एकता ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रही थी तभी फोन की घंटी घनघना उठी एकता झुंझलाते हुए कहा “पता नहीं इस समय किस का फोन आ गया”आज तो जरूर ऑफिस पहुंचने में देर हो जाएगी ।
“हैलो” एकता मैं अरुण बोल रहा हूं! मैं ऑफिस के बाहर तुम्हारा इंतजार करूंगा ऑफिस खत्म होते गेट पर मिलना।
“ठीक है”। फोन बंद हो गया
एकता सोच ने लगी कि अरुण को पता है मैंने शादी के लिए एक माह की छुट्टी लेली है आज ऑफिस आई हूं इसीलिए मुझ से मिलने आया होगा? उसने जल्दी से अपनी स्कूटी निकाली और ऑफिस के लिए रवाना हो गई! आज उसका मन ऑफिस में काम में नहीं लग रहा था अरूण से मिलने का इंतजार कर रही थी।
शाम 5:00 बजे एकता ऑफिस से निकली और गेट के बाहर अरूण को इंतजार करते पाया! उसे देख कर वह समझ नहीं पा रही थी कि आज इतना उदास क्यों है। उसके हाथ में फूल भी हमेशा की तरह नहीं है” और वह रोमांटिक अंदाज में बात भी नहीं कर रहा आखिर क्यों? अरूण बोला चलो ‘काफी ‘हाउस चलते हैं।
एकता के सब्र का बांध टूट ने लगा! अरूण क्या बात सच-सच बताओ तभी मैं ‘कॉफी हाउस’ चलूंगी।
चलो ‘कॉफी हाउस’ में बैठकर बात करते हैं,गेट पर नहीं एकता कुछ समझ पाती और अपनी मोटरसाइकिल स्टार्ट कर दी एकता ने भी अपनी स्कूटी दोनों चल दिए।’काफी हाउस’ पहुंच कर अरूण दो ‘कोल्ड काफी’का आर्डर दे कर आ गया! अरुण जल्दी बताओ क्या बात है मैं मानसिक तनाव से घिरती जा रही हूं एकता बोली। काफी आ गई”। दोनों सिप लेते हुए एक दूसरे के चेहरे पर आते जाते भाव के उतार चढ़ाव को देख रहे थे। अरूण ने चुप्पी तोडी” और बोला दरसल बात यह है कि मैं तुम्हारे साथ अब शादी नहीं कर सकता, हमारी शादी कैंसिल हो गई है”। “एकता स्तब्ध रह गई” अरूण यह क्या कह रहे हो? अरूण सिर झुकाकर चुप बैठा रहा ‘काफी’ जम कर बर्फ हो गई।एकता बोली तुम्हें पता भी है क्या कह रहे हो, कहीं मुझसे मजाक करने का कोई नया तरीका निकाला है। अरूण बोला नहीं! मैं बिल्कुल गंभीर होकर बात कह रहा हूं।
“आखिर क्यों”?
आज से मैंने एक माह की छुट्टी लेली है,घर में शादी की पूरी तैयारी हो चुकी है, कार्ड भी बटने लग गए हैं और अब तुम शादी तोड़ने की बात कैसे कर सकते हो ! तुमने यह नहीं सोचा मेरे माता-पिता पर क्या गुजरेगी।वह अपने लोगों को क्या जवाब देंगे?
