वर्तमान में ऐसा कौन सा परिवार है जो बच्चों के मोबाइल देखने से परेशान नहीं होता l ऐसी बहुत ही कम मां होगी जिसे अपने बच्चे को भोजन कराते समय मोबाईल की जरूरत नहीं पड़ती होगी l बच्चों को आज दादा-दादी, नाना-नानी तो दूर शायद मम्मी-पापा की जरूरत भी कुछ समय के लिए पड़ती है, बांकी पूरा समय उनके लिए मोबाईल ही उनकी दुनिया है l गूगल और यूटुब ही उनके दोस्त हैं, जहां पर वे खुश हैं l उनको तो ये भी नहीं पता कि जिनको वे अपना सबकुछ समझ रहे हैं वे ही उनका वह अज्ञात शत्रु है जो धीरे धीरे दीमक की तरह उनके मस्तिष्क, उनका आंख व उनकी भावनाओं को खा रहा है l
बच्चे मोबाईल में व्यस्त रहते हैं या यों कहें उलझे रहते हैं, हमारी बातों को नहीं सुनते या ध्यान नहीं देते तो हम बच्चों को चिल्लाते हैं, उन पर झल्लाते हैं l पर क्या हम कभी अपनी गलती स्वीकार करते हैं l बच्चों को मोबाईल की आदत कैसे लगी l उनको पहली बार मोबाईल किसने पकड़ाया l भोजन कराते समय उनको मोबाईल दिखाकर खिलाने का उपाय किसका था l हमको थोड़ा सा काम करने मिले इसीलिये हम बच्चों को स्वयं मोबाईल पकड़ा देते हैं l धीरे-धीरे जब बच्चों को लत लग लग जाती है तब हम अपनी सारी गलती छुपाने सारा दोष बच्चों पर मढ देते हैं l क्योंकि मानवीय स्वभाव है अपनी कमजोरी छिपाने दूसरों पर इल्जाम लगाते हैं l
आज इस पर कितने सर्वे भी हो रहें हैं जो इस पर कार्य कर रहे हैं l और उसमें भी पाया गया है कि मोबाईल सिर्फ शारीरिक ही नहीं बच्चों को मानसिक रूप से भी खोखला कर रहा है l इससे बच्चों का याददाश्त कमजोर हो रहा है, बच्चे चिड़चिड़ा हो रहे हैं और सबसे अहम बात भावनात्मक रूप से अपनों से दूर हो रहे हैं l कामकाजी माता पिता के बच्चों का समय कुछ ज्यादा ही मोबाईल में बीतता है l वे अपनी भावनाओं को वही जोड़ देते हैं और फिर वही उसकी दुनिया हो जाती है l उसके बाद वे किसी के साथ या पास रहना पसंद नहीं करते l हम पास जाने की कोशिश करें तो वे चिड़चिड़ा जाते हैं l उन्हें अकेले रहना ही पसंद आता है l इस प्रकार कई बच्चे गंभीर बीमारी से भी ग्रसित हो रहें हैं l
सनातन संस्कृति में कई मातायें ऐसी हुई है जिन्हें गर्भ विज्ञान का बहुत ज्ञान था l गर्भ विज्ञान के माध्यम से किस शिशु को कैसे जन्म देना है l जन्म के पश्चात कैसे बनाना है ये वो जानती थी l माता मदालसा इसकी सबसे महान आदर्श है l ऋषि अष्टावक्र परमज्ञानी ने अपार ज्ञान माता सुजाता के गर्भ में रहकर ही प्राप्त कर लिया था l अपने पिता कहोड़ ऋषि के थोड़ी सी गलती पर माता के गर्भ से ही उन्हें टोंक दिया था l
अतः जब गर्भधारण होता है तब से शिशु के जन्म तक की पूरी जिम्मेदारी परिवार की तो रहती है पर सबसे ज्यादा माता का जागरूक होना जरूरी रहता है ताकि एक स्वस्थ शारिरिक व मानसिक रूप से शिशु को वो जन्म दे सके l गर्भावस्था काल में जो भी दैनिक दिनचर्या, विचार रहता है उसका पूरा जुड़ाव शिशु में रहता है l अतः माता का व्यवहार, संस्कार वैसे ही रहे जैसे हम शिशु में डालना चाहते हैं l वर्तमान में हम टेक्नोलॉजी के उस युग में जी रहें हैं जहां मोबाईल एक महत्वपूर्ण जीवन का हिस्सा हो चुका है l कई स्थानों पर उसके बिना काम तो होता है पर मोबाईल से ज्यादा आसान हो जाता है l अतः मोबाईल का उपयोग कितना, कब, कहाँ करना है ये मातायें अपने गर्भावस्था में ही तय करे और शिशु के जन्म के बाद भी पूरा परिवार इसका ध्यान रखे l हमें लगता है कि छोटे बच्चों को तो मोबाईल दिखाये ही नहीं l बच्चे जब स्कूल जाने लगे तभी सिर्फ जरूरत के लायक ही उनको मोबाईल सुविधा उपलब्ध करवाये ताकि अपने बच्चे का व अपना वर्तमान व भविष्य हम अच्छे से बितायें l
दीपमाला वैष्णव
कोंडागांव(cg)
9753024524
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