साहित्य सरोज साप्ताहिक आयोजन क्रम -2
कहानी लेखन
शीर्षक- पहला प्यार
प्रेम एक ऐसी अनुभूति है जो जीवन को सरस बना देती है l जिससे प्रेम हो चाहे वह शरीर से कितना भी दूर रहे पर उसके साथ होने का अहसास ही हमें जीवंत बना देता है l
विवाह के पश्चात मैं पगफेरे के लिए मायका आई l तब पूरा गांव लगभग परिवार जैसे रहते थे, मैं जितने परिवार जैसे थे सबके यहां मिलने गई lगांव में ताऊ जी ताई जी यहाँ भी उन लोगों से मिलने गई lआंगन में ही उनका बेटा राजीव मिल गया मैं दौड़ कर उनसे लिपट गई और रोने लगी जब तक मन हल्का नहीं हो गया l वो चुप कराता रहा पर मैं चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी l वो भी भावुक हो गया था पर पुरुष अपनी भावना सम्भाल लेते हैं छलकने नहीं देते, जाने कहाँ से लाते हैं इतनी धैर्यता l
रोने के बाद झगड़ा करना आरंभ किया मैंने, शादी में क्यों नहीं आये l बस उसने इतना ही कहा तू बुलाई कहाँ थी l वो बाहर पढ़ाई करने गये थे l मोबाइल नहीं था उस समय, लैंड लाइन था, मैंने उसके पी जी का नंबर लिया था और एक कागज में लिख लिया था पर घर में काम के व्यस्तता में वो कहीं खो गया और मेरी बात नहीं हो पाई थी l
हम दोनों का परिवार बिल्कुल एक घर जैसा था l बांकी भाई बहनों में हम लगभग एक ही उम्र के थे तो हमारी दोस्ती ज्यादा थी l साथ में पले बढ़े, अधिकांशतः साथ साथ रहते थे l बचपन से वो मेरे लिए ढाल बनकर खड़े रहते चाहे पढ़ाई के मामले में हो कुटाई के मामले में, तब माताजी कुटाई भी करते थे l
जब हम स्कूल में थे, भोजन बनाने का काम माताजी ही करते थे, कभी कभी हम मदद कर दिया करते थे l एक शाम को बहुत बारिश हो रही थी और गाँव में तो बारिश में सीधे बिजली बंद l गांव की दो दीदी भी उस दिन घर पर बैठने आये थे और बारिश में फंस गये थे l माताजी ने मुझे भोजन के लिए कहा l दाल, चावल और भिंडी की सूखी सब्जी बनाई l भोजन बनाने के बाद राजीव को सब्जी दिया गुणवत्ता परीक्षण के लिये l क्योंकि भोजन बनाने की आदत नहीं थी और माताजी मेरी खुर्राट थी, उन्हें सब बिल्कुल सही चाहिए l राजीव ने जैसे ही सब्जी मुंह में रखा ये क्या, सब्जी बाहर l कहा इसमें तो नमक ही नहीं है l डर से मेरा हालत खराब, अब क्या होगा l कुछ करते हैं राजीव ने कहा l टार्च जलाकर सभी मसालों के डिब्बों को देखा, नमक और रवा का डिब्बा एक ही जगह रखा था, मैंने नमक के जगह रवा डाल दिया था l
अब क्या करें, राजीव ने गैस चालू करने कहा, फिर भिंडी में नमक डालकर, थोड़ा पानी छिड़ककर फिर से सुखाया lथोड़े देर बाद बारिश कम हुई और दीदी लोग चले गये l पिताजी कहीं बाहर गये हुये थे तो माताजी और भाई बहन को भोजन परोसा l मेरा तो डर के कारण हाल बेहाल हो रहा था पर राजीव ने कहा बिल्कुल चुप रहना l बिजली तो बंद थी लालटेन में चेहरे का भाव माताजी ध्यान नहीं दे पाये l फिर उसी ने पूछा चाची सब्जी कैसे बना है l माताजी ने कहा ठीक तो बना है पर हल्का चिपचिपा लग रहा है l वो इसीलिये था क्योंकि रवा थोड़ी सी फूल गई थी l पर अंधेरे के कारण उतना पता नहीं चला l राजीव भी भोजन करके घर चले गये l
ऐसे ही न जाने कितने वाकिये हुये वो हमेशा मेरे सामने रहते थे मुझे बचाने l हम छोटे से बड़े हो गये और शायद हम दोनों को एक दूसरे की आदत हो गई l
मेरा विवाह अचानक तय हुआ था मैं पूरी तरह पढ़ाई में डूबी थी l और अचानक सगाई तय हो गया l मैं समझ नहीं पा रही थी क्या हो रहा है l क्योंकि विवाह से पहले तब होने वाले पतिदेव से बात भी नहीं होता था l राजीव भी पढ़ाई करने चले गये थे l मुझे आगे पढ़ाई करना था पर किसी से कहने की हिम्मत नहीं l बस ऐसे लगता था काश राजीव होता l मैं सगाई के होते तक इंतजार करती रही कि काश वो आये और मैं आगे पढ़ने की बात उनसे कहूँ और वो घर वालों को मनाये पर वो नहीं आया और विवाह संपन्न lविदाई के समय सभी थे साथ में, पूरा परिवार, मेरे पूरे सहपाठी l पर मेरी नजरें ढूढ रही थी उसको कि काश वो आ जाये क्योंकि इसके पश्चात तो जिम्मेदारी का सफर शुरू हो जायेगा और शायद हम उस अपनेपन से दोबारा मिल न सकेंगे l
ससुराल में बहुत याद करती थी उसे हर छोटी छोटी बात में ऐसे लगता था वो रहता तो मदद करता l पर मुझे कोई दिक्कत नहीं हुआ क्योंकि पतिदेव हर कदम पर साथ रहे lपर आज भी जब मैं बहुत परेशान हो जाती हूं तब राजीव याद आतें हैं l मेरे लिए वही था मेरा पहला प्यार, जिसे महसूस किया था हम दोनों ने पर कभी कहा नहीं किसी ने l दोनों इसीलिये क्योंकि बाद में मुझे पता चला कि विवाह के लिए वो दिन भर गांव में ही रहे, लेकिन घर नहीं आये l बाद में मैंने पूछा था घर क्यों नहीं आये, मुस्कुरा कर उसने कहा देख नहीं पाता तुझे किसी और के साथ साथ जाते, बचपन से तेरी आदत हो चुकी थी l
आज भी हमारा पूरा परिवार किसी खास मौके पर एक साथ मिलते हैं l और सबकी खुशी में आज भी समाया है हमारा पहला प्यार, स सम्मान l
दीपमाला वैष्णव
कोंडागांव, cg
9753024524
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