भारत के उत्तर में स्थित एक खूबसूरत और सांस्कृतिक विरासत से भरपूर क्षेत्र लेह -लद्दाख है, जो प्राकृतिक खूबसूरती के नाम से विख्यात एवं प्रसिद्ध है इसके साथ ही ठंड तो हर स्थान को प्रभावित करते हैं परंतु उसका असर आम लोगों को उतना परेशान नहीं करता जितना कि लेह लद्दाख का ठंड आम लोगों की जीवन को प्रभावित करता है, जी हां उत्तर प्रदेश ,मध्य प्रदेश ,दक्षिण प्रदेश से 10 गुना अधिक ज़्यादा ठंड यहां पड़ता है शायद इसका मुख्य कारण यह है कि लेह लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश उत्तरी भारत का वह शहर है जो ऊपरी सिंधु नदी की घाटी में 11,550 फीट (3,520) मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जो लद्दाख रेंज (काशकोरम रेंज का दक्षिण- पूर्वी विस्तार) की ऊंची चोटियों से घिरा हुआ है। लद्दाख की एक और खास बात यह है कि यहां बौद्ध समुदाय का बड़ा जातिय समूह निवास करता है, जिसकी आबादी 77.30% है और शेष 13.78% मुस्लिम इसके साथ बहुत कम मात्रा में हिंदू निवास करते हैं शायद 8.16% हैं। यहां सबसे ज्यादा बौद्ध धर्म का तिब्बती धर्म को मानने वाले लोग हैं, हालांकि कश्मीर घाटी से लेकर कारगिल तक इस्लामी प्रभाव ज्यादा पाया जाता है ,यहां कुछ मात्रा में ही ईसाई परिवार को भी देखा गया है।
अब यहां के रहन-सहन पर नजर डालते हैं तो प्रायः हमें यह देखने को मिला है कि यहां का जो घर बना है उसकी मोटी दीवारें लकड़ी के फर्श और छते भी लकड़ी के बनाए गए हैं।लद्दाख के घरों की दीवारें मोटी होती हैं जो आमतौर पर मिट्टी की ईंटों या पत्थरों से बनी होती हैं, यह मोटी दीवारें ठंड के मौसम में इंसुलेशन प्रदान करने और गर्मी बनाए रखने में मददगार साबित होती हैं, लेह को” ठंडा रेगिस्तान के नाम से भी जाना जाता है,” यहां का जीवन अपने आप में चुनौतियों से भरा जीवन लगता है यहां के लोग दो लोगों को अपना मसीहा मानते हैं सर्वप्रथम ईश्वर और द्वितीय फोर्स यानी कि भारत के सैनिक जिनके देखरेख में यह चैन का जीवन यापन कर रहे हैं यहां के लोग वर्षा को आपदा मानते हैं इसलिए ITBP अन्य फोर्स के द्वारा पौधा रोपण पर स्थानीय लोग भड़क उठे इसका कारण उन्होंने अपना मिट्टी व लकड़ी के घरों को बताया और 6 अगस्त 2010 कि उस आपदा का भी जिक्र किया, जिसमें वह पूरी तरह से बर्बादी के कगार पर आकर खड़े हो गए ,लद्दाख वासियों को जितना चीन के आक्रमण से डर नहीं लगता उतना यहां के मौसम परिवर्तन से लगता है, जबकि लद्दाख के 38,000 वर्ग किमी इलाके पर चीन का अवैध कब्जा है, कुल मिलाकर 43,180 वर्ग किमी भूमि पर अभी विवाद है। इसलिए यहां के विख्यात इंजीनियर और पर्यावरण के विद्वान सोनम वांगचुक लद्दाख के लोगों के साथ अपनी मांग को लेकर काफी समय से दिल्ली से भूख हड़ताल पर थे उनका मांग है कि लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा मिले, लद्दाख को छठी अनुसूचित में शामिल किया जाए और यहां के दो सांसद का चुनाव हो जिसमें एक लेह तो दूसरा कारगिल का संसद हो।
सबसे मुख्य मांग उनकी” पर्यावरण सुरक्षा और रोजगार है”
यहां आए दिन पर्यावरण में असंतुलन देखने को मिल रहा है जम्मू कश्मीर और लद्दाख के लिए जल के स्रोत, ब्लैककार्बन, एरोसॉल और ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ती मात्रा के कारण महत्वपूर्ण दर पिघल रहे हैं, जिस वर्ग के टुकड़े यानी हिमखंड का रंग काला पड़ रहा है।
साथ ही बढ़ते परिवहन से लेकर मानवीय गतिविधियां पर्यावरण को निगलने का कार्य कर रही है इसको रोकने का एक ही उपाय हो सकता है, लद्दाख वासियों की जागरूकता साथ ही यहां जो पर्यटक आते हैं उनको वही चीज लानी होगी या इस्तेमाल करना होगा जो पर्यावरण सुरक्षित करने में मददगार साबित हो ना कि उनके वजह से और यहां के लोगों की वजह से पर्यावरण अपना भयावह रूप दिखाएं क्योंकि प्रकृति का मनोहर रूप लेह लद्दाख में ही देखने को मिलता है।
भारतीय खूबसूरती का नजारा है लद्दाख,
बर्फ से ढके सिंधु घाटी का किनारा है लद्दाख।
बौद्ध धर्म का समावेशन है लद्दाख,
संपूर्ण भारत का अधिवेशन है लद्दाख।।
जय हिंद जय भारत
ज्योति सिंह
वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
वर्तमान पता -(लेह -लद्दाख)
मेल-jyoti221101@gmail.com
मोबाइल नं -8736843807
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