एकता एकदम जड़वत हो गई।
अरूण बोला तुम को तो पता है, 20 दिन पहले मेरे दादाजी का स्वर्गवास हो गया था और कल हमारे नाना जी का भी स्वर्गवास हो गया है! घर के लोगों ने कहा कि शादी से पहले पारिवारिक में इतने अपशगुन हो रहे हैं लगता है “इस लड़की के ग्रह अच्छे नहीं हैं।
तभी मुझे बताया कि हम एकता के घर शादी को मना करने जा रहे हैं उन्होंने जो सामान दिया था वह भी वापस कर देंगे।
उसके बाद वह लोग इंदौर नाना के घर के लिए रवाना हो जाएंगे तुम्हें यह खबर देने के लिए लिए कहा था तो बहुत हिम्मत जुटा कर मैं तुमसे कह पा रहा हूं, मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ पा रहा कि मैं आखिर क्या करूं।
सिर झुकाकर चुप बैठा रहा।
एकता ने बिना कुछ बात किए भोपाल के लिए फ्लाइट बुक करने लगी मुंबई से भोपाल 2 घंटे का सफर है एयरपोर्ट पर भी समय लगेगा, अपनी स्कूटी उठाई और घर की ओर चल दी उसको अपने माता पिता की फिकर हो रही थी, इस खबर से उन पर क्या गुजरेगी। एकता एयरपोर्ट पर पहुंच गई और फ्लाइट का इंतजार करने लगी! वह सोच में डूब गई कि मैं तो अरूण के घर वालों को स्कूल के समय से परिचित हूं मुझे तो अभी तक ऐसा नहीं लगा की उसके घर वाले इतने संकीर्ण विचारों वाले हैं, हमारी बचपन की दोस्ती कब प्यार में बदल गई और हमने “जीवन साथी बनने” को पूरी तरह से सहमत हो गए, दोनों के घर वालों ने खुशी खुशी हम दोनों के रिश्ते की मंजूरी दे दी और शादी ही तैयारियां होने लगीं।
पर यह एकाएक क्या हो गया?
एनाउंस हुआ सभी यात्री फ्लाइट में जाने को तैयार हो गए एकता फ्लाइट में पहुंचकर अपने मन को समझाने की कोशिश कर रही है कि अरूण कैसे अपने घरवालों की बातों में आ गया वह तो बड़े खुले विचारों का इंसान है!
वह कैसे अपनी एकता के प्रति इस कठोर निर्णय का भागी दार बन गया।
भोपाल पहुंची देखा घर का वातावरण एकदम शांत है माता-पिता एकता को देखते ही उसे लिपट गए बोले “बेटा हम तेरा सपना पूरा नहीं कर पाए”और अपने सीने से लगा लिया और रोने लगे।
एकता ने हिम्मत बधाँते हुए कहा आप लोग किसी अनहोनी होने से बच गए ईश्वर जो करता है भले के लिए करता है।
ईश्वर ने मुझे ऐसे जीवन साथी से बचा लिया जिसमें अपने जीवन के फैसले लेने की हिम्मत नहो, जीवनसाथी के सपनों का ध्यान ना हो उसके लिए क्यों सोचना।
“फोन लगाया”
“हेलो”
अरुण मैंने तुम्हें “जीवन के बुरे लम्हे समझ भुला दिया है” फोन रख दिया ।माता पिता गौरव पूर्ण नजरों से एकता को देखने लगे। एकता एक अनजान “नासूर”के दर्द को छिपाए हुए है। माँ कहने लगी अब एकता से दूसरा कौन शादी करेगा क्या उसकी शादी हो पाएगी लोग तरह तरह की बातें करेंगे, कारण पूछेंगे। एकता ने दृढ़ता के साथ कहा दुनिया में सभी कमजोर नकारात्मक विचारधारा के नहीं होते उनकी अपनी सकारात्मक विचार धारा भी होती है। इस बात को “समय पर छोड़ देना चाहिए”। आगे क्या होगा कैसे होगा सोचना नहीं चाहिए। इधर अब अरुण-एकता की बात सुनकर स्तब्ध रह गया! सोचने लगा एक मैं हूं जो अपने घर वालों की बात में आकर अपने बचपन की दोस्ती और प्यार को एक झटके में खत्म कर दिया। मैंने यह नहीं सोचा की एकता पर क्या बीती होगी?
एकता के सामने मैं अपने आपको गुनहगार मानता हूं, अपने अंदर इतना साहस नहीं जुटा पाया जितना की एकता ने अपने साथ हुए अन्याय को बुरे “लम्हे” कह कर” विराम लगा दिया”एकता एक साहसी और स्वाभिमानी लड़की है! उसके सामने मेरा अस्तित्व एक” प्रश्न चिन्ह” बनकर रह गया।क्या मैं कभी एकता को भुला भी पाऊँगा?अरूण अब पश्चाताप के साये में मौन बैठा है! अब पछताने से क्या होता है जब ““चिड़ियाँ चुग गई खेत”।।
शीला श्रीवास्तव भोपाल
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