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फूल्‍लो की विदाई-डा पुष्‍पलता

जनवरी -2023

”फूल्लो की माँ, सिंभालके वाले आए हैं क्या बात हो सकती है? ”लेने तो आ नहीं सकते। लड़का तो इनका कांग्रेस में चला गया सुना है।“
”कितने लोग हैं?“रामरती ने पूछा।
”छह-सात हैं।“ छज्जू ने बताया।
”ऐसा करो, दूध की बाल्टी ले जाओ। पता करके आओ, जल्दी?“
”हारे में से निकालकर दो।“
रामरती लोटे से दूध निकालकर छज्जू को देकर बोली-
”सारी बात पता करके आओ जल्दी। फिर आकर बताना मुझे।“
छज्जू माथे पर सिलवट डाले बाल्टी लेकर चला गया है।
कुछ देर बाद छज्जू खाली बाल्टी लेकर लौट आया है।
”कुछ पता चला?“
”कुछ बात ठीक नहीं लग रही है।“
”ऐसा, कुछ तो कहा होगा?“
”अपने परिवार के लोग इकट्ठे कर लीजिए। समधी जी आपसे कुछ बात करने आए हैं, ये कहा है।“
”ऐसी क्या जरूरी बात है? एक तो लड़की की किस्मत वैसे ही फूट गई। मुझे तो उसी दिन महसूस हो गया था। जब उन्होंने हमारी लड़की का हाथ मांगा। इतने बड़े घर का रिश्ता वैसे ही नहीं आता। अपने लड़के के पैरों में जंजीर डालने के लिए शादी की थी। वो हमारी बच्ची से रुकेगा क्या? जब आवारा फिरता है। हमारी लड़की का जीवन खराब करना था, कर दिया।“
”इसी मामले पर बात करने आए हैं, कहा है।“
”अब क्या हो सकता है?“
”यह कह रहे हैं, हमारे लड़के ने कांग्रेस का झंडा उठा लिया है। अब उसवेळ जीवन का कुछ भी भरोसा नहीं है। तुम्हारी लड़की के बारे में हमने कुछ सोचा है।“
”हमारी लड़की के बारे में क्या सोचेंगे? बिना लड़के हम वहाँ उनकी नौकरानी बनाकर नहीं भेजेंगे।“
”अब सुनना तो पड़ेगा, वे क्या कहना चाहते हैं?“
”मैं उनकी रोटियाँ बना दूँ, बाद में पूछूँगी, क्या करना चाहते हैं?“
”तुम मर्दों के बीच में बोलोगी?“
”मर्द मिलकर मेरी लड़की के बारे में उल्टा-सीधा फैसला कर देंगे, मैं क्या तमाशबीन बनी रहूँगी?“
”तुम को जो करना है करो,“ छज्जू हथियार डालकर मेहमानों को बुलाने चला गया।
आलू पूरी खिलाने के बाद छज्जू मेहमानों को बेले में खीर दे रहा था। रामरती घूँघट निकालकर दरवाजे के पीछे खड़ी थी।
”जी, चौधरी साहब। बाल-बच्चे ठीक हैं?“
”हाँ जी चौधरण। सब ठीक हैं।“
”तुम्हारा लड़का सुना है, कांग्रेस में चला गया?“
”बस क्या बताएँ चौधरण, हम इस बात की वजह से बहुत शर्मिन्दा हैं।“
”तुम कुछ बात करने आए हो? बच्चों के पिताजी बता रहे थे।“
”करने तो आए हैं चौधरण, आप अपने परिवार के लोगों को बुला लो।“
”मेरी लड़की का फैसला घर परिवार के लोग नहीं, मैं ही करूँगी। आप खुलकर बता दो क्या बात है?“
कुछ देर सब चुप हैं।
”तुमको तो मालूम है लड़के ने कांग्रेस ज्वाइन कर ली। उसके जीवन का कोई भरोसा नहीं है। बहुत समझाया, अब वो फैसला नहीं बदलेगा, उसने साफ कह दिया है।“
”फिर?“ रामरती ने पूछा।
”हमने एक बात सोची है, आपकी लड़की को अपने छोटे बेटे के लिए ले जाएँ। लड़की सारा जीवन कैसे बिताएगी। वैसे भी आपकी लड़की बारह साल की है। बड़ा लड़का तो चौबीस साल का हो गया है।“
