आज के समाज में सैनिक पत्नियों और उनके परिवारों की जो सच्चाई है, वह अक्सर लोगों की दृष्टि से ओझल रहती है। समाज उन्हें सम्मान की दृष्टि से तो देखता है, पर यह सम्मान दोहरे दृष्टिकोण में बंधा होता है। जब तक सैनिक ड्यूटी पर होता है, समाज उनकी वेदना को समझने का कोई प्रयास नहीं करता। लोगों को लगता है कि सैनिक की पत्नी और उसके बच्चे ऐशो-आराम की जिंदगी जी रहे हैं—उन्हें आर्मी कैंटीन की खरीदारी, सरकारी सुविधाएं और बगीचे जैसे जीवन का भ्रम होता है, पर उन्हें उस दर्द और संघर्ष का कोई आभास नहीं होता, जो ये परिवार हर रोज झेलते हैं।
दूसरी ओर, जब सैनिक अपने परिवार को साथ रखता है तो समाज यह सवाल करता है कि पत्नी को घूमने का शौक है या बच्चे स्थिर नहीं रहना चाहते। और अगर सैनिक अपने परिवार को अपनी स्थिति को देखते हुए कहीं और शिफ्ट करता है, तब भी समाज सवाल उठाता है कि ये लोग अलग क्यों रहते हैं? ऐसे में एक सैनिक की पत्नी हमेशा आलोचना और नजरों के शक के बीच जीती है। समाज न तो उसके त्याग को समझता है, न ही उसे भावनात्मक सहारा देता है।
सैनिक की पत्नी को केवल अपने पति की जान की चिंता ही नहीं होती, बल्कि उसे अपनों के सौतेले व्यवहार और रिश्तेदारों के उपेक्षा पूर्ण दृष्टिकोण से भी दो-चार होना पड़ता है। कई बार सास-ससुर भी साथ नहीं देते, और मायके भेजे जाने पर वहां भी उसे तानों और कटाक्षों का सामना करना पड़ता है। ऐसा लगता है जैसे वह हर जगह पराई हो गई हो। उसकी पीड़ा को सिर्फ उसकी मां, उसका भाई और उसका पति ही समझ पाते हैं। पति वह एकमात्र व्यक्ति होता है जो जानता है कि उसका परिवार किन हालातों से गुजर रहा है।
कई बार सैनिक की पत्नी मजबूत बनकर अपने बच्चों की परवरिश अकेले करती है, लेकिन कई बार वह मानसिक अवसाद का शिकार हो जाती है। वह एक दोहरी जिंदगी जीती है—एक ओर गर्व, दूसरी ओर अकेलापन। जब उसका पति सर्द बर्फ में, तपती धूप में, या बारिश में देश की रक्षा में लगा होता है, तब वह घर पर चैन की दो रोटी भी अपराधबोध के साथ खाती है।
रिश्तेदार सुख में भागीदार बनते हैं, लेकिन दुःख में उनसे मुंह मोड़ लेते हैं। मैंने स्वयं इस पीड़ा को महसूस किया है, अपने पति की आंखों में उस दर्द को देखा है, जब उसके अपने ही केवल पैसे या सुविधा के लिए याद करते हैं। सैनिक की पत्नी जब अकेली होती है, तो समाज के पराए मर्द ‘छतरी’ लेकर खड़े हो जाते हैं—यह छाया नहीं, एक चुभन होती है उसके मन के भीतर।
ऐसे में मैं हर उस लड़की से कहना चाहती हूं जो किसी सैनिक से विवाह करने का सपना देखती है—पहले खुद को तैयार कर लो, क्योंकि इस जीवन में परिवार और रिश्तेदारों से कम ही सहारा मिलेगा। हां, गर्व जरूर मिलेगा, क्योंकि तुम्हारा पति वो वीर है जो देश की खातिर अपनी नींद, अपने बच्चे, अपने सुख सब कुर्बान करता है।
सरकार से हमारी यह अपेक्षा होनी चाहिए कि वह केवल सैनिक की नहीं, बल्कि उसके पूरे परिवार की भावनाओं, तकलीफों और संघर्षों को समझे। सैनिक जब अपने बच्चों की हँसी को छोड़, माँ की गोद को छोड़, पत्नी के कंधे को छोड़, बर्फ में पिघलता है—तो उसे बदले में सिर्फ संघर्ष न मिले, बल्कि सम्मान और सहारा भी मिले।
क्योंकि—
“जीवन तेरा ना निरर्थक होगा
तेरा हर फैसला सार्थक होगा
तू है वीर, साहसी, वीरवान
संपूर्ण देश करता तेरे पर अभिमान।”
– ज्योति राघव सिंह, वाराणसी (वर्तमान: लेह-लद्दाख)
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