साहित्य सरोज पत्रिका द्वारा आयोजित गोपालराम गहमरी साहित्य व कला महोत्सव 20 से 22 दिसंबर 2024 तक चलने वाली तीन दिवसीय कार्यक्रम एक अनोखी, विविध कला एवं साहित्यकारों का एक अनुपम संगम था जिसे हम साहित्यकारों का महाकुंभ भी कह सकते हैं।
एक साथ विविध कार्यक्रम का, व्यवस्थित ढंग से संयोजन अद्भुत आश्चर्यजनक एवं दुस्साध्य कार्य है; जिसे कार्यक्रम के संयोजक अखंड गहमरी जी ने सम्पादित किया। प्रायः यह देखा गया है कि कोई भी कार्यक्रम को करने के लिए आयोजक कड़ी परिश्रम करता है,तब कहीं जाकर कार्यक्रम सफल होता है। आदरणीय अखंड जी कार्यक्रम में अतिथि नहीं अपितु अपने परिवार के रूप में साहित्यकारों को आमंत्रित करते हैं। और अतिथियों के आवभगत में उनका पूरा परिवार लगा रहता है। अखंड जी एक ऐसे शख्स है जो केवल सपने नहीं देखे अपितु साकार करना भी जानते हैं। एक ऐसा जुनूनी शख्सियत जो हर कार्य को अंतिम चरण देकर ही दम लेते हैं। गहमर का यह कार्यक्रम केवल कार्यक्रम नहीं अभी तो अखंड जी की साधना है। जिसमें प्रतिभाओं को सामने आने का पूर्ण अवसर प्रदान किया जाता है। अखंड जी एक पारस पत्थर है जिन्हे कलाकारों को निखारना अच्छी तरह से आता है। गहमर महोत्सव एक ऐतिहासिक कार्यक्रम है जिसके बारे में मैं बस यही कहना चाहूंगी कि ऐसा कार्यक्रम “ना भूतो ना भविष्यति।” जिसे अगर हम सराहनीय कहें, तो साहित्य एवं कला का अपमान होगा। उन्होंने साहसिक योगदान , व भगीरथ प्रयास किया कार्यक्रम को भव्य एवं सफल बनाने में। हमारी सनातन परंपरा को मूर्त एवं जीवंत करने वाले, सशक्त हस्ताक्षर का नाम अखंड गहमरी है।अनंत अविस्मरणीय क्षण हैं, गहमर से जुड़े; जो वर्णनातीत है। हम अखंड जी और आदरणीय ममता जी के,आतिथ्य से अभिभूत हैं। अलग-अलग प्रांत से सभी कलाकारों को बुलाकर एक मंच देना कोई आसान काम नहीं है। हम सभी पुष्पों को आपने पिरोकर एक सुंदर हार निर्मित किया, मां कामाख्या के पावन धरा पर हमें आने का अवसर मिला। मां कामाख्या के पूजन वाली चुनरी से हम सभी का स्वागत कर हमारा सम्मान किया गया। मां गंगा का न केवल हमने दर्शन किए बल्कि उसमे स्नानकर हमने अपने जीवन को पवित्र कर लिया। जो प्रेम पुत्री को अपने मायके से मिलता है वह सम्मान हमे गहमर में आकर मिला। अखंड जी ने हमें ऋणी बनाकर कर्जदार बना दिया। गांव से विदा हो लेते वक्त हमने आपको एक पिता और भाई के रूप में देखा जो अपने बहनों को विदा करने से भाव विहवल हो, जाता है,कैसे भुलाया जा सकता है, इन अविस्मरणीय क्षणों को जो हमने गहमर में 3 दिन बिताए है। आपका हार्दिक आभार आपकी श्रद्धा एवं साहस को नमन। मैंने भी यह महसूस किया कि बेटी व बहन की विदाई के बाद भाई की निधि का, कोष का खाली होना। किसी प्रकार की कोई भी सहयोग राशि लिए बिना इस प्रकार का कार्यक्रम करना कोई आसान बात नहीं है। आदरणीय अखंड जी को सादर प्रणाम आपके जज्बे को सलाम।
डॉ शीला शर्मा
छत्तीसगढ़

ऐसा कार्यक्रम “ना भूतो ना भविष्यति-डॉ शीला शर्मा
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