Breaking News

अहिल्याबाई होलकर एक अद्वितीय प्रतिभा की साम्राज्ञी- डॉ शीला शर्मा

बहुत कम लोग ऐसे होते है जो स्थान और समय की सीमाओं को तोड़ , लोगो के दिलो में अपना स्थान बना लेते है , जीते जी किवदंती बन जाते है। होल्कर साम्राज्य की महारानी अहिल्याबाई ऐसी ही एक महिला थी जो अपनी न्यायप्रियता और प्रजावत्सलता के लिए जानी जाती हैं। उनकी न्यायप्रियता के किस्से आज भी एक आदर्श प्रस्तुत करते है। इसीलिए भारत के समूचे ज्ञात इतिहास में अहिल्याबाई होल्कर का स्थान अद्वितीय है”।नैतिक आचरण के कारण समाज ने उन्हें देवी का दर्जा दिया था, आज भी अहिल्याबाई होलकर का नाम सुनकर लोगो का मस्तक श्रद्धा से झुक जाता है। जिस वक्त राजनीति और प्रशासन में महिलाओ की भूमिका नगण्य थी, ऐसे समय मेंअहिल्याबाई
होल्कर जो हाथी की पीठ पर चढ़कर करती थीं युद्ध, पति-पुत्र की मृत्यु के बाद संभाली राज्य की कमान।
भारत के मराठा मालवा राज्य की होलकर रानी थीं। राजमाता अहिल्याबाई का जन्म महाराष्ट्र के अहमदनगर के जामखेड के चोंडी गांव में हुआ था। उन्होंने अपनी राजधानी को नर्मदा नदी के किनारे इंदौर के दक्षिण में महेश्वर में स्थानांतरित कर दिया अहिल्याबाई के पति खंडेराव होलकर 1754 में कुंभेर की लड़ाई में मारे गए थे। बारह साल बाद, उनके ससुर मल्हार राव होलकर की मृत्यु हो गई। उसके एक साल बाद उन्हें मालवा राज्य की रानी के रूप में ताज पहनाया गया। उन्होंने अपने राज्य को लूटने वाले आक्रमणकारियों से बचाने की कोशिश की। उन्होंने खुद युद्ध में सेनाओं का नेतृत्व किया। उन्होंने तुकोजीराव होलकर को सेना प्रमुख नियुक्त किया। रानी अहिल्याबाई हिंदू मंदिरों की महान अग्रणी और निर्माता थीं। उन्होंने पूरे भारत में सैकड़ों मंदिर और धर्मशालाएँ बनवाईं।
अहिल्याबाई का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के वर्तमान अहमदनगर जिले के चौंडी गांव में हुआ था। उनके पिता मनकोजी राव शिंदे गांव के पाटिल थे। उस समय महिलाएं स्कूल नहीं जाती थीं, लेकिन अहिल्याबाई के पिता ने उन्हें पढ़ना-लिखना सिखाया।
इतिहास के मंच पर उनका प्रवेश एक दुर्घटना की तरह था: मराठा पेशवा बालाजी बाजी राव की सेवा में एक कमांडर और मालवा क्षेत्र के स्वामी मल्हार राव होलकर, पुणे के रास्ते में चौंडी में रुके और किंवदंती के अनुसार, गांव में मंदिर सेवा में आठ वर्षीय अहिल्याबाई को देखा। उसकी धर्मपरायणता और उसके चरित्र को पहचानते हुए, वह लड़की को अपने बेटे खंडेराव (1723-1754) की दुल्हन के रूप में होलकर क्षेत्र में ले आए। 1733 में उनकी शादी खंडेराव होलकर से हुई। 1745 में, उन्होंने अपने बेटे मालेराव को जन्म दिया और 1748 में, एक बेटी मुक्ताबाई को जन्म दिया। मालेराव मानसिक रूप से अस्वस्थ थे और 1767 में उनकी बीमारी से मृत्यु हो गई। अहिल्याबाई ने एक और परंपरा को तोड़ा जब उन्होंने अपनी बेटी की शादी यशवंतराव से की, जो एक बहादुर लेकिन गरीब आदमी था, जब उसने डकैतों को हराने में सफलता हासिल की थी।दस-बारह वर्ष की आयु में उनका विवाह हुआ। उनतीस वर्ष की अवस्था में विधवा हो गईं। पति का स्वभाव चंचल और उग्र था। वह सब उन्होंने सहा। फिर जब बयालीस-तैंतालीस वर्ष की थीं, पुत्र मालेराव का देहांत हो गया। जब अहिल्याबाई की आयु बासठ वर्ष के लगभग थी, दौहित्र नत्थू चल बसा। चार वर्ष पीछे दामाद यशवंतराव फणसे न रहा और इनकी पुत्री मुक्ताबाई सती हो गई। दूर के संबंधी तुकोजीराव के पुत्र मल्हारराव पर उनका स्नेह था; सोचती थीं कि आगे चलकर यही शासन, व्यवस्था, न्याय औऱ प्रजारंजन की डोर सँभालेगा; पर वह अंत-अंत तक उन्हें दुःख देता रहा।
