानी अनुशासन हीनता से काम जल्दी बन जाता है ।धीरे-धीरे ऐसे लोगों का महिमा मण्डन होने लगा।सभी अनुकरण करने लगे,इस तरह से अनुशासन हीनता फैल गई ।अब तो अनुशासन प्रिय लोगों को बेवकूफ समझा जाता है ।
आज के समय में शिक्षक द्वारा बच्चों को अनुशासित रखना अनुचित नहीं है। अनुशासन एक महत्वपूर्ण गुण है जो बच्चों को जीवन में सफल होने के लिए आवश्यक है। अनुशासित बच्चे अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करने के लिए अधिक इच्छुक होते हैं और वे दूसरों के अधिकारों का सम्मान करते हैं।
हालांकि, अनुशासन के लिए दंडात्मक उपायों का उपयोग करना अनुचित है। दंड बच्चों को सीखने के लिए प्रोत्साहित नहीं करता है, बल्कि यह उन्हें डराता है। शिक्षकों को बच्चों को अनुशासित करने के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। वे बच्चों को नियमों के बारे में बता सकते हैं और उन्हें उनका पालन करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
सरकारी विद्यालयों में शिक्षा का स्तर गिरने के कई कारण हैं, जिनमें से अनुशासन एक कारण हो सकता है। जब कक्षाओं में अनुशासन नहीं होता है, तो शिक्षकों को पढ़ाना मुश्किल हो जाता है। बच्चे ध्यान नहीं देते हैं और व्यवधान करते हैं, जिससे सीखने की प्रक्रिया प्रभावित होती है।हालांकि, यह कहना कि अनुशासन ही सरकारी विद्यालयों में शिक्षा के स्तर को गिराने का कारण है, गलत होगा। अन्य कारक भी हैं जिनके कारण सरकारी विद्यालयों में शिक्षा का स्तर गिर रहा है, जैसे कि शिक्षकों की कमी, संसाधनों की कमी, और परिवारों से कम समर्थन।
सरकारी विद्यालयों में शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए, हमें अनुशासन सहित कई कारकों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। हमें शिक्षकों को बेहतर प्रशिक्षण देने, उन्हें पर्याप्त संसाधन प्रदान करने, और परिवारों को शिक्षा में अधिक शामिल करने की आवश्यकता है।
अनुशासनहीनता को अच्छी शिक्षा व उचित वातावरण देकर नियंत्रित किया जा सकता है । इसके लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है ताकि विद्यार्थी उज्जल भविष्य की ओर अग्रसित हो सकें । अनुशासन में रहने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि राष्ट्र की उन्नति का मार्ग प्रशस्त हो जाता है ।
डॉ शीला शर्मा
बिलासपुर, छत्तीसगढ़
95895 91992