क्या सोचूँ इसके बारे में। यह बच्ची तुम लोगों ने मेरे गले में लटका दी है। अब तुम ही जानो- अपने बेटे द्वारा कही गयी बात वे छुपा गए।
”चौधरी, सच-सच क्यों नहीं कहते, तुम्हारे लड़के को अब हमारी बेटी छोटी दिखाई दे रही है। कांग्रेस में तो बहुत से लोग जा रहे हैं, सबने अपनी पत्नियाँ छोड़ नहीं दी हैं।“
”बात तो तुम्हारी भी सही है चौधरण! अब हमारे लड़के को यह बच्ची रोक तो नहीं सकती। अतः हमने यह फैसला किया कि इसे छोटे लड़के के लिए ले जाएँ।“
”उसके लिए कोई और ढूँढ़ ले, कहते क्यों नहीं चौधरी? आज तुम्हारा बड़ा लड़का मेरी लड़की को छोटी समझकर छोड़ रहा है। कल तुम्हारा छोटा लड़का मेरी लड़की को बड़ी समझकर छोड़ देगा। फिर मेरी लड़की क्या करेगी? तुम्हारा फैसला मंजूर नहीं। जब शादी बड़े से हुई है तो लड़की जाएगी तो बड़े के साथ ही। वरना तो हमारे घर में ही पड़ी रहेगी।“
”एक बार फिर सोच लो जी चौधरण! बड़े लड़के का कोई भरोसा नहीं है। कब उसके मरने की खबर आ जाए। रोज जेलों में पिटता फिरता है। वहाँ खाने-पीने के लिए भी नहीं देते।“
”भरोसा तो, तुम्हारा- हमारा भी एक रात का भी नहीं है। जो होना होगा हमारी बेटी का हो जाएगा।“
”फिर चलते हैं चौधरी! सोच लो जी। फिर भी जो तुम चाहोगे वही होगा।“
रामरती ने मुड़कर चादर मिलाई के रुपये छज्जू के हाथ में पकड़ा दिए।
छज्जू मेहमानों को बस में बैठाकर घर आ गया।
”एक बात कहता हूँ फूल्लो की माँ।“
”कहो!“
”अभी तो वे अपने आप कह रहे हैं। अगर कुछ बुरा हो गया तो लड़की कहीं की नहीं रहेगी।“
”पागल हो गए हो क्या? जिसके साथ शादी की है, उसी के साथ जाएगी लड़की। छोटे की उम्र का लेख तुमने देखा है क्या? बचाने वाला तलवारों की छाया में से भी बचा देता है। मारने वाला सात तालों के अन्दर से भी ले जाता है। किस्मत किसने देखी है? फिर मत कह देना यह बात।“
छज्जू चुप हो गया।
”रामरती! मेहमान क्यों आए थे? सुना है, तुम्हारे जमाई ने कांग्रेस का झन्डा उठा लिया है?“ इमरती ने पूछा।
”कह रहे थे बड़े का कोई भरोसा नहीं, छोटे के यहाँ भेज दो।“ रामरती ने बताया।
”तुमने क्या जवाब दिया?“
”क्या कहते? कह दिया, जाएगी तो बड़े के यहाँ ही जाएगी।“
”कहा तो ठीक; मगर फिर भी डर-सा तो लग रहा है। कांग्रेस वालों के ऊपर रोज डंडे बरस रहे हैं। रामशरण का लड़का भी उसी में चला गया। परसों से उनके घर में भी शोक सा पड़ा हुआ है।“
”ये कांग्रेस वाले क्या करना चाहते हैं?“ रामरती ने पूछा।
”कहते हैं देश आजाद करवाएँगे “, इमरती बोली।
”इस तरह देश आजाद हो जाएगा?“ रामरती ने पूछा।
”क्या पता? आफत तो बहुत उतरी हुई है“, इमरती बोली।
”आफत क्या उतार रहे हैं, वे मार रहे हैं ये मर रहे हैं। इस तरह मर-मरकर देश आजाद हुआ करता है क्या?“ रामरती ने फिर पूछा।
”कुछ तो करेंगे ही, बहन! वारे अंग्रेजों का दीन-धर्म भी नहीं। निहत्थों पर हाथ उठाते शरम भी नहीं आती उन्हें।“ इमरती बोली।
”मेरा लड़का भी ये कह रहा था कि हमारी खातिर कांग्रेसी पिट-छित रहे हैं।
”अगर कुछ हो गया बहन! फिर क्या होगा लड़की का?“
”जो भगवान ने लिखा होगा उसके भाग्य में“, रामरती आँसू पोंछती हुए बोली।

