चिराग तले अंधेरा -मिन्नी मिश्रा

रात होने वाली थी।झुग्गी में रहने वाले दीपक की नजरें बार बार सामने  खड़े आलीशान बंगले पर जाकर चिपक जाती। वाह!कितने अमीर हैं ये लोग ,भाग्य के धनी भी! सब कुछ है इनके पास।वह बंगला रंग-बिरंगी चाइनीज लड़ी से सजकर  जगमगा रहा था! अनारदाने और रॉकेट की तेज रोशनी बंगले की चाहरदीवारी से निकल कर उसकी आँखों को चौंधिया रही थी!इतनी सुंदर आतिशबाजी को देख मायूस दीपक अपने मन की बात  गरीब माता -पिता को भी बता नहीं पाया, कि दो पटाखे आज  उसे नसीब नही हुए! और न पहनने के लिए नये कपड़े!तभी बंगले का मेन गेट खुला। अधेड़ पुरूष के साथ एक मॉडर्न स्त्री लड़खड़ाते हुए बाहर आई,वहीं खड़ी लग्जरी कार के  दरवाजे को खोल वे दोनों अंदर घुस गये.. कार ने अपनी रफ्तार पकड़ , सड़क पर दौड़ने लगी ।गेट से कुछ दूरी पर  खड़ा एक छोटा बालक बिलखते हुए उस कार को ओझल होने तक एकटक देखता रहा !अचानक उसकी नजर  दीपक से टकरा गयी। बालक दौड़कर उसके पास आया और जोर से रोने लगा। मानो ऐसा लगा जैसे उसे सगा बड़ा भाई मिल गया हो।उसे रोते देख दीपक मन ही मन बुदबुदाया , “अमीर बच्चा भी इतना रोता है क्या?” फिर उसने बड़े प्यार से पूछा,
” बाबू, तुम क्यों रो रहे हो? तुम्हारे पास तो खुश रहने के सारे साधन होंगे, फिर भी?! बताओ क्या बात है?””  सच कह रहा हूँ…. मैं खुश नहीं हूँ ! आज तक मैंने यह नहीं जाना  कि मेरे पिता कौन हैं?  ! वो मर गये या जिंदा हैं?!  पूछने पर भी माँ उनके बारे में मुझे कुछ नहीं बताती ! झिड़क कर भगा देती है।हाँ, खाने,पीने, पहनने के सारे समान घर में लाकर मेरे लिए भर देती है। लेकिन मुझसे कभी प्यार से वो बातें नहीं करती! माँ बड़ी कम्पनी की डाइरेक्टर है,बहुत पैसा मिलता है उसे, लेकिन नशा भी बहुत  करती है ! मैं उसे शराब पीते हुए देखता हूँ ! मुझे बहुत बुरा लगता है!
अक्सर रात में मेरे घर  एक कार आता है, उसी कार  ड्राइवर के साथ माँ चली जाती है,ओर मैं यहाँ मेड के भरोसे  रहता हूँ!जब सबेरे स्कूल जाता हूँ तो मेड ही मुझे स्कूल विदा करती है।माँ के भय से वो  मुझे कुछ नहीं बताती ! मैं बहुत भयभीत रहता हूँ, बहुत अधिक!

आज दीपावली है।आज तो माँ को नहीं जाना चाहिए था?!” बालक के सब्र का बांध टूट गया, वह फफकने लगा !

दीपक ने उसे गले लगाते हुए कहा,
“इतना डरो मत ! बुद्धिमानी से काम लो।आज से तुम खाना… खाना छोड़ दो। सब रहस्य अपने आप पता चल जाएगा ।” सुन कर बालक की आँखें चमक उठीं।
तभी उसके बंगले से औरत की तेज आवाज आई , “चिरा…ग, कहांँ हो? आओ।”

  तुरंत तेज कदमों से वह अपने गेट में घुस गया! बालक का नाम चिराग जान कर दीपक ने गहरी सांस भरी।

अब उसे गोबर से लीपा अपना आंगन , जिसमें माँ के द्वारा चावल के आंटे से बनाई रंगोली, उस पर अंडी के तेल से जल रहा मिट्टी का एक दीया  और पिता के लाये बतासे…बंगले की जगमगाती  रोशनी के आगे,  अधिक  दैदिप्यमान लगने लगा।

दीपक का मायूस चेहरा अनायास खिल उठा। उसके हावभाव में गरीबी का नामोनिशान नहीं था।

वह तुरंत अपने घर जाकर माँ से लिपट कर बोला, “तुम कितनी अच्छी हो, मुझे छोड़कर कहीं नहीं जाती हो।”

दो दीपक एक साथ जगमगा रहा था, एक आंगन में और दूसरा… मांँ की गोद में।

मिन्नी मिश्रा,पटना
स्वरचित,मौलिक

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