जनवरी -2023 सत्यकथा
बात उस समय की है जब मैं ऑठवीं क्लास में पढ़ाई कर रहा था।शाम का समय था, मैं घर पर पढ़ाई करने के बाद टहलने के लिए निकला था।हमारे गॉव के बगल से रेलवे लाइन गुजरती है,मैं उसी तरफ घूमनें निकल पड़ा।कुछ दूर आगे जाने पर छोटे बच्चों की टोली उछल-कूद करते हुए रेलवे-लाइन की तरफ से वापस आती नजर आयी।बच्चों की टोली मेरे बगल से गुजरी तो मैंनें एक बच्चे के मुंह से सुना-
“ट्रेन पलट जायेगी तो हम सब उसमें बैठ जायेंगे।”
दूसरे ने कहा-
“तब तो सभी यात्री भींग जायेंगे”
क्योकि उस समय हल्की-हल्की बूंदा-बांदी हो रही थी।
मैंनें उनकी बात को बीच में ही काटते हुए पूछा-
“क्या हो गया?_ट्रेन क्यों पलटेगी?_तुम लोग इस तरह की बात क्यों कर रहे हो?”
उनमें से उम्र में बड़े एक लड़के ने बताया-
“भइया पटरी टूटी गयी है न, तभी हम लोग कह रहे हैं।”
मैंनें तुरन्त उनसे पूछा-
“कहॉ??___किस तरफ टूटी है?”
लड़को ने बताया-
“पोखर के बगल की तरफ” और सब भाग गये।
मेरे दिमाग में प्रश्न कौधा-“क्या ये सब सही कह रहें हैं?” अगले ही मैंनें रेलवे-लाइन की तरफ अपनें कदम बढ़ा दिये। रेलवे-लाइन पर पहुंच कर पोखरे की तरफ आगे बढ़ने लगा और वहॉ पहुंच कर बारिश में भीगने की परवाह किये बिना टूटी रेल-पटरी को ढ़ूढ़नें लगा। सायंकालीन अँधकार और आसमान में काले बादल घिरे होने के कारण कुछ स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा था। फिर मैंनें एक उपाय ढ़ूढ़ निकाला, मैंनें हाथ से घसिटकर टूटी रेल-पटरी को ढ़ूढ़ना शुरू किया। लगभग 200 मीटर पटरी पर हाथ घसिटने के बाद भी टूटी पटरी नही मिली। मैं हताश नहीं हुआ और दूसरी पटरी पर उसी तरीके से ढ़ूढ़ते हुए आगे बढ़ने लगा। लगभग 50 मीटर हाथ घसिटने के बाद मैं टूटी रेल-पटरी को ढ़ूढ़नें में सफल हो गया। यह तो रहा मेरा ‘टूटी पटरी को खोज निकालने का अभियान।’
अब प्रश्न यह था कि इसकी सूचना रेलवे-स्टेशन को कैसे दी जाय? मेरे गॉव से शाहगंज रेलवे-स्टेशन लगभग आठ किमी दूर था। मेरे पास उस समय फोन भी नही था, जिससे स्टेशन-मॉस्टर को इसकी सूचना देता। मैंनें पास से मदार का एक पौधा उखाड़ कर रेलवे-पटरी के बीच में पत्थरों के सहारे गाड़ दिया, ताकि यहॉ से हटने के बाद मैं पहचान सकूं कि कहॉ पर रेलवे-पटरी टूटी है। क्या करे?……क्या न करें?……इन्हीं विचारों में उलझा ही था कि पूरब की तरफ दूर रेल लाइन के बीचो-बीच हल्की रोशनी प्रकट हुयी।रोशनी तेज होती जा रही थी,स्पष्ट था…कि कोई ट्रेन आ रही है। मैंनें सोचा अब क्या किया जाये? अब तो ट्रेन पलट जायेगी?
मैंनें तुरन्त ही ट्रेन को रोकने का निर्णय लिया और रेलवे-ट्रेक पकड़कर पूरब की तरफ दौड़ पडा। रेल-पटरी पर पत्थर होने और बारिश की वजह से फिसलन होने के कारण दौड़ते समय मेरा चप्पल भी टूट गया,परन्तु मैंने नंगे-पांव ही दौड़ना जारी रखा। टूटी-पटरी से लगभग छ:-सात सौ मीटर दूर पहुंचने के बाद रेलवे-पटरी के बीचो-बीच खड़ा हो गया।…खड़ा हो गया अपनी जिम्मेदारी को निभाने के लिए। मैंने अपनी लाल टी-शर्ट उतार कर हाथ में ले लिया…….तब तक ट्रेन भी काफी नजदीक आ चुकी थी। मेरा हृदय रेल-इंजन से भी तेज गति से धड़क रहा था,मैंने फिर भी धैर्य के साथ हिम्मत बांधे रखा। ट्रेन एकदम से मेरे सामने आ गयी। मैं जोर से चिल्लाता हुआ पटरी के बगल में कूद गया- “जाओ…………..सब मरोगे..??”
