एक चाय देना। उसने बड़ी शराफत से पैसे बढ़ाते हुए कहा। वह आवाज सुन कर जैसे लगा कि आवाज कुछ जानी पहचानी सी है। मैनें सर उठा कर देखा तो मुझे सामने बिन्दू दिखी। उसे इस हाल में देख कर तो मैं आवा़क रह गया। क्या थी और क्या हो गई। मेरे आंखों के सामने बिन्दू का चेहरा घूम गया। लम्बी सी दुबली-पतली काया गली-मोहल्लों में घूम कर सब्जी बेचा करती थी। समय की बिल्कुल पक्की। बहुत बातूनी। हाथ घूमा-घूमा कर और आंख मटका-मटका कर बात करना उसकी आदत थी। उसके आने का समय हुआ नहीं कि सब्जी ले लो की आवाज सुनाई दे जाती थी।बिंदू की आव़ाज सुन कर मुहल्ले के मनचले बिना मतलब मोल-भाव कर सब्जी लेने पहुंच जाते थे। वो भी सब समझती थी। मगर कुछ कहती नहीं। आखिर उसकी बिक्री तो होती थी। सब्जी बेचते बेचते जब थक जाती तो मेरी दुकान पर आकर एक रूपये की चाय और दो पाव खाती।
मैं भी उसका रोज इंतजार करता। जिस दिन वह नहीं आती उस दिन लगता था कि आज कोई ग्राहक ही नही आया। मैं उसके आने का समय होते ही केतली में बची हुई चाय फेंक देता और लकड़ी की आंच को कम देता, ताकि वह चाय पीने के बहाने कुछ देर बैठे।
वह भी मेरे इस काम को खूब समझती थी, मगर थका शरीर और पंखे की हवा और हैंडपंप का ठंडा पानी बिंदू को बैठने पर मजबूर कर देता। मेरी निगाह भी चाय बनाने कम उसकी तरफ अधिक रहती।कभी कभी तो वह बोल देती गहमरी बाबू मैं तुम्हारे हाथ आने वाली नहीं। तुम देखना मैं सब्जी बेचने पास के होटल में जाती हूं। उसके मालिक के बेटे के साथ मेरी शादी राजकुमारी की तरह होगी।
मैं उसकी बातों पर ध्यान नहीं देता। रोज उसका नाम किसी न किसी के साथ जुड़ता। मैं भी जानता था कि मुफ़लिसी के दौर में बदनामीयां साथ-साथ चलती हैं।
एक दिन मैं दुकान पर बैठा था। दो दिन हो गये थे बिन्दू को देखे। मैं दो दिन से बिन्दू नही आ रही थी। उसके न आने से पूरा मोहल्ला परेशान था। सब्जी का बाजार नदी के उस पार था, जिससे कोई जाना नहीं चाहता था। इस लिए बिन्दू के न आने से महिलाओं में अधिक बेचैनी थी। तीसरे दिन सुबह अखबार में बिन्दू की फोटो देख कर सर चकरा गया। उसके साथ नदी पार होटल के मालिक के लड़के ने गलत काम करने की कोशिश किया था। पुलिस ने पकड़ उसकी शादी बिंदू से करा दिया।
अखबार की खबर मुहल्ले में आग की तरह फैल गई। कोई इसे बिंदू की चाल तो कोई इसे होटल के मालिक को गाली देते हुए सही ठहरा रहा था।
महीनों बीत गये। एक दिन उसके सामने एक बड़ी सी गाड़ी आ कर रूकी और उसमें से महंगें कपड़ो और जेवर में लिपटी एक और निकली। उसे देख कर सबके चेहरे पर आश्चर्य से लाल हो गये।वह बिंदू थी। शायद वह मेरी दुकान के सामने वर्षो से खाली पड़ी जगह पर बने होटल में आई थी। आज सुबह से वहां बहुत चहल-पहल थी। कई बड़े-बड़े लोग आ रहे थे। कुछ दिनों से इस क्षेत्र में भी रौनक बढ़ गई थी। जंगलों और खाली पड़े मैदानों की जगह ऊँचे-ऊँचे मकानों ने लिया था। बिंदू को देख कर लोग कुछ लोग उधर लपके मगर वह सबको अनदेखा कर होटल के तरफ चलने वाली ही थी कि उसके पास एक और गाड़ी आकर रूकी। उस गाड़ी में से सफेद कपड़ो में लिपटी एक लम्बी महिला बाहर आई। बिंदू दौड़ कर उसके पास पहुँची और उसके साथ होटल की तरफ चली गई।
मैं उसे देखता ही रह गया। हमारे चाय की दुकान पर बैठ कर अपने तन को आराम देने वाली बिंदू आज इस तरह अनदेखा कर चल देगी हमें तो विश्वास ही नहीं हो रहा था। अभी मैं यह सोच ही रहा था कि सामने खड़ी गाड़ीयो के ड्राइवर मेरी दुकान में आकर बैठने लगे।उनमें बिंदू की गाड़ी का ड्राइवर भी था। किसी ने चाय बिस्किट तो किसी चाय के साथ सिगरेट तो किसी ने ठंडा और सिगरेट लेकर आप में बातें करने।शायद हमेशा मिलते रहने के कारण आपस में परिचय हो गया होगा। बैसे भी बिलारपुर कोई बड़ी जगह तो थी नहीं। इस लिए सब एक दूसरे को पहचानते थे।इन सब से अलग थलग खड़ा था बिंदू का ड्राइवर जैसे उसको किसी से मतलब ही नहीं था। वह हर दो मिनट पर उस गेट की तरफ देखता जिसमें से बिंदू ने प्रवेश किया था।
मेरे दिमाग में आपकी तरह ही सवाल उठ रहा होगा कि एक सब्जी बेचने वाली इतनी बड़ी गाड़ी की मालिक कैसे हो गई।
बिन्दू का ड्राइवर क्यों सबसे अगल था
मिलेगा इस सवाल का जबाब भी अगले सप्ताह इसी कहानी के भाग दो में तब तक आप सोचीये और बताईये इस कहानी के आगे का भाग। यदि आपको समझ में आता है तो वाटस्एप करें 9451647845