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"साहित्य सरोज त्रैमासिक पत्रिका - कविता, कहानी, लेख, शोध पत्र, बाल उत्‍थान, महिला उत्‍थान, फैंशन शों, शार्ट फिलम और विशेष आयोजन के लिए पढ़ें। संपादक: अखण्ड प्रताप सिंह 'अखण्ड गहमरी

भारतीय साहित्य-संस्कृति और विरासत को सहेजने का अद्भभुत प्रयास-रामबाबू मैहर देव

 कहते हैं कि कहीं पर आप जाते नहीं है,बल्कि पहुंचाये जाते है।यह सबकुछ पहले से तय है।मां सरस्वती के आशीर्वाद से मां कामाख्या की नगरी व उपन्यासकार गोपालराम गहमरी की नगरी और सैनिकों के लिए प्रसिद्ध एशिया द्वीप के सबसे बड़े गांव गहमर मेरा अचानक जाना तय हुआ। इस यात्रा में पहले से बिल्कुल तय नहीं था,मैं पहुंच भी पाऊंगा या नहीं,लेकिन ईश कृपा से इस पुण्य भूमि पर मेरा जाना हुआ और आकर संस्मरण लिख रहा हूं।
      साहित्य सरोज पत्रिका द्वारा सम्मान की जानकारी फेसबुक के माध्यम से मिली थी और व्हाट्स्सप्प के माध्यम से सूचना मिली।खैर,२० दिसम्बर तक मुझे छुट्टी नहीं  मिलना तय था,सो २१ दिसम्बर को मैंने आवेदन किया।उसमें भी ऊहापोह की स्थिति बनी रही।२२ दिसम्बर को एक टी.वी.कार्यक्रम की शूटिंग थी।उन्हे मना किया और आयोजक महोदय मान भी गए।
   इस बार दिसम्बर की सर्द रातें कुछ ज्यादा ही सर्द थी।२० दिसम्बर की सुबह से सारे दिन मैं  गहमर आने की तैयारी करता रहा हूं।रात को मैंने पास के रेल्वे-स्टेशन से इटारसी जंक्शन के लिए ट्रेन पकड़ी और करीब एक घंटे से अधिक अंतराल के बाद इटारसी जंक्शन पर था।वहां  से मैंने लोकमान्य टर्मिनस-पटना एक्सप्रेस(जनता एक्सप्रेस)को पकड़ा।ट्रेन पकड़ने के पूर्व यह भी वाक्या हुआ,ट्रेन कुछ समय पहले ही आ गई थी।कुछ युवकों ने बताया कि यह ट्रेन पटना जायेगी।मैं आश्वस्त हुआ और ट्रेन  में बैठ गया।ट्रेन कई हाल्ट पर रुकती हुई,छुक-छुक करती चली जा रही थी।
पं.दीनदयाल जंक्शन(मुगलसराय),जमानिया व दिलदार नगर स्टेशन से गुजरते वक्त मेरे कुछ सहयात्री कह रहे थे कि कहां जा रहे हो?मैं,-“गहमर”।सहयात्री बता रहे थे कि यह एशिया का सबसे बड़ा गांव है और सबसे अधिक सैनिक देश-सेवा में यहीं से है और एक समय यहां पर मिलिट्री के कैम्प यहां पर लगते थे।वास्तव में अपनी गंतव्य-यात्रा के बारे में सुनकर यह सब सुखद आश्चर्य देता है।
१०-१५ मिनट के अंतराल के बाद मेरी मंजिल”गहमर”आ गया।रेल्वे-स्टेशन पर उतरा ही था कि श्री शिवनाथ सिंह जी का संदेश आ गया कि रेल्वे-स्टेशन से दायीं और मात्र ३०० मीटर की दूरी पर मां कामाख्या कॉलेज में यह कार्यक्रम चल रहा है।कार्यक्रम -स्थल नजदीक ही था,मुझे पहुंचने में देरी न हुई। मेरी इस कार्यक्रम में उपस्थिति २१ दिसम्बर २०२४ को रात्रिकालीन समय पर हुई।इससे पूर्व कार्यक्रम के आयोजक एवं संरक्षक श्री अखंड प्रताप सिंह “गहमरी”अनुसार,
