(01) ब्रहमा, विष्णु महेश, दुर्गा को न मानने वाले, तिलक न लगाने वाले, सनातनी सभ्यता संस्कृति में विश्वास न रखनें वाले, वन्देमातरम एवं भारत माता की जय न बोलने वालों इस कार्यक्रम से पूरी तरह दूर रहें। इस पर समझौता करने की सलाह मत दें।
(02) कार्यक्रम में आने वाला हर साहित्यकार/कलाकार हमारे लिए अतिथि है। समान महत्व रखता है। हम अतिथि देवों भवः के परिपाटी पर इस कार्यक्रम को आयोजित करते हैं। इस लिए अपने रूतवे, पद या श्रेष्ठता के आधार पर किसी विशेष सुविधा की न चाहत रखें और न कहें।
(03)कार्यक्रम स्थल गाँव में होने के कारण होटल सुविधा नहीं है, इस लिए पुरूषों को कार्यक्रम स्थल के पास ही कामन हाल में एवं महिलाओं को आयोजक के घर में रहना होता है।रेलवे स्टेशन से कार्यक्रम स्थल तक लाने व पहुॅंचाने की जिम्मेदारी आयोजक की होती है। न कोई अतिथि न कोई बाहरी। एक परिवारिक उत्सव की तरह, आईये और भीड़-भाड़ से दूर, ताजी हवा का आनंन्द लें , भोजन का मजा ले, घूमें, दर्षन पूजन करें।
(04) कार्यक्रम विशुद्ध रूप से ग्रामीण सभ्यता एवं संस्कृति पर आयोजित होने के कारण भोजन व्यवस्था बिना लहुसन प्याज के सादगी पर आधारित रहती है। जिसमें किसी दिन बाटी-चोखा-दाल, तो किसी दिन कढ़ी, फुलैरा, पूरी-सब्जी, पीली दाल-चावल व मौसमी सब्जी ही मिलती है। समय-समय पर चाय, नास्ता जिसमें चना, भूंजा, पकौड़ी, छोला-समोसा-जिलेबी ही उपलब्ध रहती है। हम अलग से कोई व्यवस्था नहीं कर पाते। बुजुर्ग और बिमार के लिए बस रोटी, नहाने व पीने के लिए गर्म पानी, आपात काल के लिए एंबुलेंस इत्यादि की व्यवस्था रहती है।
(05) कई कार्यक्रम होने के कारण दर्शकों की संख्या बहुत ही हम होती है, अधिक दर्शकों एवं श्रोताओं के बीच काव्य पाठ या कार्यक्रम प्रस्तुति की चाह रखने वालों के लिए कार्यक्रम नहीं है।यह कार्यक्रम एक सीखने-सिखाने का मंच है। जहाँ बुजुर्ग और अनुभवी साहित्यकारों एवं कलाकारों को हर कार्यक्रम में उनकी योग्यता अनुसार सम्मान देकर उनके अनुभवों का लाभ लेते हैं वही युवा और नवप्रवेशी साहित्यकारों/कलाकारों को भी यथोचित सम्मान देकर उनकी प्रतिभा को निखारने का काम करते है। व्यवस्था एवं स्वागत में हर अतिथि विशेष है।
प्रसिद्ध जासूसी उपन्यासकार गोपालराम गहमरी (1866-1940) की स्मृति में उनके जन्मस्थली ग्राम गहमर, जनपद गाजीपुर उत्तर प्रदेश में दिनांक 20 से 22 दिसंबर 2024 तक होने वाला 10वां गोपालराम गहमरी साहित्य व कला महोत्सव एवं सम्मान समारोह
* शह़र की चकाचौंध से दूर एक गांव में होने वाला कार्यक्रम है।
* यह आयोजन स्थल रेलवे स्टेशन से मात्र 200 मीटर दूर एक महाविद्यालय में होता है।
* इस आयोजन में सभी के लिए बिना लहसुन-प्याज के भोजन लकड़ी के चुल्हे पर बनता है।
* सब्जियां सीधे खेत से ताजी आती हैं, तथा तेल-मसाला नाम का होता है।
* भोजन में कंडे (उपले/गोइठा, गोबर के ईंधन ) पर बने लिट्टी-चोखा, मूछी-फुलवरा (स्थानीय व्यंजन), चावल-पीली दाल, रोटी, चटनी, घर का बना अचार, ताजे घर के पीसे आटे की पूड़ी-सब्जी, नास्ते में चना-दही-जिलेबी, छोला-समोसा , भूंजा दिया जाता है।
* महिलाएं आयोजक के घर और पुरुष आयोजन स्थल पर कामन हाल में रहते हैं।
* सबको नहाने के लिए गर्म पानी उपलब्ध रहता है।
* कार्यक्रम के अंतिम दिन गंगा स्थान, गंगा-परिक्रमा, मां कामाख्या दर्शन पूजन एवं गांव भ्रमण की सुविधा रहती है।
* कार्यक्रम के अंतिम दिन शादि-शक्ती मां कामाख्या के मंडप में भक्तिमय काव्य गोष्ठी मंदिर के महंत की मौजूदगी में होती है।
* 70 वर्ष से ऊपर के साहित्यकारों के लिए रहने-खाने की विशेष व्यवस्था उनके स्वास्थ्य के आधार पर रहती है।
* सम्मान में सभी को मां की चढ़ाई लाल चुनरी, नारियल, विवाहित महिलाओं को श्रंगार का 5 चढ़ा हुआ उपहार, सम्मान-पत्र, स्मृति चिन्ह दिया जाता है।
* अकस्मात चिकित्सा के लिए सम्पूर्ण व्यवस्था रहती है।
* नये रचनाकारों को अपनी प्रतिभा दिखाने का पूरा अवसर रहता है।
* गहमर एशिया महाद्वीप का सबहे बड़ा गांव है। जिसे सैनिकों एवं साहित्यकारों का संगम स्थल कहा गया है। यही से आगे जा कर राम ने ताड़का राक्षसी का वध किया था।
शहरी चकाचौंध से दूर एक सनातनी गांव में आपका स्वागत है
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गोपालराम गहमरी की स्मृति में साझा संग्रह का प्रकाशन अंतिम तिथि 15 अक्टूबर