जिन्दगी और मौत के इस खेल में अब मैं सुरक्षित था,परन्तु मेरा हृदय किसी अनहोनी की अशंका में थमा जा रहा था। मेरा शरीर बारिश में भी पसीने से भीग गया और बुरी तरह से कॉपने लगा। ट्रेन किसी तरह से टूटी रेल-पटरी से सकुशल गुजर गयी। तब जाकर मेरे जान में जान आयी। मैंने सोचा मेरा टी-शर्ट पुराना हो जाने की वजह से लाल रंग हल्का हो गया है,इसी कारण से ट्रेन नहीं रूकी।
अब मैंने निर्णय किया कि साइकिल से स्टेशन जाकर इसकी सूचना दूंगा। मैं रेलवे-पटरी पकड़कर नंगे पांव ही घर की तरफ वापस जाने लगा। टूटी पटरी से कुछ ही दूर पहुंचा था कि दो रेलवे-कर्मचारी शाहगंज रेलवे-स्टेशन की तरफ से मेरी तरफ भागते हुए चले आ रहें थे। अंधेरा होते हुए भी लाल रंग के कपड़े पहने होने की नाते वे दूर से ही नजर आ रहे थे। पास आने पर मैंने उनसे पूछा-
“क्या हुआ ?”
तो हॉफते हुए दोनों बोल पड़े-
“भइया कहीं पटरी टूटी है क्या ?”
मैंने जवाब दिया-
“हॉ….टूटी है……परन्तु बिना किसी उपकरण के……क्या पटरी पर लेटकर उसे ठिक करोगे??”
उन्हें भी मेरी बात सही लगी।उनमें से एक वापस पास में बने उपकरण स्टोर की तरफ भागा और दूसरा मेरे साथ टूटी पटरी देखने चल पड़ा।नंगे पांव चलने में मुझे काफी कष्ट हो रहा था और ऊपर से बारिश की बौछार भी परन्तु मुझे तकिन भी गम नहीं था क्योकिं मैं अपनी जिम्मेदारी जो बखूबी निभा रहा था।मैनें पटरी के बीच में पहचान के लिए लगाये मदार के पौधें से टूटी पटरी का तुरन्त ही पहचान कर लिया।मैंने उस रेल-कर्मचारी से पूछा-
“आप लोगों को कैसे सूचना मिली?”
उसने बताया-
“हमें स्टेशन-मॉस्टर द्वारा सूचना मिली और स्टेशन-मॉस्टर को सूचना रेलगाड़ी के उस ड्राइवर ने दी थी जो ट्रेन अभी-अभी स्टेशन की तरफ गयी है”
एक प्रश्न जो काफी देर से मुझे परेशान कर रहा था।मैंने उससे पूछा-
“भइया टूटी हुयी पटरी से ट्रेन कैसे सकुशल पार हो गयी ?”
उसने कहा-
“पटरी इस तरह से टूटी है कि अगर ट्रेन पश्चिम की तरफ से आती तो अवश्य ही पलट जाती।”
फिर मैंने पूछा-
“मैंने पटरी के बीच में खडा होकर ट्रेन को रोकने का प्रयास किया था परन्तु ड्राइवर ने ट्रेन क्यों नहीं रोकी?”
उसने जवाब दिया-
“रात में ट्रेन अक्सर लूट ली जाती है इसीलिए ड्राइवर ने रोकने का संकेत देने के बावजूद भी ट्रेन नही रोकी थी”
कुछ देर बाद दूसरा कर्मचारी भी उपकरण लेकर आ गया।उसने उपकरण रखकर सबसे पहले टूटी पटरी से दोनों तरफ दो-दो सौ मीटर की दूरी पर एक-एक लाल झण्डा रेलवे-पटरी के बीच में गाड़ दिया ताकि पटरी को ठिक करते समय कोई ट्रेन आने पर दूर ही खड़ी हो जाये।
उसने कहा-
“अब हम लोग ठीक कर लेंगे, आप जाइये”
सुबह सूचना मिली कि दोंनो रेल-कर्मचारी टूटी रेल-पटरी को बगल से सपोर्ट लगाकर रातभर वहीं बारिश में तम्बू लगाकर निरीक्षण करते रहे।ईश्वर का लाख-लाख धन्यवाद् उस दिन सभी यात्रियों की और मेरी जान बचाने के लिए।मुझे लगा कभी-कभी अपनी जान को जोखिम में डालकर भी जिम्मेदारियों को निभाना पड़ता है।
रणजीत यादव’क्षितिज’
सब इंस्पेक्टर यू पी पुलिस अयोध्या