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स्वयं से विवाह-विमल शुक्ल

जनवरी-2023

स्वयं से प्रेम तो बहुत से मनुष्य करते हैं, मैं भी करता हूँ। किन्तु विवाह तो किसी अन्य से ही किया है। विवाह का उद्देश्य प्रेम होता है पहली बार पता चला। हमारी सनातन परंपरा में तो दो अनजाने लोग विवाह करते रहे हैं बच्चे पैदा करते रहे हैं परिवार का विस्तार करते रहे हैं। उनमें कभी प्रेम हुआ तो ठीक नहीं हुआ तो ठीक। मेरे अपने विवाह को 26 वर्ष हो गए। मैं अपनी पत्नी से प्रेम करता हूँ निश्चय करके नहीं कह सकता। पत्नी को छोड़िये मेरे जानने वालों को कोई यह बता दे कि विमल कुमार शुक्ल को किसी से प्रेम भी है तो विश्वास नहीं करेंगे।विवाह का कारण प्रेम है तो यह भी आवश्यक नहीं। हमारे समाज में तमाम लोग हैं परस्पर प्रेम करके जीवन बिता देंगे पर विवाह नहीं करेंगे। विवाह किसी और से प्रेम किसी और से यह भी चलता है।

फिल्म वालों ने लैला मजनूँ और शीरी फरहाद से टपोरियों को दिमाग में इस तरह भर दिया है कि अब प्रेम पहले फिर शादी और कभी कभी शादी से पहले ही ब्रेकअप।मैं कुछ लोगों को जानता हूँ जो विवाह करके अपना घर तो बसा  नहीं पाये हाँ प्रेम के चक्कर में दूसरे का तोड़ जरूर दिया। ऐसे लोग भी समाज में हैं विवाह नहीं करेंगे लेकिन हर फूल का आस्वाद ग्रहण करने के चक्कर में रहेंगे। एक उम्र पर जब स्थायित्व चाहेंगे तो फूलों के द्वारा स्वतः फेंक दिए जायेंगे।खैर आप विवाह करें न करें। आपकी इच्छा। संविधान अनुमति देता है। किन्तु बायोलॉजी का क्या? बायोलॉजी सभी सजीवों में (पेड़ पौधों सहित) अपनी सृष्टि विस्तार के लिए लैंगिक व अलैंगिक दो प्रकार के साधनों को इंगित करती है। लैंगिक व अलैंगिक जनन करनेवाले प्राणियों की पृथक पृथक विशेषताएं होती हैं। स्पष्टतः मनुष्य लैंगिक प्राणी है। जैसे ही बालक बालिकाएं किशोरावस्था में पहुँचते हैं विपरीत लिंगियों में आकर्षण बढ़ जाता है। इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है। हाँ हमारी सामाजिक परम्पराओं व मान्यताओं के कारण हम लड़के लड़कियों के स्वतंत्र मेलजोल को अनैतिक मानते रहे हैं।

इस अनैतिकता को नैतिकता का स्वरूप प्रदान करने के लिए ही विवाह को स्वीकारा गया है। दूसरे आयुर्वेद के जानने वाले जानते है कि शरीर के चौदह वेग भूख, प्यास, खाँसी, श्वास, जम्भाई आदि में एक वेग यौनेच्छा का भी है। इन सारे वेगों को रोकने से शरीर विकारग्रस्त हो जाता है। विवाह मनुष्य की यौन इच्छाओं की तृप्ति का साधन भी है। भौतिकी में भी न तो धनावेश-धनावेश आकर्षित होते हैं और न ऋणावेश-ऋणावेश। ये सदैव प्रतिकर्षित ही करते हैं। कार्यफलन के लिए धनावेश व ऋणावेश का संगम आवश्यक है। इसी प्रकार चुम्बक में ध्रुवों का व्यवहार भी होता है। उत्तर-उत्तर व दक्षिण-दक्षिण ध्रुव कभी नहीं मिलते। एकल ध्रुवीय चुम्बक का तो अस्तित्व ही नहीं होता।

ठीक इसी प्रकार आप सनकी या महामानव हो सकते हैं किन्तु परिवार नहीं हो सकते। परिवार के लिए धनावेश-ऋणावेश, उत्तर ध्रुव-दक्षिण ध्रुव जैसे ही स्त्री-पुरूष तथा प्रेम और घृणा दोनों की ही आवश्यकता होती है।यह सम्भव है कि आपको अपने मनोनुकूल साथी मिलने में समय लगे इसके लिए ईश्वर से प्रार्थना करें किन्तु मिलेगा अवश्य। न मिले फिर दूसरे को अपने मनोनुकूल बना लें। सबसे सरल है स्वयं दूसरे के मनोनुकूल बन जाएं। प्रेमी का यह भी एक स्वरूप होता है और सर्वोत्तम स्वरूप है कि हम वह बनें जो हमारा प्रेमी/प्रेमिका चाहता है/चाहती है। मार्ग अनन्त हैं हठ छोड़ कर देखें।

संक्षेपतः विवाह एक आवश्यक व नैतिक शर्त है, आप करें न करें आपकी मर्जी, किन्तु उपयुक्त अवस्था प्राप्त कर, पूर्ण स्वस्थ होकर भी विवाह नहीं करते तो आप मनोविकारी हैं हाँ सन्यासी हो जाएं अलग बात है। तो मेरा सुझाव है यदि आपकी उम्र हो गई है नैसर्गिकता का आनन्द लें विवाह करें और वैवाहिक धर्म का पालन करें। जिस प्रकार मार्ग सदैव समतल नहीं होता उसी प्रकार जीवन भी समतल नहीं होता। पर्वतारोहण से घबरायें नहीं।

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