तीन साल बाद।
”फूल्लो! चल मेले में चल रहे हैं“, बाला ने कहा।
”माँ नहीं जाने देगी।“
”मैं बात करती हूँ, चाची से।“ कहा और वह दही बिलोती चाची के पास पहुँच गई।
”चाची हम सब मेले में जा रहे हैं, फूल्लो को भी ले जा रहे हैं।“
”नहीं बेटी, रहने दो! तुम ही जाओ।“
”चाची, वैसे ही बेचारी बहुत दुखी है। मन खुश हो जाएगा। भैय्या भी जा रहा है हमारे साथ।“
”ठीक है। ले जाओ! तुम्हारे भरोसे।“
”बेफिक्र रहिए चाची! पूरा ध्यान रखूँगी।“ बाला फूल्लो की तरफ मुड़कर बोली, ”चलो बदलो कपड़े।“
मेले में घूमते हुए फूल्लो को दो-तीन लड़के देख रहे थे। जहाँ वह जाती, वहीं पहुँच जाते। कम्बल ओढ़े एक लड़का उसके पीछे-पीछे चल रहा था।
उसे देखकर फूल्लो तेज चलने लगी। वह भी तेज चलने लगा। वह भागने लगी। वह भी भागने लगा और इस तरह तेज भागकर फूल्लो ने अपने घर आकर ही साँस ली। वह बुरी तरह डर गई थी।
”तू मेले में से अकेली क्यों आ गई? हम कितने हैरान हो गये थे। तुझे पता?“ बाला ने पूछा।
”एक कम्बलवाला मेरे पीछे-पीछे भाग रहा था।“ फूल्लो ने कहा।
”कम्बलवाला तेरा पति था। तेरे साथ बात करना चाह रहा था।“
”कह रहा था- पता नहीं जिन्दा आऊँगा कि नहीं। तू तो पत्ता तोड़कर भाग आई।“
फूल्लो के दिल में कुछ दर्द-सा हो गया था।
”वैसे तेरा पति है बहुत सुन्दर। एकदम गोरा। नाम की तरह सूरज जैसा। तूने ठीक नहीं किया, बेचारा!“
”मुझे क्या पता था….“, फूल्लो कुछ सोचकर पछताने लगी।
”बेचारा बहुत खुशामद कर रहा था। एक बार मिलवा दो। पता नहीं, फिर मौका मिले न मिले।“ बाला ने बताया।
फूल्लो गुम हो गई।
”तेरे चक्कर में मेले में गए थे। तूने सारा काम बिगाड़ दिया।“
अब फूल्लो सदमे में आ गई थी। बार-बार सोचने लगती। एक बार सूरत तो देख पाती।
फूल्लो को बुरे-बुरे सपने आने लगे थे। सोते-सोते उठकर बैठ जाती थी। भगवान से प्रार्थना करने लगती थी।
”हे भगवान बचा लेना हमारे….।“

दो साल बाद देश आजाद हो गया था।
”फूल्लो की माँ सिंभालके वाले आ गए हैं।“ छज्जू ने बताया।
सुनते ही रामरती इधर-उधर भागने लगी। फूल्लो के ऊपर जैसे फूल बरसने लगे।
सूरज अपने पिता, चाचा व भाई के साथ आया था। पीछे-पीछे गाँव के लोग फूल्लो के पति को देखने आ रहे थे।
चारपाई पर नयी दुतई बिछाकर सबको बैठा दिया गया था।
”चौधरी! तुम्हारे लड़के ने तो हमारे गाँव का नाम रोशन कर दिया।“ सिरिया ने कहा।
सूरज के पिता, चाचा, भाई की छाती गर्व से फूल गई थी।
”चौधरी! सुना है जेल में बर्फ की सिल्ली पर डालकर हंटरों से पीटते थे।“
”दिखा तो, कुरता निकालकर“, सूरज के पिता ने कहा।
गाँव वालों के मन में सूरज के प्रति इज्जत बढ़ गई थी। कमर पर निशान देखकर सबको तकलीफ भी हो रही थी। सब गाँव वाले फूल्लो के पति को बहुत चाव से देख रहे थे।
फूल्लो को विदा होते हुए सारा गाँव देख रहा था।
पहले आजादी की दुल्हन लाकर सूरज अब अपनी दुल्हन घर ले जा रहा था।
”रामरती! तुमने उस दिन सही फैसला किया था, नजर न लगे लड़की को, राज करेगी तुम्हारी लड़की।“ इमरती ने कहा।
”तुम्हारी ही लड़की है, हमारी क्या? सब भगवान की मर्जी।“

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