कभी मैकाले ने जो बीज बोये थे, आज उनकी कटीली फसल से समूचा देश लहूलुहान हो रहा है l पर मैकाले से मुकाबला कौन करे?यह सवाल आज के दौर में उसी तरह से है, जिस तरह कभी चूहों के झुंड में यह सवाल उठता था कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे?नुकसान से सभी परिचित हैं, पर समाधान का साहस कौन करे?आज की शिक्षा में कुंठा, निराशा और हताशा की पर्याय बनी कुछ डिग्रियां, उपाधियों के छोटे बड़े ढेर बचे हैं l भारत में अंग्रेजी साम्राज्य ने यह सिद्ध कर दिया कि वैचारिक साम्राज्य की स्थापना, राजनीतिक साम्राज्य की स्थापना से कहीं ज्यादा प्रभावी होता है ,क्योंकि वह समाज के जीवन और संस्कृति में गहरी घुसपैठ कर जाती है l यह अचेतन रूप से आदमी के सोंच विचार की प्रक्रिया और वैचारिक जीवन को बदल देती है l यदि कोई बाहरी देश आक्रमण करे तो उसका प्रतिकार लड़कर किया जाता है और सजगता रहे तो उसे रोका जा सकता है l पर यदि मन में और विचार में कठिनाई को महसूस करना बंद कर देते हैं तो असली गुलामी शुरू होती है l तब जो वास्तव में अकल्याणकारी और अमंगल का द्योतक होता है वह हमें श्रेयस्कर और प्रिय लगने लगता है l हम ललचायी नजरों से उसे देखने लगते हैं l यह दासता का शायद निकृष्टतम रूप होता है l
वर्तमान में बच्चे बड़ी बड़ी डिग्रियां ले रहे हैं, अंग्रेजी फर्राटेदार बोल रहे हैं पर क्या नैतिकता व संस्कार उन बच्चों में नजर आती है तो जवाब मिलेगा नहीं या बहुत कम l पढ़ाई के नाम पर प्रेशर तो इतना बढ़ चुका है कि कई बच्चे डिप्रेशन में चले जा रहे और उनके दिमाग में चिड़चिड़ापन व पीछे रह जाने का भय बना हुआ रहता है l और जो बच्चे इन सभी परिस्थितियों से आगे बढ़कर ऊंचे पद को प्राप्त कर लेते हैं उनके पास इतना समय नहीं है कि कभी अपने माता पिता का हालचाल भी पूछ ले l बड़ी बड़ी डिग्रियां तो ले ली पर इतना संस्कार नहीं कि अपनों से बड़ो से कैसा वार्तालाप करें, उनको सम्मान दे, क्योंकि उन्हें तो सिर्फ अपना ऊंचा पद दिखता है बांकी सभी तुच्छ व निम्न नजर आते हैं, क्योंकि संसार को देखने का नजरिया वैसा ही बन गया है l
आज हम कई आतंकवाद व नक्सलवाद को देखते हैं, डॉक्टर व इंजीनियर की डिग्रियां पास में रहता है पर वे रास्ता भटककर गलत दिशा की ओर मुड़ चुके हैं l बड़े परमाणु व बम का प्रयोग देश की सुरक्षा के लिए बनाना छोड़कर, मानव जाति को मिटाने के लिए उसका प्रयोग कर रहे हैं l ये बहुत ही शिक्षित लोग हैं परंतु शिक्षा का सही उपयोग नहीं कर पा रहें हैं l
इन सभी का कारण यह है कि हमारे समुदाय से संस्कार गायब होते जा रहे हैं l हमारी संस्कृति व ऋषियों द्वारा दिया गया संस्कार वो रसायन है जो मानव को महामानव बनाती है l वर्तमान शिक्षा में विद्या का समावेश होना आवश्यक है क्योंकि शिक्षा सिर्फ अक्षर ज्ञान करवाती है व व्यक्ति को शिक्षित बनाती है अपितु विद्या यह सिखाती है कि उस शिक्षा का उपयोग सही दिशा में करें l
शिक्षा के साथ छात्रों कोजीवन जीने की कला, जीवन प्रबंधन एवम मूल्यों की नैतिक शिक्षा की भी जरूरत है l वर्तमान स्थिति का समाधान संस्कार रूपी क्रांति की नई रोशनी में है l इसी के उजाले में नये जीवन मूल्य दिखाई देंगें l छात्रों की दशा सुधरेगी और उन्हें सही दिशा मिलेगी l इसकी शुरुआत हम शिक्षकों को करना होगा l हमें प्राथमिक कक्षा से ही बच्चों को संस्कार अपने शालाओं में देना होगा l क्योंकि बच्चे पर उसके शिक्षक व शाला का प्रभाव सबसे अधिक होता है l
हमारे शालाओं में हर वर्ग व हर धर्म के बच्चे आते हैं और संस्कार एक ऐसा बीज है जो सबके लिए फलित होता है l हम बसंत पर्व पर नये बच्चों को विद्यारंभ संस्कार करवाये और शिक्षा के साथ विद्या के क्रम का रोपण आरम्भ करें l जन्मदिवस संस्कार के माध्यम से बतायें कि मानव जीवन का लक्ष्य क्या है और हम उसे सुगढ़ कैसे बनाये l
खेल की प्रक्रिया में शिक्षक स्वयं शामिल हो, क्योंकि खेल खेल में हम बच्चों का सिर्फ शारिरिक ही नहीं, मानसिक विकास भी कर रहे होते हैं l बच्चा खेल के द्वारा संगठन का महत्व समझता है, टीमवर्क के साथ काम करना सीखता है l
शिक्षा संस्कार क्रांति से ही शिक्षा के परिदृश्य में छाया हुआ कुहासा मिटेगा और उसका विद्या वाला स्वरूप निखरकर सामने आयेगा l तभी पता चलेगा कि शिक्षा जीवन की सभी दृश्य एवम अदृश्य शक्तियों का विकास है, तभी जाना जा सकेगा कि श्रेष्ठ विचार और संस्कार से ही व्यक्ति गढ़े जाते हैं।
श्रीमती दीपमाला वैष्णव
जिला -कोंडागांव(बस्तर) 494226 छत्तीसगढ़
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