आज 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की 25वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है।भाषाई और सांस्कृतिक विविधता को संरक्षित करने, बढ़ावा देने और बहु -भाषावाद को प्रोत्साहित करने के लिए हर साल 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है। 17 नवंबर 1999 को यूनेस्को ने इसे स्वीकृति प्रदान की थी। साल 2000 में पहली बार इसे पूरी दुनिया में मनाया गया था । इस दिवस को मनाने का उद्देश्य मातृ भाषाओं का संरक्षण और उन्हें बढ़ावा देना है।मातृभाषा के बिना किसी भी देश की संस्कृति की कल्पना नही की जा सकती है। मातृभाषा आत्मा की आवाज है। माँ के आँचल में पल्लवित हुई भाषा बालक के मानसिक विकास को शब्द व पहला मानसिक संप्रेषण देती है। इसी निज भाषा की ताकत को पहचानते हुए महान कवि और साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हिंदी की उन्नति शीर्षक व्याख्यान में सन् 1877 में कहा था –
“निज भाषा उन्नति अहै,सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।”
अर्थात अपनी भाषा की उन्नति के बिना समाज की तरक्की संभव नहीं है । मातृभाषा ही इंसान को सबसे पहले सोचने व समझने की अनौपचारिक शिक्षा देती है । इसकी महत्ता को देखते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की शिक्षा व्यवस्था भी बहु भाषा और मातृभाषा पर केंद्रित है।
श्रीमती लक्ष्मी चौहान
कोटद्वार, उत्तराखंड
8958243382
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