जनवरी 2023
बार बार नजर घड़ी पर जा रही थी। ” ये दिया कब आयेगी ?आये तो घर के लिए निकलूँ।आँटी को अकेले छोड़कर भी नहीं जा सकती।उफ कैब भी मिलनी मुश्किल होगी अब। क्या करूँ ? आदि को फोन करूँ? तो कौन सा लेने आ ही जायेंगे। उल्टा प्रवचन ही मिलेंगे सुनने को।जाने की ही क्या जरुरत थी?चली ही गईं थी तो जल्दी निकलती।तुम्हें नहीं पता क्या कहने को महानगर है ये ? लेकिन सात बजे के बाद ऑटो, कैब कुछ नहीं आयेगा इधर।मैट्रो से भी आधे रास्ते ही पहुँचा जा सकता है। वो तो और ही अधर में लटकना है।” डोर बैल बजती है।मैं लपककर बाहर भागती हूँ।
“दिया आ गई तू। कितनी देर कर दी तूने।हद लापरवाह है।सारे काम आज ही खतम करने थे तुझे। किसी और दिन कर लेती बचे काम।फिर आ जाती मैं।”
“सॉरी दी। माँ को अकेले छोड़कर नहीं निकल सकती।दीदी को आने में महीने लगेंगे।आप को भी जल्दी नहीं बुला सकती दी।कितना व्यस्त रहते हो आप।मिनी को घर छोड़कर कैसे निकलते हो, सब पता है मुझे।दी आप इस शहर में न होती तो..।”
“बस बस अब शुरू मत हो।छोड़ अब ये सब बात।मैं भी तेरी दीदी ही हूँ। तू भी परेशान ही हो जाती है।बस कुछ महीने और।फिर आ जाएगी तेरी दीदी।मैं अब आदि के साथ ही आऊँगी। मेरे फोन का नेटवर्क नहीं आ रहा यहाँ। तू बुक कर कैब जल्दी।कितने अनसेफ होते जा रहे ये महानगर। “
“ओके दी। लेकिन इतनी टेंशन में क्यों हो आप ? साढे़ दस ही तो बजा है अभी।”
“दिया.. ।”
“सॉरी दी। समझ गई।कर रही हूँ बुक। “
“अपना ख्याल भी रखा कर।देख कैसी हो रही है। तेरा खाना मैंने किचन कैबिनेट में रख दिया है।खा लेना।”
“दी आ गई आपकी कैब।जाइये अब निकलिए और देर हो जायेगी।”
“हाँ!निकल रही हूँ।अपना और आंटी का ख्याल रखियो।बाय।”
पर्स उठाकर मैं बाहर आती हूँ।बाहर टैक्सी देख कुछ चैन की साँस आती है।मैं जल्दी से दरवाजा खोल कैब में बैठ जाती हूँ।
“जल्दी चलिए भैया। “
“मैम ओटीपी बताइये।”
“हाँ।एक मिनट देखती हूँ। “
“कहाँ जाना आपको ?”
” बुकिंग के वक्त बताया था न। “
“मैम कन्फर्म करना था। “
“ओके।”
जल्दी से जगह का नाम बताती हूँ।
“बस कोई और फाॅरमैलिटी? “
“नहीं।”
“चलिए फिर।पहले ही इतनी देर हो चुकी है। “
“ये तो है मैम।कुछ और देर बाद आपको इस एरिया के लिए टैक्सी मिलती ही नहीं।”
अँधेरा चारों तरफ फैल रहा है।ड्राइवर की शकल भी कुछ अजीब सी नजर आ रही है।
घबराहट की एक लहर मेरे चेहरे पर दौड़ जाती है।वो फोन में कुछ कर रहा है। मैं घबराहट को गुस्से से दबा जोर से बोलती हूँ “अब जल्दी चलो ।”
वो पूरी मुस्कुराहट से मुड़कर मेरी ओर देखता है। और गुनगुनाते हुए कैब चला देता है।मेरे गुस्से की डिग्री एक सैन्टीग्रैड बढ़ जाती है। फोन की स्क्रीन पर नम्बर चमकता है।घबराहट में और पसीना आ जाता है।उफ अब दो जबाब बेटा। इतनी देर कैसे हुई ?कहाँ रह गई।ये तो नहीं सांत्वना के दो शब्द बोल दें और चिल्लाना ही।ऐसे ही डर से जान निकल रही है।
“हेलो.. हैलो
“आदि मैं कैब में हूँ। ……आदि प्लीज़ अब दिमाग मत खाओ। वैसे ही परेशान हूँ।…….आदि बाहर बहुत अँधेरा है।आदि फोन मत रखो अभी। “
फोन कट से कट जाता है। चिड़िया की तरह मन उछल कर हलक में आ जाता है। मन ही मन भगवान को याद करती खुद को कोसती हूँ। क्यों निकली घर से अकेली ? निकल आई तो इतनी देर तक रुकने की क्या जरूरत थी? और ये दिया.. जल्दी नहीं आ सकती थी।
टैक्सी के ब्रेक लगने के साथ ही मेरी सोच को भी ब्रेक लग जाते हैं।
“क्या हुआ ?
“महानगर की मुख्य समस्या मैम। रोड जाम। “
“कितनी देर लग जाएगी। “
खुलने को एक मिनट लगे और न खुले तो रात निकल जाए।”
मैं घबराकर आदि को फोन लगाती हूँ ।
आदि रोड जाम…..पता नहीं कितना समय लगेगा….