“19 दिसम्‍बर को साय 5 बजे पटना-दीनदयाल उपाध्‍याय पैसेंजर से बौद्ध गया के आर्चाय डॉ धमेंन्‍द्र तिवारी जी के आगमन के साथ अतिथियों के आने का सिलसिला शुरू हुआ। वह गाजीपुर से इन्‍द्रजीत तिवारी निर्भिक जी के आने के बाद समाप्‍त हुआ।  20 दिसम्‍बर की सुबह तक  देश के कोने-कोने से 50 से अधिक साहित्‍यकार व कलाकार गहमर पहुँच चुके थे।
20 दिसम्‍बर की सुबह 11 बजे कार्यक्रम स्‍थल पर सुंदरकांड का पाठ प्रारंम्‍भ हुआ। जिसमें गहमर के श्री अशोक उपाध्‍याय, श्री सुरेश सिंह जी श्री मगनू सिंह जी, आचार्य डॉ धमेन्‍द्र तिवारी, डॉ उषा किरण श्रीवास्‍तव जी, संगीता गुप्‍ता जी, अनंता कुमारी जी एवं मिंटू शर्मा जी  ने हिस्‍सा लिया। इसके बाद शुरू हुआ शुभारंभ का दौर। आचार्य धर्मेन्‍द्र तिवारी जी के मंत्रोच्‍चारण के बीच बड़े भाई ग्राम प्रधान गहमर बलवंत सिंह बाला ने कार्यक्रम का शुभारंभ किया।  और  सभी अतिथियों का गोपालराम गहमरी कार्यक्रम में स्‍वागत करते हुए गोपालराम गहमरी के जीवन पर एवं कृतियों पर चर्चा में भाग लिया।”
इस समय मैं सीधे कार्यक्रम-स्थल पर जुडा।इस समय कलाकार श्री मस्ताना जी का संगीत कार्यक्रम चल रहा था।बीच-बीच में अखंड गहमरी जी सभी साहित्यकार-कलाकारों से  भोजन-विषयक भी पूछ रहे थे। कॉलेज के प्रांगण में एक व्यवस्थित पुस्तक-प्रदर्शिनी लगी हुई थी,जो बारम्बार मुझे अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। इस समय बहुत सारे कलाकारों ने एक से बढ़कर एक प्रस्तुति दी ।इसी समय एक नन्हीं-सी बिटिया ने प्रस्तुति दी,जिससे यह कार्यक्रम हमारी विरासत साहित्य और संस्कृति को भावी पीढ़ी में रोपित करने का कार्य नि:स्वार्थ भाव से पिछले कई सालों से करता आ रहा है।अनायास ही यह गहमर की पहचान बन गया है(मुझे माफ करे यहां के साहित्यकारों और सैनिकों से सारे देश में गहमर की पहचान है।
 दूसरे दिन हम सभी को गंगा-स्नान पश्चात मां कामाख्या देवी के दर्शन के लिए जाना था।अचानक ही गहमर थाने के टी-स्टॉल पर हम कुल तीन साहित्यकार इकट्ठे हो गये।समय की नियति देखिए,गंगा-घाट और  मां कामाख्या देवी मंदिर किसी ने नहीं देखा था,लेकिन रास्ता पूछते  हुए हम तीन लेखक मैं रामबाबू मैहर देव,शमशाबाद विदिशा म.प्र,श्री शिव नाथ जी,रायबरेली और श्री तेजपाल शर्मा जी,दिल्ली।और हमारा पथ-प्रदर्शक रहीं हिन्दी-साहित्य की दो कवयत्रि -लेखिका ,जिनके नाम से मैं अनभिज्ञ था।खैर,हम सबकी टोली अंजाने में मां कामाख्या देवी के मंदिर-स्थान की ओर बढे़ चली जा रही थी।
