जीवन एक संघर्ष है पर हमें हार नहीं माननी होती । दरअसल हम हार मान लें तो जीवन वहीं ढहर सा जाता है। जब मैं दसवीं कक्षा में थी तो मेरे पिताजी का देहांत हो गया। एकदम से लगा मानो सारी दुनिया ही पलट गई हो। मानसिक रूप से एकदम टूटने के बाद भी मेरी मम्मी ने बहुत हिम्मत की और हमें पढ़ाया । मैं घर में सबसे छोटी और सब की लाडली थी। पढ़ाई में भी अच्छी थी। मेरी मम्मी और बहन ने मुझ पर घर के काम का कोई बोझ नहीं डाला ।
मेरी मम्मी और दीदी ने ही पूरे घर की जिम्मेवारी ले ली थी । मैंने जैसे तैसे स्नातक की परीक्षा पास की किंतु पाप नहीं थे तो आगे की पढ़ाई कराना मम्मी के लिए मुश्किल था। उन पर मेरी बहन और भाई की जिम्मेवारी भी थी। वो पढ़ना तो चाहती थीं पर कुछ रिश्तेदार मेरे लिए रिश्ते लेकर आने लगे ।ऐसे में मेरी शादी की बात घर में चलने लगी। कुछ महीनों में मेरी शादी हो गई। मेरे ससुराल वालों ने कहा कि शादी के बाद भी चाहे तो पढ़ती रहेगी पर ऐसा हुआ नहीं ।
एकदम से शादी के बाद पूरे घर की जिम्मेवारी मिल गई पढ़ने के लिए समय बड़ी मुश्किल से निकालना पड़ता था । शादी के बाद गांव में ही रहना पड़ा । कच्चे चूल्हे पर खाना बनाना आदि सारे काम किए ताकि जिम्मेदारी निभाकर एक अच्छी बीवी बहू बन सकूं। पापा नहीं थे तो कहीं मम्मी को कोई शिकायत ना मिले। मैं शुरू से ही चंडीगढ़ में पली बढ़ी हूं तो मुझे वो सभी काम करने पड़े जो मैने कभी किए भी नहीं थे।
मैने धीरे धीरे सभी काम सीख लिए क्योंकि घर और रसोई की समझ मुझमें नहीं थी। फिर भी मैंने बहुत कोशिश की। जो सपने मैने देखे थे अचानक से शादी के बाद वो सारे सपने टूटने लगे। मेरे पति अक्सर मुझ से झगड़ा करते, मारपीट करते रहते । इतनी मुश्किलों में भी मैंने अपनी एम ए की डिग्री प्राप्त की। उस वक्त मेरी पहली बेटी हुई और उसके बाद से ससुराल वालों का बर्ताव और बुरा होने लगा ।
मैंने बहुत कठिनाइयों से पोस्ट ग्रेजुएशन की थी और उसके बाद मेरी दूसरी बेटी का जन्म हुआ । ससुराल वालों ने तो मुझे बेटी के पैदा होने से पहले ही उसे मारने के लिए मजबूर किया पर मैंने हिम्मत नहीं हारी। मेरी मम्मी के घर मेरी बेटी पैदा हुई मेरी देखभाल भी उन्होंने ही की। उस वक्त भी मैंने यूजीसी नेट की परीक्षा भी पास कर ली। किंतु मुझे बच्चों की देखभाल में ससुराल की तरफ से कोई मदद नहीं मिली। उसके बाद तो मुझे ससुराल वालों ने खर्चा देने के लिए मना कर दिया और कहा कि खुद कमाओ और अपने बच्चे पालो । हम दो-दो लड़कियों को नहीं पालेंगे। पर किस्मत में पता नहीं और कितनी कठिनाइयां लिखी थीं! फिर मुझे दो बेटियों के साथ घर से निकाल दिया गया।उसके बाद मैंने चंडीगढ़ में नौकरी करनी आरंभ की और बच्चियों के लिए कुछ करने की ठान ली ।
