हिंदी के महान सेवक, उपन्यासकार तथा पत्रकार ने वर्षों तक बिना किसी सहयोग के ‘जासूस’ पत्रिका निकाला और 200 से अधिक उपन्यास , सैकड़ों कहानियों के अनुवाद किए थे । रवीन्द्रनाथ ठाकुर की ‘चित्रागंदा’ काव्य का प्रथम हिंदी अनुवाद गहमरीजी द्वारा अनुवाद किया गया था । वे हिंदी की अहर्निश सेवा की, लोगों को हिंदी पढऩे को उत्साहित किया, ऐसी रचनाओं का सृजन करते रहे कि लोगों ने हिंदी सीखी। लेखक की कृतियों को पढ़ने के लिए गैरहिंदी भाषियों ने हिंदी सीखी गोपालराम गहमरी थे। गहमरी ने प्रारंभ में नाटकों का अनुवाद किया, उपन्यासों का अनुवाद करने लगे। बंगला से हिन्दी में किया गया इनका अनुवाद तब बहुत प्रामाणिक माना गया है। गोपालराम गहमरी ने कविताएं, नाटक, उपन्यास, कहानी, निबंध और साहित्य की विविध विधाओं में लेखन किया, लेकिन प्रसिद्धि मिली जासूसी उपन्यासों के क्षेत्र में। ‘जासूस’ नामक एक मासिक पत्रिका निकाली। इसके लिए इन्हें प्रायः एक उपन्यास हर महीने लिखना पड़ा। 200 से ज्यादा जासूसी उपन्यास गहमरीजी ने लिखे। ‘अदभुत लाश’, ‘बेकसूर की फांसी’, ‘सर-कटी लाश’, ‘डबल जासूस’, ‘भयंकर चोरी’, ‘खूनी की खोज’ तथा ‘गुप्तभेद’ इनके प्रमुख उपन्यास हैं। जासूसी उपन्यास-लेखन की जिस परंपरा को गहमरी ने जन्म दिया था । साहित्यकारों में गोपाल राम गहमरी हिन्दी साहित्य में जासूसी उपन्यास के जनक है। वे हिंदी के महान सेवक, उपन्यासकार तथा पत्रकार थे। उन्होंने 38 वर्षों तक बिना किसी सहयोग के ‘जासूस’ नामक पत्रिका का संचालन किया। उन्होंने दो सौ से अधिक उपन्यास लिखें, सैकड़ों कहानियों के अनुवाद किए, जिनमें प्रमुख रवीन्द्रनाथ टैगोर की ‘चित्रागंदा’ भी थी। वह ऐसे लेखक थे जो हिन्दी पढ़ने वालों की संख्या में इजाफा कर सके। हिन्दी भाषा में देवकीनंदन खत्री के बाद यदि किसी दूसरे लेखक की कृतियों को पढ़ने के लिए गैरहिंदी भाषियों ने हिंदी सीखी तो वह गोपाल राम गहमरी थे । गहमर निवासी रामनारायण के पुत्र गोपाल राम गहमरी का जन्म सन् 1866 (पौष कृष्ण 8 गुरुवार संवत् 1923) में उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के गहमर में हुआ था। छह मास की आयु में गोपाल राम के पिता का देहांत होने के बाद इनकी माँ इन्हें लेकर अपने मायके गहमर चली आईं। गोपाल राम की गहमर में प्रारंभिक शिक्षा वर्नाक्यूलर मिडिल की शिक्षा प्राप्त की थी । 1879 में मिडिल उतीर्ण होने के बाद गहमर स्कूल में चार वर्ष तक छात्रों को पढ़ाते रहे और उर्दू और अंग्रेजी का अभ्यास करते रहे। पटना नार्मल स्कूल में भर्ती हुए, जहां इस शर्त पर प्रवेश हुआ कि उत्तीर्ण होने पर मिडिल पास छात्रों को तीन वर्ष पढ़ाना पड़ेगा। आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण शर्त को स्वीकार कर लिया। गहमर से अतिरिक्त लगाव के कारण गोपाल राम ने अपने नाम के साथ अपने ननिहाल को जोड़ लिया और गोपाल राम गहमरी कहलाने लगे थे । बंबई में गहमरी की कलम गतिशील रही। गोपाल राम गहमरी ने लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के पूरे मुकदमे को अपने शब्दों में दर्ज किया था। उनके सम्पादन में प्रकाशित होने वाले पत्र-पत्रिकाओं की एक लंबी श्रृंखला है। प्रतापगढ़ के कालाकांकर से प्रकाशित ‘हिन्दुस्थान’ दैनिक , बंबई व्यापार सिन्धु, गुप्तगाथा, श्री वेंकटेश्वर समाचार और भारत मित्र हैं। उनमें हिंदी भाषा के लिए कुछ अलग और वृहत करने की बेचैनी थी और दूसरी ओर उनके भीतर पनपती ‘जासूस’ की रूपरेखा थी । गहमरी ने मासिक पत्रिका ‘जासूस’ का प्रकाशन शुरू किया, जिसका विज्ञापन उनके ही संपादन में आने वाले अखबार ‘भारत मित्र’ में दिया था । वर्ष 1900 के दौरान किसी पत्रिका के इतिहास में नाम अंकित हुआ है । देवकी नंदन खत्री और गोपाल राम गहमरी के द्वारा शुरू ‘जासूसी लेखन’ की परंपरा साहित्यिक पंडितों की उपेक्षा और तिरस्कार के बावजूद गहमरी और खत्री की बदौलत लंबे समय तक चलती रही। हिन्दी में ‘जासूस’ शब्द के प्रचलन का श्रेय गहमरी है। गहमरी ने लिखा है कि ‘1892 से पहले किसी पुस्तक में जासूस शब्द नहीं दिखाई नहीं पड़ा था।’ ‘जासूस’ अंक में एक जासूसी कहानी के अलावा समाचार, विचार और पुस्तकों की समीक्षाएं नियमित रूप से छपती थी । गहमरी की ‘जासूस’ ने प्रारंभिक अंकों से पाठकों में लोकप्रियता प्राप्त की। गोपालराम गहमरी जासूसी ढंग की कहानियों और उपन्यासों के लेखन की ओर प्रवृत्त हुए थे । गहमरी के योगदान को केवल जासूसी उपन्यासों तक सीमित किया जाता है, बल्कि उनका योगदान हिंदी गद्य साहित्य में अद्वितीय है। हिन्दी अपने विकास काल में हिंदी गद्य साहित्य ब्रजभाषा व खड़ीबोली का द्वन्द झेल रहा था तब गहमरी न केवल खड़ीबोली के पक्ष में खड़े होते हैं बल्कि ब्रजभाषा के पक्षकारो को खड़ीबोली के पक्षकारो में शामिल करते हैं। सहज, सुगम, सुंदर और सुबोध हिंदी-प्रचार गहमरी जी की साहित्य सेवा का मुख्य उद्देश्य था। हिंदी गद्य साहित्य के विकास में गोपाल राम गहमरी के जासूसी उपन्यासों के महत्तवपूर्ण योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। गहमरी जी का निधन 1946 ई. में हुआ था ।
जासूस के जनक प्रसिद्ध जासूसी उपन्यासकार गोपालराम गहमरी की स्मृति में गहमर जी की जन्मभूमि ग्गहमर पर साहित्य सरोज पत्रिका एवं आनलाइन पत्रिका धर्मक्षेत्र द्वारा *गोपाल राम गहमरी साहित्यकार महोत्सव एवं सम्मान समारोह पिछले 10 वर्षों से किया जाता है । साहित्य सरोज भोपाल के प्रधान संपादिका कांति शुक्ला एवं अखंड गहमरी प्रकाशक व संपादक साहित्य सरोज द्वारा गोपालराम गहमरी स्मृति सम्मान समारोह आयोजित किया जाता है। गहमर के निवासी एवं गोपालराम गहमरी संस्थान , सरोज पत्रिका तथा धर्मक्षेत्र के संस्थापक अखंड प्रताप सिंह गहमरी द्वारा प्रतिवर्ष गहमरी जी की स्मृति में कार्य संपादन किया जा रहा है।
एशिया महाद्वीप तथा भारत का सबसे बड़ा गांव उत्तर प्रदेश का गाजीपुर जिलांतर्गत पटना और मुगलसराय रेल मार्ग पर स्थित गंगा नदी के किनारे वर्गमील क्षेत्रफल में फैले 22 टोलों से युक्त गहमर स्थित है । राजा धामदेव राव द्वारा कुल देवी माता कामख्या की स्थापना गहमर में की गई थी । गहमर के 10 हजार लोग इंडियन आर्मी में जवान से लेकर कर्नल और 14 हजार से ज्यादा भूतपूर्व सैनिक हैं। गाजीपुर जिला मुख्यालय गाजीपुर से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गहमर में रेलवे स्टेशन पटना और मुगलसराय से जुड़ा हुआ है। सन् 1530 में कुसुम देव राव ने ‘सकरा डीह’ बसाया था। विभिन्न प्रसिद्ध व्यक्ति सैनिक के नाम पर भिन्न भिन्न 22 टोले है। प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध तथा 1965 और 1971 के युद्ध या कारगिल की लड़ाई में गहमर के फौजियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। विश्वयुद्ध के समय अंग्रेजों की फौज में गहमर के 228 सैनिक में 21 मारे गए थे। शहीदों की याद में गहमर में शिलालेख है। गहमर के भूतपूर्व सैनिकों द्वारा पूर्व सैनिक सेवा समिति नामक संस्था स्थापित है। गहमर के युवक गंगा तट पर स्थित मठिया चौक पर सुबह-शाम सेना की तैयारी करते हैं। इंडियन आर्मी गहमर में भर्ती शिविर लगाया करती थी । सैनिकों की बढ़ती संख्या को देखते हुए भारतीय सेना ने गांव के लोगों के लिए सैनिक कैंटीन की सुविधा उपलब्ध कराई थी। जिसके लिए वाराणसी आर्मी कैंटीन से सामान हर महीने में गहमर गांव में भेजा जाता था ।
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