मुझे नहीं पता अब एक्जैक्टली कहाँ हूँ ? ….
नहीं नहीं ये रास्ता मुझे पता तो है।….नहीं बिलकुल नहीं। वैसे भी महानगर अब बिलकुल सेफ नहीं।….. हाँ नम्बर नोट कर लिया है। हाँ वो सब है।….. नहीं घबराना क्या?….. ठीक तुम मिनी को सुलाओ।मेरे बिना तंग कर रही होगी।….
हाँ मैं बताती हूँ।”
गाड़ी चींटी की रफ्तार से आगे बढ़ती है।
“खुल गया जाम। “
“मैम आगे बहुत लम्बी लाइन है।”
मैं आँखें बंद कर सीट से सर टिकाती हूँ।एसी की ठंडक में भी पसीने की बूँदें माथे पर झिलमिलाती हैं।
“कुछ कीजिए भैया।बहुत देर हो रही है।”
“मैम इसमें मैं क्या करूँ? मुझे भी घर पहुँचना है।”
मैं रुआँसी हो जाती हूँ। फोन बज रहा है।
“हाँ आदि पता नहीं कितना समय लगेगा…..
मिनी बहुत परेशान कर रही है।…. पता नहीं किस घड़ी में निकली थी घर से।….. हाँ तुम उसे देखो।…… हाँ ठीक है।”
एक उदासी मुझे अपने घेरे में ले लेती है।मिनी का चेहरा बार बार नजरों में घूमता है।
अचानक टैक्सी की रफ्तार बढ़ जाती है। मैं बाहर देखती हूँ।एकदम सुनसान सड़क दिखाई देती है। रास्ता कुछ अनजान सा नजर आता है। मैं घबरा जाती हूँ।
“ये कौन सी जगह है? “
“मैम उधर से न जाने कितनी देर लगती। ये रोड कम चलता है।यहाँ से जल्दी पहुँच जाएंगे।”
मुझे निर्भया की याद आ जाती है।हाथ -पैर ठंडे पड़ जाते हैं।ड्राइवर मुझे राक्षस नजर आने लगता है। फोन उठाती हूँ।नो सिग्नल। मेरी आँखों से टप -टप आँसू फिसल जाते हैं।मैं बार बार फोन उठाती हूँ। नो नेटवर्क । अँधेरा उभर उभर कर आ रहा है।मैं भगवान को याद कर रही हूँ। एक -एक पल युग के समान बीत रहे हैं।टैक्सी सड़क पर दौड़ रही है।मुझे अपनी ही चीखें सुनाई दे रही हैं। मैं घबरा कर बाहर देखती हूँ। चिरपरिचित सा रास्तादिखाई देने लगता है। मैं चिड़िया की तरह चहक उठती हूँ।
“यहाँ से तो पास ही है अब।”
“जी मैम।बस पन्द्रह मिनट और। वहाँ अभी भी जाम है। आप गूगल मैप पर देख लीजिए।”
मेरी आँखों से अविश्वास की लहरें अब छिटक रही हैं। फोन फुल वौल्यूम चिल्ला रहा है। मैं काॅल पिक करती हूँ। “आदि बस पहुँचने वाली हूँ।…….. हाँ सिग्नल नहीं थे।……. क्या करती फिर…… पता है तुम कितने चिन्तित हो गये होगे……. मिनी अभी जाग रही है…… बात कराओ….. बस बेटा मम्मा आ रही है। “
“मैम आपने लोकेशन यहाँ तक की बताई थी।
यहाँ से घर कितनी दूर है आपका? “
“आप यहीं छोड़ दीजिए मैं आदि को काॅल मिलाने लगती हूँ।
आदि मैं रोड पर हूँ।हाँ …तो और क्या आॅप्शन।… मैं वेट कर लेती हूँ।तुम आराम से आ जाओ। “
“मैम कितनी दूर है घर है बताइये।रात में आपका अकेले खड़े होना ठीक नहीं। “
“हाँ……। “
“आपका अकेले खड़ा होना ठीक नहीं। “
“यहाँ से दायें ले लीजिए। अब इधर यू टर्न। स्ट्रैट चलिए अब। आगे गली है आप चल पायेंगे।
“जी मैडम। “
टैक्सी गेट पर रुकती है।आदि मिनी को थामे गेट लौक कर रहे हैं। मिनी हाथ छुड़ा मुझसे आ लिपटती है।
आदि टैक्सी वाले का पेमेन्ट करते हैं। मैं टैक्सी वाले को मुस्कुराकर थैंक्स बोलती हूँ।वो मधुर मुस्कान के साथ मिनी को एक चॉकलेट पकड़ाता है। मिनी मेरी ओर देखती है।
“ले लो बेटा। बिटिया ने दो मँगवायी थीं।उसे एक ही दे दूँगा।”
मिनी थैंक्यू बोलती है। टैक्सी मुड़ जाती है।मैं उसे जाता हुआ देखती हूँ। खिड़की से सर बाहर निकाल वो चिल्लाता है
“महानगर इतने भी अनसेफ नहीं हैं मेम। “
डॉक्टर उपमा शर्मा
बी-1/248 यमुना विहार,दिल्ली,110053, 8826270597