पति सिर्फ अपनी जरूरत के लिए मिलने आते और चले जाते। उन्हीं दिनों मैंने बी एड की प्रारंभिक परीक्षा भी दी और आगे पढ़ाई जारी रखी । मेरी मां ने मेरी दोनों बेटियों की परवरिश में बहुत सहयोग दिया। मैं जिस वक्त बी एड कर रही थी तो मुझे बेटा भी हुआ। पर बेटा होने के बाद भी कुछ दिन तो ससुराल वालों ने मुझे घर में रखा किंतु घरेलू झगड़े कम नहीं हुए । मारपीट के बाद जान से मारने की कोशिश तक की गई। मिट्टी का तेल डालकर जलाने की कोशिश की। समाज और रिश्तेदारी के दबाव के कारण बच्चों के लिए मुझे रिश्ता निभानापड़ा । बच्चों की परवरिश में उनका योगदान ना के बराबर था।
मुझे लगा कि आज नहीं तो कल परिस्थितियों में सुधार आएगा मैं हर संभव कोशिश करती रही पर ऐसा हुआ नहीं । बड़ी मुश्किल के बाद जब मेरी कॉन्ट्रैक्ट की नौकरी लगी तो मुझे लगा अब तो सब ठीक होगा । मैं अपने परिवार को मजबूती के साथ संभाल कर चल पाऊंगी और मेरा परिवार मेरा साथ देगा। पर ऐसा हुआ नहीं मेरी नौकरी के बाद भी मेरी हालत में कोई सुधार नहीं आया। मारपीट लड़ाई झगड़े का सिलसिला रुका ही नहीं । फिर एक दिन मेरे पति किसी और के लिए मुझे छोड़ कर चले गए।
ससुराल वालों ने भी मुझे ही दोषी ठहराया और कोई मदद नहीं की। मैं अकेले ही तीनों बच्चों को पालने के लिए जीने लगी। मुझे संघर्ष करना पड़ा और न करने का कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था। बहुत बार मन होता कि सब कुछ छोड़कर अपनी जान दे दूं पर फिर बच्चों की तरफ देखकर कुछ हिम्मत जुटाई और जो भी उनके लिए कर सकती हूं वो मैं कर रही हूं। कुछ साल बाद पति ने मुझे मुझ पर तलाक का मुकदमा कर दिया और परेशान किया। अदालत में ले जाकर भी बहुत भला बुरा कहा। मुझ पर चोरी के इल्जाम लगाकर और खुद को गरीब बताया । उन्होंने कहा कि मैं नौकरी करती हूं और मैंने रिश्ता नहीं निभाया। ऐसा कहकर तलाक दे दिया ।
बच्चों के लिए भी कोई किसी प्रकार से पैसों की मदद नहीं की। मैं अकेले ही अपने बच्चों को अच्छी परवरिश देने की कोशिश करती हूं । मैं अपनी मम्मी और बच्चों के कारण ही यह हिम्मत कर पाई हूं और आगे भी यही कोशिश करती रहूंगी। मैं उम्मीद करती हूं कि मेरे बच्चे खुद अपने पैरों पर खड़े हो और अच्छे इंसान बनें, हमेशा खुश रहें और उनकी जिंदगी बहुत बेहतर हो । वो इस काबिल बनें कि वो औरों के जीवन को भी बेहतर बना सकें । बस इतने सालों के बारे में कम शब्दों में बताना बहुत कठिन है पर कुछ बातें ऐसी होती हैं जो भुलाई नहीं जाती। पर यह जीवन है और रुक नहीं सकता , आगे बढ़ना पड़ता है। हमें मजबूत बनना पड़ता है क्योंकि जीवन हमारे पास कोई और रास्ता छोड़ता ही नहीं ।
रजनी (चंडीगढ़)
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