मातृभाषा दिवस पर दीपमाला की छत्‍तीसगढ़ी कहानी सुरता

सुरता हमर अउ हमर पुराना दिन के बीच के कतका सुग्घर रिश्ता हरे l सुरता नहीं रतीस त हमन कहाँ पुराना दिन ल समेटे रतेंन l
आज मइके आहों मेहा बस में l बस ले उतरे हो बस स्टैंड म l लागिस कोनो ले बर आय होहीl फेर कहाँ कोई आ हे, फोन लगाय हों घर मा त भौजी ह कथे, पूजा के तैयारी मा सब लगे हे नोनी, ज्यादा दूरिहा तो नई हे लेव न रेंगत आ जाव l कुछु तो नई केहे सकेव, फेर आंसू आ गे आँखी ले l अभी बाबूजी रतीस त लेगे बर आय रितिस l अतका भी रेगन नई देतिस l बाबू जी ल सुरता करत-करत घर कोती आवत रेहेंव l
रस्ता में बड़े जन तरिया हे l तरिया ल देखते ही सुरता आ गे वो संगवारी मन l कैसे नहाय बर कम अउ तौरे बर ज्यादा आवत रेहेनl अउ कुकरा-कुकरी खेलत कतका देर हो जाये पता नई चले l जब तक काखरो घर ले गारी देवत कोनों बुलाय बर नई आ जाय lचलो-चलो कहात ले दे के निकलन l वो कातिक पुन्नी के पूजा,3 बजे ले घर-घर जाके उठाना, फेर तरिया में नहाना, फेर तुलसी माई के पूजा l कतका सुग्घर दिन रिहिसे l सब्बो आँखी के आगू मा ऐसे झूलत रिहिस जैसे मोर आगू मा हे सब l फेर ध्यान ह टूटिस वो तुलसी के चांवरा ह अब सूखा गे हे l तभो ले पांव परे हों l तरिया के पार में फरे अमली अउ मौरे आमा के रुख l मने मन हंसे हों कि कैसे डंडा मार-मार के तोड़न, कतको गारी खावन तभो ले l अउ एक घाव तो अमली के पेड़ ले खरखर ले फिसल गे रेहेन दुनों संगवारी के हाथ पांव ह छिलाय रिहिसे l तभो ले ओला नई छोड़न, अउ अमली के लाटा, का बात ए सोंच के मुंह मा पानी आ गे l सुरता करत आगू रेंगेव l
आगू मा पीपल के रुख के नीचे बैठे चौपाल म गांव के कका, बबा, बड़े ददा सब्बो झन के झलक दिख गे l सब्बो के हंसी ठिठोली, आपसी प्रेम कतका सुग्घर लागे l एक दूसरा के घर के हाल-चाल पूछत, काखरो तकलीफ मा मदद करत l कभू कभू महुं ह बैठ जावत रेहेंव सब्बो संग l सियान मन के समझाइस ह जिनगी मा बहुत काम आथे अउ ओला अपन जिनगी मा उतार के हमन मन ल बहुत सुकून लगथे l खड़े-खड़े सब्बो ल सोंचते रेहेंव अतका में जोर से आवाज आथे अउ मैं चेतेव् त कहाँ के वो मया दुलार l नवा लइका मन बैठे रहाय, अउ सब्बो के हाथ मा मोबाइल रहाय l बैठे तो संघरा हे फेर अपन अपन मोबाईल मा लगे हे l उहू मन ल राम-राम करके मैं फेर आगे बढ़ेवँ l रद्दा मा काकी ,डोकरी दाई मन पहली आय मा हाल चाल पूछे, बने -बने नोनी कहिके, ओमन कोनो नई दिखिन l अभी के बेटी बहु मन चिन्हाय नही l काबर बेटी मन बाढ़ गे अउ बहु मन नवा हरे त चिन्हाय नही न वो मन चिन्हे नहीं l काबर मोरो बिहाव होय बाईस साल हो गे l अउ सब बदलत देरी नई लगे l गांव घलोक बदल गे, कच्चा छानी वाले घर के जगह पक्का-पक्का मकान बन गे l कैसे करबे पहली घर मन कच्चा रहाय त लोगन मन पक्का रहाय, खरा सोना l अब घर मन पक्का होगे त लोगन मन कच्चा होगे गे, पालिस वाले सोना जैसे l तभो ले काय करबे छत्तीसगढ़ी में कहावत हे मइके के कुकुर नोहर, कुछु होथे तहान भागत आय ल भाथे l
रद्दा में घर के मुहाटी में बैठे एक झन बड़े दाई मिलिस l देख के खुश होगे अउ कथे एक कन थिरा ले न नोनी फेर जाबे, अब्बड़ दिन मा आय हस l महुँ ह बैठ गेंव l बड़े दाई ह चाय बना दिस बैठ के पीये हन दुनों झन l बड़े दाई ह सुरता करथे एक बार तोर बड़े बाबू के तबियत खराब हो गे रिहिस नोनी त कैसे तुमन मन पूरा परिवार पैसा के मदद करेव l अस्पताल लेगेव, बहुत सेवा करेव l अब कहाँ के उसन पड़ोसी पाबे, सब अपन अपन मा मगन होगे l तुहरो घर तुमन ससुराल चल देव तोर भाई घलो शहर में रथे l बाबू तो नई रिहिस अब l तोर मां भर रहिगे त दुनों झन सुख दुख ल गोठियात रथन l उहाँ ले मैं बिदा ले के अपन मइके के घर पहुंच गेंव l
पूजा के सब्बो तैयारी हो गे रिहिस l सब्बो सगा मन घलो आ गे रिहिस हे l सब रिहिन तभो ले बाबूजी के कमी जनावत रिहिस l एक बेटी बर ओखर बाबू जी दुनिया के सबसे अनमोल रिश्ता होथे l पूजा के बाद खवई पियै होय के बाद सब्बो झन बैठ के पुराना दिन मन के सुरता करत रेहेन l एक रतिहा बीते के बाद दूसर दिन में अपन घर आ गेंव l
सब्बो के सुरता के गठरी ल अपन अंतस म हमेशा बांधे रहिथो l कभू-कभू अकेल्ला में सबके सुरता करत मन मन गुनत रहिथो l
दीपमाला वैष्णव
कोंडागांव(cg)
9753024524

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