बिलासपुर की साहित्य सरोज प्रभारी डॉ शीला शर्मा से तीन महीनों में कम से कम एक लाख बातें मैसेज से और 12 घंटे से अधिक बातें मोबाइल पर हुई होगी। लेकिन इन बातों में के बीच एक वाक्य ऐसा था जिसे पढ़ कर किसी की जिन्द़गी का न सिर्फ राज सामने आया बल्कि यह लगा कि यदि ऐसा ही हर पुरूष-महिला करने लगे तो उसे दुनिया में अपनी पहचान बनाने से कोई भी ताकत रोक नहीं सकती। शिशु अवस्था से लेकर पौढ़ अवस्था तक यदि मानव उस गुण को अपनाये तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि वह न सिर्फ लम्बा जीवन जीयेगा बल्कि अपने आस-पास के लोगों का प्ररेणा भी बनेगा।
शीला जी ने एक दिन मुझे एक फोटो दिखाते हुए कहा कि इनको देखीये बढ़ा कद, बड़ा पद और उम्र भी 63 की और काम बच्चों जैसे। वास्तव में जीवन में गम्भीरता बहुत जरूरी है। गम्भीरता काम के प्रति होनी चाहिए, काम करने करने के तरीकों में होनी चाहिए, काम करते समय होनी चाहिए। परन्तु काम को करते समय आप का मन चंचल हो। काम के अवधि में आपके चेहरे पर तनाव नहीं हास्य होना चाहिए। आप की वाणी में खनक होनी चाहिए। आप काम को लेकर गंम्भीर तो रहे परन्तु दूसरों को लगे कि आप जो कर रहे हैं उसे करने में आप तनावग्रस्त नहीं हैं। दूसरों की मौजूदगी और बातों से आप के काम पर कोई असर नहीं पड़ता। मैनें बहुत से लोगों को देखा है कि वह कोई छोटा से छोटा काम करेगें तो पूरे समाज को पता चल जायेगा। वह अपने आसपास गम्भीरता का ऐसा आवरण लगा देगें जिससे लोग उनके पास जाने से कतरायेगें। वह काम के प्रति गंम्भीर हो या ना हो मगर दिखावा जरूर करेगें।
आप अपने आस-पास नज़र दौड़ा कर देखे तो आपको 100 में 98 आदमी इसी तरह के मिलेगें। लेकिन इन 100 में जो 2 ऐसे नहीं होगें उनमें एक सुषमा पांन्डया और कान्ति शुक्ला होगी। सुषमा पांन्यडा 63 की उम्र में मोटरसाइकिल से बिलासपुर से मानलिंगा पास जैसी कठिन चढ़ाई पूरी कर नया इतिहास बनाती हैं। अपने अध्यापन काल में तरह-तरह के प्रयोग कर बच्चों के विकास में सहायक बनतीं हैं। और इसके पीछे जितने भी कारण है उसमें एक प्रमुख कारण उनका चंचल मन। चंचल मन कभी वृद्ध होने का एहसास ही नहीं होने देता। वह मानने को तैयार ही नहीं होता है कि उसका शरीर अब ढलान पर है। और हर जगह लिखा भी है कि ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। तो जब हमारा मन चंचल रहेगा, बालपन जैसा रहेगा तो हम हमें हारने नहीं देगा। कार्य को सही दिशा और ऊर्जावान तरीके से करने को प्रेरित करेगा।
वही भोपाल की रहने वाली कान्ति शुक्ला को देखे। हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में दिन प्रतिदिन नये आयाम स्थापित कर रही हैं। 75 की उम्र में पूर्ण रूप से शारीरिक अस्वथा के बाद भी वह लेखन, आयोजनों में न सिर्फ पूरी तरह सक्रिय। मगर कभी भी आप मिले तों उनके अंदर का बचपन देख कर आप को लगेगा ही नहीं कि अपने काव्य में गंम्भीर और उत्कृष्ठता रखने वाली यही विदुशी महिला है।
जीवन में हास्य और बालमन का रखना बहुत ही आवश्यक है। किसी भी कार्य को करते समय अपने आपको यदि तनाव मुक्त, हास्य परिहास से युक्त वातावरण रखेगें तो कोई ताकत नहीं जो आपको सफल होने से रोक दें। समाज में अपनी छवि यदि आपको स्थाई रूप से बरकरार रखनी हैं तो आपको अपने मन को चंचल और बचपने में रखना होगा। तभी आप सफल, सुखी और स्वस्थ रह सकेगें।
अखंड गहमरी
संपादक साहित्य सरोज
9451647845