2 अक्टूबर को जब गांधी जयंती आती है तो हम अनेकों विचारों से घिर जाते हैं, उसमें से एक सबसे त्वरित और सम्मोहित कर देने वाला शब्द होता है सत्य। सत्य क्या है ? आखिर क्यों हर व्यक्ति दूसरों से तो इस सत्य की उम्मीद करता है परंतु खुद उलझ जाता है ? क्या था गांधी जी का सत्य ? और क्या था उनका सत्याग्रह ? वह व्यवहार वह सोच वह हमारे मानवीय कर्म जो हमारे विरोधियों को भी हमारे विचारों को मानने पर मजबूर कर दें वही सत्याग्रह है । सत्याग्रह और गांधी जी का सत्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नैतिक स्तंभों में से एक था। गांधी जी के लिए सत्य मात्र एक सिद्धांत नहीं था, बल्कि यह जीवन की वास्तविकता थी यह हम यूं कहें कि उनके जीवन की वास्तविकता थी। उन्होंने सत्य को अपने जीवन का केंद्र बनाया और हर संघर्ष में इसे अपने अस्त्र के रूप में उपयोग किया। गांधी जी के सत्य का अर्थ केवल तथ्यात्मक सत्य नहीं था, बल्कि वह सच्चाई थी जो मानवता के हित में हो, जो मनुष्य के भीतर के विवेक को जागृत करे।गांधी जी का सत्य केवल भौतिक या बाहरी सत्य से जुड़ा नहीं था। उनके लिए सत्य का अर्थ आंतरिक जागरूकता से था, जिसे ‘आत्मसत्य’ कहा जाता है। यह सत्य वह शक्ति थी, जो इंसान के भीतर की करुणा, सहानुभूति, और विवेक को जागृत करती है इंसानियत को पहचानने की न केवल क्षमता विकसित करती है बल्कि इंसानियत को इंसान के अंदर और मजबूती से स्थापित करती है। उनके लिए सत्य की अवधारणा व्यापक थी और यही कारण था कि सत्याग्रह को उन्होंने किसी एक वर्ग या समुदाय तक सीमित नहीं रखा। सत्य में उनके लिए धैर्य, अहिंसा, और न्याय की भावना निहित थी।
भले ही सत्याग्रह का शाब्दिक अर्थ ‘सत्य के प्रति आग्रह करना’ परंतु यह केवल विरोध करने का माध्यम नहीं, बल्कि विरोध के दौरान अपने विरोधियों को भी उनके सत्य की ओर आकर्षित करने का प्रयास था। सत्याग्रह में केवल प्रतिरोध नहीं था, बल्कि आत्मपरिवर्तन की भी भावना थी। गांधी जी ने सत्याग्रह को केवल भारत की स्वतंत्रता के लिए नहीं, बल्कि एक वैश्विक आंदोलन के रूप में देखा, जिसमें अपने विरोधियों को भी बदलने का सामर्थ्य था। यह एक ऐसी मानसिकता का निर्माण करता था, जिसमें अहिंसा के बल पर इंसान अपने सबसे कट्टर शत्रु को भी बदल सकता था। गांधी जी का मानना था कि सत्याग्रह से केवल सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि नैतिक परिवर्तन भी संभव है। यह आंदोलन हमें अपने भीतर के क्रोध, द्वेष और घृणा को जीतने की शक्ति देता है, और हमारे विरोधी को भी हमारे विचारों के प्रति सहानुभूति और सम्मान का भाव देता है।
आज जब हम सत्य की बात करते हैं, तो यह प्रश्न उठता है कि क्या हम सत्य के प्रति उतने ही सजग हैं जितने गांधी जी थे? क्या हम सत्य की अपेक्षा केवल दूसरों से करते हैं, या अपने जीवन में भी उसे उतारते हैं? आज हम गांधी जी के विचारों को कम या ज्यादा मन उससे कोई फर्क नहीं पड़ता परंतु सत्याग्रह निश्चित तौर पर हमें यह सिखाता है कि सत्य केवल दूसरों से अपेक्षित नहीं, बल्कि यह स्वयं के भीतर से भी शुरू होता है। सत्य का आग्रह तभी सफल होता है जब हम अपने जीवन में भी उसी सत्य के मार्ग पर चलें, जिस पर चलने की हम दूसरों से अपेक्षा करते हैं।
गांधी जी का सत्य और उनका सत्याग्रह केवल एक राजनीतिक विचारधारा नहीं थी, बल्कि यह एक जीवन दर्शन था। यह दर्शन हमें बताता है कि सत्य के प्रति हमारा आग्रह हमें और हमारी समाज को सही दिशा में ले जाने का मार्ग है। सत्याग्रह हमें यह सिखाता है कि सत्य का मार्ग कठिन हो सकता है, परंतु यह हमारे और समाज के लिए सही और आवश्यक है। महात्मा गांधी का सत्य और सत्याग्रह हमें आज भी यह प्रेरणा देता है कि नैतिकता और सच्चाई ही हमारी असली शक्ति हैं।
गीता सिंह
रायगढ़