 लगभग  ३किमी किमी.का सफर तय करने के बाद हम सभी मंदिर प्रांगण पहुंच चुके थे।यहीं पर मंदिर के बाहर दूरी मैंने और श्री शिव नाथ जी ने स्नान किया ।तदुपरांत मां कामाख्या देवी,मां काली,राम मंदिर में हनुमान जी और राम-जानकी के दर्शन किए।बाद में हम सभी ने भैरव नाथ मंदिर के दर्शन किए।इस तरह से हम सभी बातचीत में मशगूल होते हुए जाने कब गहमर लौट आए पता ही नहीं चला।
                       इस दिन के कार्यक्रम में कुछ वक्ताओं की मन की बात भी हुई।दोपहर भोजन बाद दो शॉर्ट मूवी कॉम्पीटिशन एवं ब्लड दिखायी गई।इसमें कॉम्पीटिशन शॉर्ट मूवी को खजुराहो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में राजा बुंदेला अवार्ड से सम्मानित किया गया है,जिसे गहमर ग्राम नें स्थानीय कलाकारों द्वारा अभिनय किया गया एवं श्री अखंड प्रताप सिंह गहमरी ने निर्मित और निर्देशित किया है।इस समय कई बार कार्यक्रम में किसी भी प्रकार की अड़चन आने पर हल करने के लिए स्वयं अखंड ‘गहमरी’जी तत्पर दिखे,नहीं तो आमतौर परदेखने में आता है कि व्यक्ति इस स्थान पर अपनी शेखी बघारने और दूसरों को आदेशित करने से बिल्कुल भी नहीं रह पाता है।यह सरल व आत्मीय स्वभाव अखंड ‘गहमरी’जी में देखा जा सकता है। वे किसी से कहने से ज्यादा स्वयं करने में विश्वास रखते हैं और अपने निर्धारित लक्ष्य को हासिल करने तक पहुंचते हैं यानि लक्ष्य हासिल करते हैं।कार्यक्रम के आरंभ के पूर्व में यादगार के तौर पर’गहमर और गोपालराम’व पत्रिका ‘साहित्य-सरोज’का वर्ष नौवां अंक खरीद चुका था…बिल्कुल अविस्मरणी।
रात्रीकालीन समय में रैम्प-वॉक के साथ ही कवि-सम्मेलन आरंभ हुआ।जिसमें  देश कए विभिन्न प्रांतों से आए साहित्कारों -कलाकारों ने समां बांधा।बाद में सभी को यथोचित सम्मान से सम्मानित किया जाकर विदाई दी गई।
विदाई के समय श्री अखंड गहमरी जी भावुक हो गए ।यह विदाई का दर्द एर कलाकार-साहित्यकार से बेहतर भला कौन समझ सकता है? विदाई के समय हम सभी साहित्यकारों-कलाकारों के कहीं-न-कहीं आंसू भर आये थे।खैर,मिलना-बिछड़ना ईश्वर की नियति है।बस,यही समय अविस्मरणीय बनकर जहन में रह जाता है।रात्री में करीब २.२० पर मेरी ट्रेन थी।जाते हुए श्री अखंड गहमरी जी नमस्कार करते हुए विदा ली।एक बार फिर शॉर्ट मूवी के कलाकारों व उनके एक दोस्त के साथ “गहमर”रेल्वे-स्टेशन तक पहुंच चुका था।इस समय इन सभी से मूवी संबंधित बहुत सारी बातें हुईं।इन सह-बंधुओं की पहले ट्रेन आने से यह सभी जा चुके थे।कुछ समय बाद मेरी भी ट्रेन आ गई और मैं  सफर के लिए ट्रेन में बैठ गया…..सफर से वापसी…..अविस्मरणीय यादों के साथ।
©लेखक-रामबाबू मैहर देव,
शमशाबाद,विदिशा(मध्यप्रदेश)464111

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