महिला दिवस पर
साथियों नारी जागरण की बात हमेशा होते रहती है l हम हमेशा कई स्थानों पर, अखबारों में, समाचार में नारी जागरण आंदोलन की बात सुनते हैं l सदियों से इस क्षेत्र में व्यापक कार्य भी हुये हैं पर क्या वर्तमान में नारियां जाग चुकी है, क्या हम अपने महत्व को जान पाये हैं l क्या हम ये जान पाये हैं कि हमारे अंदर कुदरत ने एक असीम शक्ति का बीज डालकर हमको इस धरती पर भेजा है, तो हमको अपनी अंतरात्मा से जवाब मिलेगा, नहीं l
नहीं इसीलिये कह रहे हैं क्योंकि जब भी समानता की बात होती है तो कही न कही हम पीछे हट जाते हैं, कुछ को छोड़कर l हम ही अपने आपको कमजोर बना देते हैं l हमारा समाज आरंभ से ही एक पुरूष प्रधान समाज रहा है और शायद जब तक सृष्टि रहेगी ये प्रधानता कभी समाप्त नहीं होने वाली है-कारण? क्योंकि हम नारियां भी इसके लिए जिम्मेदार है l हमारे इतिहास में हमने अनेक उदाहरण देखें हैं यदि वे मातायें ऐसे ही बैठ जाती हाथ में हाथ धरे तो आदर्श नहीं बन पाती l अहिल्या बाई होल्कर, सिन्धु ताई जैसी मातायें हमारे लिए उदाहरण हैं l
घर परिवार का वातावरण महिलाएं ही बनाती है l संस्कार, स्वभाव और चरित्र का प्रशिक्षण घर की पाठशाला में होता है l परिवार का स्नेह सौजन्य पूरी तरह स्त्रियों के हाथ में होता है l यदि नारी की स्थिति सुसंस्कृत, सुविकसित स्तर की हो तो निःसंदेह हमारे घर परिवार का वातावरण स्वर्ग मय वातावरण से भरे पूरे रह सकता है l इस वातावरण में रहने वाले लोग कल्पवृक्ष जैसी शीतल छाया का रसास्वादन कर सकते हैं l हीरे जैसे बहुमुल्य रत्न किन्ही विशेष खदान से ही निकल सकते हैं l यदि परिवार का वातावरण परिष्कृत हो तो उसमें से एक से एक बहुमुल्य रत्न निकलते हैं और उस संपदा से कोई देव समाज समुन्नत स्थिति में बना रह सकता है l देश की आधी जनसंख्या नारी है पर यदि वह पक्ष दुर्बल और भारभूत बनकर रहेगा तो नर के रूप में शेष आधी आबादी की अपनी सारी शक्ति उस अशक्त पक्ष का भार ढोने में ही नष्ट होती रहेगी l प्रगति तो तभी सम्भव है जब गाड़ी के दोनों पहिये साथ-साथ आगे की ओर चलते रहे l एक पहिया पीछे की ओर खींचे दूसरा आगे की ओर बढ़े तो उसमें खींच तान बस होते रहेगी, हाथ कुछ नहीं लगेगा l विकसित देशों में नारी भी नर के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हर कार्य में बराबर की भागीदारी रहती है तभी उस राष्ट्र की प्रगति सम्भव है l और वह एक समुन्नत राष्ट्र के रूप में आगे आता है l एकांगी विकास कभी भी संभव नहीं हो पाता l
एक व्यक्ति स्त्री शिक्षा, स्त्रियों के पर्दे से बाहर निकलने का सख्त विरोधी था l वह महर्षि दयानंद के पास गया और न जाने क्या क्या बोलने लगा l महर्षि ने कहा मान्यवर क्या आप अपना एक पैर रस्सी से बांध लेंगे l वह बोला पांव बांध दुंगा तो चलुंगा कैसे, घर कैसे पहुँचूँगा l महर्षि हंसे और बोले समाज का आधा भाग, यानि एक पैर स्त्रियां है, जो रूढ़ियों के रस्सी से बंधी है, तो भारतीय समाज प्रगति कैसे कर सकेगा l वह आदमी बहुत प्रभावित हुआ और उस दिन से स्त्रियों के समान उन्नति का समर्थक बन गया l
भारतीय नारियों के पीछे रहने का कारण मध्य काल मे पुरुषों द्वारा शोषण रहा है l पुरुषों द्वारा नारी के मनोवांछित अधिकार छीने और घरों की कोठरी में कैद करके उसे परदे के आवरण से जकड़ दिये l इस जकड़न में उसकी शारिरिक व मानसिक प्रतिभायें सड़ गई l आर्थिक दृष्टि से परावलम्बी और मानसिक दृष्टि से पिछड़ी हुई नारी की दशा तब अति दयनीय थी l
पर वर्तमान में स्थिति काफी बेहतर है और नर और नारी दोनों समान सम्मान व सहयोग से भूमिका निभाये तो इस ओर अलग से कार्य करने की आवश्यकता ही न रहे l
दीपमाला वैष्णव
कोंडागांव(cg)
9753024524
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