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मुक्तावकाश-डा बबीता गुप्‍ता

गणतंत्र दिवस की परेड में  सभी दूरदर्शन पर, परेड में मिताली की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे थे तभी मिताली को सलामी करते हुये, लगभग सौ पुरुषों के दल का कुशलता से संचालन हुये जैसे ही दूरदर्शन पर दिखाई दी,तो उसका दस साल का बेटा,हिमांशु खुशी से ताली बजाते हुये कहने लगा,’देखिए दादाजी,मम्मी, पापा जैसी ड्रेस पहने हुये सलाम कर रही हैं ।’हिमांशु की बात सुन,उसकी दादी को सीमा पर खोये बेटे,शेखर की याद में  ऑसू निकल पड़े ।उसकी कामयाबी पर सब खुश थे.. सास-श्वसुर उसमें अपने खोये हुये बेटे की छवि देख आत्मसंतोष था पर मिताली की खुशी शेखर के बिना बेरंग थी।पुरानी यादें चलचित्र की तरह ऑखों में तैर रही थी…।

शेखर ,मिताली का पति वायुसेना में अफसर था।जब मिताली से उसके रिश्ते की बात पक्की हुई, तो जैसे मिताली की अपने भावी जीवन साथी की कल्पना साकार हो गई हो।और क्यों ना हो?उसे बचपन से ही अपनी सबसे हटकर पहचान बनाने का जुनून सवार था।कक्षा नवीं  में  जब सब सहेलियों ने खेलकूद में भाग लिया,तो मिताली ने एनसीसी विषय का चयन किया।घर पर पता लगने पर उससे विषय बदलने का दबाव बनाकर पापा ने कहा  कि, लड़कों के काम ,तुम्हे शोभा नही देते।’

पापा की बात सुन,दादी को भी अपनी बात कहने के अवसर मिल गया,कहने लगी,’अब का हाथ में बन्दूक उठाके झांसी की रानी बनेगी।”हाँ, दादी,मैं भी कुछ नया करना चाहती हूँ ।मेरे नाम से आप सभी जाने जाये ,तो आपको फक्र हो।”हम औरतों की पहचान हमारे आदमी,बेटों  से होवे।बेटा इसे समझाओ तो जरा,’ मिताली के पापा से आदेशात्मक आवाज में दादी ने कहा।मिताली के पापा कुछ कहते कि इससे पहले मिताली कहते हुये स्कूल बस्ता उठा चलती बनती,’मैं तो आर्मी में अफसर बनूंगी,जब आप सभी को नाज होगा।’लेकिन लोगों की कानाफूसी से बचने के लिये,कैसे हाथ पीले होंगे, इन्ही बेफिजूली  बातो के चलते, उसे हाईस्कूल के बाद एनसीसी को छोड़कर अपने बुने अस्तित्व को मन के किसी कोने में दफन करना पड़ा।

शेखर के साथ परिणय सूत्र में बंधकर उसे इतनी तसल्ली थी कि मैं खुद तो नहीं बन सकी,लेकिन वायुसेना के अधिकारी की बीबी बनने का गुमान था।अपनी दुनिया में खुशहाल जीवन,एक अलग ही जीवन शैली,एक बेटे की माँ, यह सब पाकर जैसे शेखर मे अपनी छवि को जीती मिताली संतुष्ट थी।छुट्टियों में परिवार सहित शेखर  घर पर आता तो दिन पता ही नहीं चलते।एक दफा शेखर को घर आए दो दिन ही हुये थे,कि सीमा पर युद्ध छिड़ जाने के कारण,तुरंत ड्यूटी पर हाजिर होने के आदेश प्रेषित हो गये थे।तत्पर बोरिया बिस्तर बांध शेखर , मिताली और बेटे को अपने माता-पिता के पास छोड़,युद्ध में अपनी सेवा देने चला गया ।

दस दिन चले युद्ध में जीत हुई, पर कई जवानों  के बलिदान से हवाई हमले में  जिस क्षतिग्रस्त विमान का हवाला दिया गया, उसमें  शेखर  भी था,वो भी युद्ध में शहीद हो गया।अचानक आए जीवन में  इस मोड़ पर मिताली को तोड़कर रख दिया।बेटे के साथ-साथ, बुजुर्ग सास-श्वसुर की जिम्मेदारी…लेकिन वक्त के थपेड़ों के सामने वो हारने वाली नही थी।उसे अनुकंपा नौकरी,ऑफिस में  क्लर्क की सरकार द्वारा दी जा रही थी,पर उसने तो कुछ ओर ही दृढ़ संकल्प ले लिया था।जब अपना निर्णय घरवालों के समक्ष बताया तो पहले तो साफ इंकार कर दिया।सुनकर अंदर तक दिल दहल गया.. बेटे के बाद वो बहू को नही खोना चाहते थे।लेकिन जब मिताली ने शेखर का वास्ता दिया,तो उन्हें हामी भरनी पड़ी।

मिताली ने वायुसेना  की प्रवेश परीक्षा पास करने के बाद ,दिन-रात का प्रशिक्षण उसके सामने कड़ी चुनौती थी,कभी हिम्मत साथ ना देती तो शेखर के माता-पिता उसे टूटने नहीं देते।और आखिरकार उसने संघर्षमयी विजय प्राप्त की।वायुसेना की वर्दी पहनकर उसकी ऑखों में आखिरी वार विदा होते समय शेखर का चेहरा घूम गया।शेखर की माला चढ़ी फोटो पर नजर गई तो क्षण भर के लिए  एहसास हुआ, जैसे सामने खड़ा मुस्कराता हुआ शेखर उसे उसकी कामयाबी पर सैल्यूट कर रहा हो।वक्त के मरहम ने जिन्दगी की थोड़ी आसान सी कर दी थी।अब उसका एक ही मकसद था,देश की सेवा।उसकी काम के प्रति समर्पित भावना ,उसकी कामयाबी के किस्से आए दिन अखबारों के मुख्यपृष्ठ की शोभा बढ़ाते और उत्कृष्ट कार्यो के लिए  ना केवल राष्ट्रपति पुरुस्कार से सम्मानित होने वाली सूची मे दर्ज था,बल्कि गणतंत्र दिवस की पुरूषदल को संचालित करने का अवसर मिला। ।तभी फोन की घंटी सुन अतीत से बाहर आई।

फोन पर पापा थे जो बधाई देने के साथ-साथ, और कामयाब होने का आशीर्वाद  दे रहे थे,मम्मी की खुशी में  कही उसके इस वैधव्य जीवन का दुख भी महसूस हो रहा था।उसके जीवन में आज सब रंग थे सिवाय लाल रंग के…मम्मी की बात पूरी भी नही हुई थी कि पीछे से दादी की आवाज फोन पर सुनाई दी।दादी तो आशीषों पर आशीषों लुटाये जा रही थी।बिटिया तुमने ससुराल का ही नहीं ,हम सब का नाम रोशन कर दिया।तुम सही कहती थी,बिटिया।दादी की बात सुन उसे  अपने स्कूल टाईम की बात याद हो आई,जब दादी की दकियानूसी सोच के कारण  एनसीसी छोड़नी पड़ी थी, औरों को वर्दी में देख मन लालायित हो उठता था ,उन जैसा बनने के लिए।पर…लेकिन आज…(भीगी कोरो को पोंछते हुये) बचपन का सपना साकार जरूर हुआ,पर इस तरह…..।

डाॅ.बबीता गुप्ता 

C/O श्रीरमणी ट्रीटमेंट सेन्टर, 

कल्पना विहार,नेहरू नगर ,

अमेरी रोड, बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

पिन 495001

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