कुछ दिनों से संगीतज्ञ राधारमण जी के पास एक युवती संगीत सीखने आ रही थी। जैसा रूप वैसा मधुर स्वर था चाँदनी का.. बस सुर नहीं सधते थे। गुरुजी पूरी तन्मयता से सिखाने में लगे थे। थोड़ी दिन में उनकी मेहनत रंग लाने लगी। चाँदनी को भी सीखने की बड़ी ललक थी वह हर बारीकी पर पूरा ध्यान देती धीरे-धीरे उसकी प्रस्तुति में बेहद निखार आने लगा था। राधारमण जी चाँदनी से बेहद प्रभावित थे यहाँ तक की एक जुड़ाव सा महसूस करने लगे थे और चाँदनी के गीतों में खुद को तलाशते । चाँदनी का संगीत साधना अभ्यास का अंतिम दिन निकट ही था।
राधारमण जी अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पा रहे थे एक तरफ गाँव में परिवार के प्रति नैतिक कर्तव्य झकझोरता दूसरी तरफ चाँदनी का लावण्य उन्हें कमजोर कर रहा था। उधर चाँदनी भी राधारमण के प्रति आकृष्ट थी। इसका कारण दोनों का हम उम्र होना नहीं था बल्कि गुरुजी तो अधेड़ावस्था के दौर से गुजर रहे थे। उम्र का यह दौर वह होता है जब परिवार के प्रति कर्तव्य और दायित्व ही प्रेम का पर्याय बन जाते और प्रेम का वह मधुर भावनात्मक रूप कहीं पीछे छूट जाता है। पति-पत्नी के बीच संवादहीनता, चिड़चिड़ापन व विरक्ति भाव अपना अस्तित्व बना लेता है। दोनों परस्पर एक दूसरे की भावना से अनजान रहने लगते या एक दूसरे को समझने की आवश्यकता ही नहीं समझते। ऐसे में कहीं किसी झरोखे से हवा का झोंका आकर तप्त मन को शीतल कर दे तो मन का सहज ही आनंदित होना स्वाभाविक है। ऐसा ही कुछ राधारमण जी चाँदनी के साथ महसूस करने लगे थे। बातों बातों में कब वह दोनों अपने व्यक्तिगत जीवन की तमाम बातें तथा अपना दुःख सुख आपस में बाँटने लगे । धीरे-धीरे उनकी पत्नी उन दोनों के मध्य तीसरी बन गई जिससे औपचारिक बातचीत भी लगभग बंद सी हो गई थी।
दीपावली करीब थी राधारमण जी को त्योहार पर घर जाना पड़ा। भारी मन से वह घर पहुँचे मन नहीं लग रहा था थोड़ी-थोड़ी देर में अपने फोन का निरीक्षण करते रहते.. उधर चाँदनी का भी यही हाल था। असल में साथ की आदत भी लगाव का ही एक रूप है। उनकी पत्नी ने अपने पति के व्यवहार में परिवर्तन को शीघ्र ही भाँप लिया था। उसने उन्हें खुश करने के लिए कभी उनकी पसंद का खाना बनाती कभी कोई अच्छी बात सुनाती..बच्चों के बीच राधारमण जी भी कई बार सहज नहीं हो पाते मन में मंथन चलता रहता मन आत्मग्लानि से भर उठता कि वह जो कर रहे हैं वह उचित नहीं। वह सहज नहीं हो पा रहे थे पत्नी कुछ गलत न सोचे इस कारण उसे पर भी कुछ ज्यादा स्नेह उड़ेल रहे थे। कभी-कभी स्थितियाँ अजीब सी बनावटी हो जाती ।
राधारमण जी के चेहरे पर एक अजीब सी खुशी आँखों में एक अलग सी चमक दिखने लगी थी। यह प्यार होता ही ऐसा इंसान की रंगत बदल देता है।राधारमण जी का घर का कोना पकड़कर फोन में डूबे रहना या घर से दूर जाकर बातें करना पत्नी की नजर से बचा नहीं था। राधा रमन जी का शहर जाने का समय नजदीक आ रहा था पत्नी ने इच्छा जताई की क्यों न बच्चों की आगे की शिक्षा शहर में दी जाए हम सभी परिवारजन वही रहे चलकर । राधारमण जी अचानक यह प्रस्ताव सुनकर बौखला गए झल्ला पड़े तुम लोग कुछ भी सोच लेते हो। अरे! शहर में रहना मजाक है क्या.. देखा जाएगा पत्नी ने कहा,” अरे! शहर में रहना आसान नहीं तो आप भी यही रहे अपना संगीत स्कूल खोल लें। हम सब साथ रहेंगे.. किशोर होते बच्चों का भविष्य भी सुरक्षित हो जाएगा।” घर में बहस बहुत बढ़ गई राधारमण जी इसी बहाने दो दिन पहले ही शहर लौट गए।
चाँदनी को जैसे ही सूचना मिली वह राधारमण जी के पास मिलने पहुँच गई। राधारमण जी ने घर की बहुत सारी बातें अपने हिसाब से चाँदनी से साझा कीं । चाँदनी दया सहानुभूति भाव से भर उठी। लगा राधा रमन जी अपनी पत्नी नहीं किसी खलनायिका के चंगुल से निकाल कर आए हो। भावविह्वल राधारमण जी चाँदनी की गोद में सिर रखकर बैठ गए उन्हें स्वर्गिक आनंद की अनुभूति हो रही थी । चाँदनी तुम कितनी अच्छी हो.. सब तुम्हारी तरह क्यों नहीं है ..इतने सुलझे हुए ..इतने समझदार राधारमण जी भावुकता में बोल रहे थे।
“काश! तुम मुझे पहले मिली होती तो जिंदगी आज इतनी कठिन न होती,” राधारमण जी अश्रुपूरित आँखों से देखते हुए चाँदनी से बोले।
“चाँदनी हम दोनों नदी के वह किनारे हैं जो कभी मिल नहीं सकते,” वह भाव प्रवाह में बोलते जा रहे थे।
“ओफ्फो! मिल नहीं सकते तो क्या हुआ साथ चल तो सकते हैं आज वादा करती हूं कि मैं आपका साथ और हाथ कभी नहीं छोडूंगी किसने कहा साथ देने के लिए शादी जरूरी है मैं आपसे दूर रहकर भी सदा आपकी रहूंगी आपका जब मन करे मेरे पास आ जाना हमसे बातें करना अपना सुख दुख कहना,” चांदनी भावुकता में निर्णय लेते हुए बोली। कुछ देर बाद चाँदनी अपने घर चली गई।
राधारमण जी चिंता में डूबे थे.. आत्ममंथन चल रहा था..मेरा परिवार क्या कहेगा.. यह समाज क्या सोचेगा?.. क्या मुझे अपनी खुशी.. अपनी जिंदगी के बारे में सोचने का हक नहीं है चाँदनी की जिंदगी अपने लिए बर्बाद करना क्या उचित होगा राधारमण जी असमंजस में पड़े थे क्या करें कि क्या न करें.. अम्मा बाबूजी क्या सोचेंगे क्या यह पत्नी के प्रति धोखा नहीं होगा बच्चों का भविष्य भी तो उनकी जिम्मेदारी है।
अगले दिन चाँदनी आई तो कमरे पर ताला लगा देख मकान मालिक से पूछा वह बोले राधारमण अपने गाँव वापस लौट गए। अब वह वही रहेंगे। चाँदनी समझ नहीं पा रही थी कि अचानक ऐसा क्या हुआ.. उनका फोन भी बंद आ रहा था।
सीमा वर्णिका, कानपुर
73764 98172

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