अहिल्याबाई ने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर भारत-भर के प्रसिद्ध तीर्थों और स्थानों में मंदिर बनवाए, घाट बँधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण किया, मार्ग बनवाए-सुधरवाए, भूखों के लिए अन्नसत्र (अन्यक्षेत्र) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बिठलाईं, मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति शास्त्रों के मनन-चिंतन और प्रवचन हेतु की। और, आत्म-प्रतिष्ठा के झूठे मोह का त्याग करके सदा न्याय करने का प्रयत्न करती रहीं-मरते दम तक। ये उसी परंपरा में थीं जिसमें उनके समकालीन पूना के न्यायाधीश रामशास्त्री थे और उनके पीछे झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई हुई। अपने जीवनकाल में ही इन्हें जनता ‘देवी’ समझने और कहने लगी थी। इतना बड़ा व्यक्तित्व जनता ने अपनी आँखों देखा ही कहाँ था। जब चारों ओर गड़बड़ मची हुई थी। शासन और व्यवस्था के नाम पर घोर अत्याचार हो रहे थे। प्रजाजन-साधारण गृहस्थ, किसान मजदूर-अत्यंत हीन अवस्था में सिसक रहे थे। उनका एकमात्र सहारा-धर्म-अंधविश्वासों, भय त्रासों और रूढि़यों की जकड़ में कसा जा रहा था। न्याय में न शक्ति रही थी, न विश्वास। ऐसे काल की उन विकट परिस्थितियों में अहिल्याबाई ने जो कुछ किया-और बहुत किया।-वह चिरस्मरणीय है।
इंदौर में प्रति वर्ष भाद्रपद कृष्णा चतुर्दशी के दिन अहिल्योत्सव होता चला आता है। अहिल्याबाई जब 6 महीने के लिये पूरे भारत की यात्रा पर गई तो ग्राम उबदी के पास स्थित कस्बे अकावल्या के पाटीदार को राजकाज सौंप गई, जो हमेशा वहाँ जाया करते थे। उनके राज्य संचालन से प्रसन्न होकर अहिल्याबाई ने आधा राज्य देेने को कहा परन्तु उन्होंने सिर्फ यह मांगा कि महेश्वर में मेरे समाज लोग यदि मुर्दो को जलाने आये तो कपड़ो समेत जलायॆं।
अहिल्याबाई के संबंध में दो प्रकार की विचारधाराएँ रही हैं। एक में उनको देवी के अवतार की पदवी दी गई है, दूसरी में उनके अति उत्कृष्ट गुणों के साथ अंधविश्वासों और रूढ़ियों के प्रति श्रद्धा को भी प्रकट किया है। वह अँधेरे में प्रकाश-किरण के समान थीं, जिसे अँधेरा बार-बार ग्रसने की चेष्टा करता रहा। अपने उत्कृष्ट विचारों एवं नैतिक आचरण के चलते ही समाज में उन्हें देवी का दर्जा मिला।
राज्य की चिंता का भार और उस पर प्राणों से भी प्यारे लोगों का वियोग। इस सारे शोक-भार को अहिल्याबाई का शरीर अधिक नहीं संभाल सका। और 13 अगस्त सन् 1795 को उनकी जीवन-लीला समाप्त हो गई। स्‍वतंत्र भारत में अहिल्‍याबाई होल्‍कर का नाम बहुत ही सम्‍मान के साथ लिया जाता है। इनके बारे में अलग अलग राज्‍यों की पाठय पुस्‍तकों में अध्‍याय मौजूद हैं। स्‍कूली बच्‍चे अहिल्‍याबाई के बारे में चाव से पढ़ते हैं और उन से प्रेरणा लेते हैं।
चूंकि अहिल्‍याबाई होल्‍कर को एक ऐसी महारानी के रूप में जाना जाता है, जिन्‍होंनें भारत के अलग अलग राज्‍यों में मानवता की भलाई के लिये अनेक कार्य किये थे। इसलिये भारत सरकार तथा विभिन्‍न राज्‍यों की सरकारों ने उनकी प्रतिमायें बनवायी हैं और उनके नाम से कई कल्‍याणकारी योजनाओं भी चलाया जा रहा है।ऐसी ही एक योजना उत्‍तराखंड सरकार की ओर से भी चलाई जा रही है। जो अहिल्‍याबाई होल्‍कर को पूर्णं सम्‍मान देती है। इस योजना का नाम ‘अहिल्‍याबाई होल्‍कर भेड़ बकरी विकास योजना है।
अहिल्‍याबाई होल्‍कर भेड़ बकरी पालन योजना के तहत उत्‍तराखंड के बेरोजगार, बीपीएल राशनकार्ड धारकों, महिलाओं व आर्थिक के रूप से कमजोर लोगों को बकरी पालन यूनिट के निर्मांण के लिये भारी अनुदान राशि प्रदान की जाती है। लगभग 100000 रूपये की इस युनिट के निर्मांण के लिये सरकार की ओर से 91770 रूपये सरकारी सहायता रूप में अहिल्‍याबाई होल्‍कर के लाभार्थी को प्राप्‍त होते हैं। अहिल्‍याबाई होल्‍कर भेड़ बकरी पालन योजना के तहत उत्‍तराखंड के बेरोजगार, बीपीएल राशनकार्ड धारकों, महिलाओं व आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को बकरी पालन यूनिट के निर्मांण के लिये भारी अनुदान राशि प्रदान की जाती है। लगभग 100000 रूपये की इस युनिट के निर्मांण के लिये सरकार की ओर से 91770 रूपये सरकारी सहायता रूप में अहिल्‍याबाई होल्‍कर के लाभार्थी को प्राप्‍त होते हैं।

About sahityasaroj1@gmail.com

Check Also

झूला का रहस्य-

झूला का रहस्य-

गाँव के पास एक बहुत पुराना पीपल का पेड़ था और उस पर एक झूला …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *