काव्य संग्रह 'अनछुए स्पर्श' में दर्द, पीड़ा, संत्रास, अकेलापन और जीजिविषा

काव्य संग्रह ‘अनछुए स्पर्श’ में दर्द, पीड़ा, संत्रास, अकेलापन और जीजिविषा

डॉ. सुनीता शर्मा के ‘अनछुए स्पर्श’ में जीवन के विभिन्न पहलुओं जैसे दर्द, पीड़ा, संत्रास और अकेलेपन का यथार्थ चित्रण मिलता है। इन भावनाओं के बीच कवयित्री की जीजिविषा और जीवटता भी स्पष्ट रूप से झलकती है। संग्रह में प्रस्तुत कविताएँ न केवल मानवीय संवेदनाओं की गहराई में उतरती हैं, बल्कि संघर्ष और पुनर्निर्माण की राह भी दिखाती हैं।

दर्द और पीड़ा का चित्रण

कवयित्री ने दर्द और पीड़ा को केवल शारीरिक या भावनात्मक अनुभव के रूप में नहीं प्रस्तुत किया है, बल्कि इसे जीवन की रचनात्मक प्रक्रिया का हिस्सा माना है।
उदाहरण:
“अरे वह क्या!!!
तुम्हारे लिए भी कितना आसान है
इस दर्द को ‘आदत’ कह देना
और फिर उसे महसूसते हुए
चुपचाप जीते रहना…”

यह कविता प्रवासी जीवन के मानसिक संघर्ष और दर्द को दर्शाती है, जहाँ पीड़ा को झेलना और उसमें जीवन की राह तलाशना एक आम अनुभव बन जाता है।

संत्रास और जीवन के संघर्ष

कवयित्री के लिए संत्रास एक ऐसी स्थिति है जो आत्म-विश्लेषण और रचनात्मकता को जन्म देती है। उनके काव्य में जीवन की कठिनाइयों से लड़ने का साहस दिखाई देता है।
उदाहरण:
“मेरी कलम आजकल
सिर्फ रियालिटी ही लिखती है,
और ये रियालिटी ही
कभी-कभी कविता बन जाती है।”

यह पंक्तियाँ इस बात को उजागर करती हैं कि वास्तविक जीवन के संघर्ष ही साहित्य की प्रेरणा बनते हैं और कवयित्री उन संघर्षों को अपने लेखन के माध्यम से व्यक्त करती हैं।

अकेलेपन की अनुभूति

प्रवासी जीवन में अकेलापन एक आम अनुभूति है, जिसे कवयित्री ने अपनी कविताओं में बहुत संवेदनशीलता से प्रस्तुत किया है।
उदाहरण:
“कहाँ ढूँढूँ रूह को—सुकून?
जिंदगी ऐ किताब की..?
कलम दर्द कहीं
स्याही की तलवार…!”

यह पंक्तियाँ उस आंतरिक अकेलेपन को दर्शाती हैं, जहाँ व्यक्ति खुद से ही संवाद करता है और अपने अस्तित्व को समझने की कोशिश करता है।

जीजिविषा (जीवन के प्रति आग्रह)

कवयित्री का दृष्टिकोण नकारात्मक नहीं है; वे जीवन की चुनौतियों के बावजूद आशा और संघर्ष की भावना को प्रकट करती हैं।
उदाहरण:
“फूल समझती हुई चली मैं…
अग्नि परीक्षा के अंगारों को
शीतल जल समझती हुई जली मैं…”

यह कविता स्पष्ट रूप से जीवन के संघर्षों में भी उम्मीद और सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखने की बात करती है। कवयित्री ने यह दिखाया है कि कठिनाइयाँ हमें मजबूत बनाती हैं।

जीवटता (Resilience) और आत्म-निर्भरता

कवयित्री ने न केवल जीवन के दर्द और अकेलेपन को स्वीकार किया है, बल्कि उसमें अपनी शक्ति भी पाई है। उनकी कविताएँ दर्शाती हैं कि कैसे व्यक्ति दर्द को अपनी ताकत में बदल सकता है।
उदाहरण:
“प्रसव पीड़ा में भी
कमजोर कहाँ मैं थी..?
खुद निर्णय करके
धरणी में समा मैं गई…”

यह पंक्तियाँ दिखाती हैं कि कवयित्री ने कठिनाइयों का सामना करते हुए आत्म-निर्भरता और मजबूती का परिचय दिया है।


‘अनछुए स्पर्श’ में सार्वभौमिकता

डॉ. सुनीता शर्मा के ‘अनछुए स्पर्श’ में निहित भावनाएँ, विषय, और जीवन दृष्टिकोण न केवल व्यक्तिगत अनुभवों का प्रतिबिंब हैं, बल्कि ये मानवता के साझा अनुभवों को भी दर्शाते हैं। संग्रह में प्रेम, पीड़ा, अकेलापन, और जीजिविषा जैसे भावों की प्रस्तुति ऐसे ढंग से की गई है कि वे किसी भी भौगोलिक, सांस्कृतिक या सामाजिक सीमाओं से परे जाकर सार्वभौमिक हो जाते हैं।

प्रेम और विरह की सार्वभौमिकता

प्रेम और विरह के भाव हर संस्कृति और समाज में समान रूप से व्याप्त हैं। कवयित्री ने अपनी कविताओं में प्रेम की अनुभूति को इस प्रकार व्यक्त किया है कि कोई भी पाठक, चाहे वह दुनिया के किसी भी कोने में हो, उससे जुड़ सकता है।
“सुनीता शर्मा की अधिकाँश कविताएँ प्रेम में उतरते-डूबते मन की सहज और सुंदर अभिव्यक्ति हैं। दरअसल, स्मृतियों में उतरती इन जीवंत प्रेम कविताओं में दिल से दिल तक की यात्रा है।”

यह पंक्तियाँ दर्शाती हैं कि प्रेम एक सार्वभौमिक भावना है, जो हर व्यक्ति के अनुभव में कहीं न कहीं स्थान पाती है।

पीड़ा और संवेदना की सार्वभौमिकता

कवयित्री का मानना है कि जीवन में कला और कविता पीड़ा से ही उपजती हैं। यह विचार सार्वभौमिक है, क्योंकि दुख और संवेदनाएँ हर मनुष्य के जीवन का हिस्सा होती हैं।
“लगभग हर विद्वान का मानना रहा है कि जीवन में कला और कविता वेदना से फूटती है। क्योंकि दुःख, दर्द और वेदना ही जीवन का स्थायी भाव रहा है; सुख तो मेहमान की तरह आता-जाता रहता है।”

यह दृष्टिकोण न केवल भारतीय संदर्भ में, बल्कि विश्व साहित्य में भी स्वीकार्य है। कवयित्री की कविताओं में यह भावनात्मक गहराई हर पाठक को छूती है।

अकेलापन और आत्म-चिंतन की सार्वभौमिकता

प्रवासी जीवन में अकेलापन और आत्म-चिंतन की भावना गहराई से जुड़ी होती है, पर यह केवल प्रवासी जीवन तक सीमित नहीं है। यह अनुभव हर उस व्यक्ति का हो सकता है जो खुद से संवाद करता है या जीवन के किसी मोड़ पर खुद को अकेला महसूस करता है।
“कवयित्री की संवेदनशीलता ने ही उन्हें यह कविता का विरल हुनर सिखाया है। कविताएँ निजता से निकल कर सभी से जुड़ने की सामर्थ्य रखती हैं।”

यह पंक्तियाँ दिखाती हैं कि कवयित्री का आत्म-चिंतन और अकेलेपन का अनुभव न केवल उनका निजी है, बल्कि यह वैश्विक पाठक वर्ग के लिए भी प्रासंगिक है।

जीजिविषा और जीवटता की सार्वभौमिकता

कवयित्री ने अपने संघर्षों और जीवन के उतार-चढ़ाव के बीच भी आशा और जीजिविषा को जीवित रखा है। यह जीवटता हर समाज और संस्कृति में प्रेरणा का स्रोत बनती है।
“‘चरैवेति’ में वे जरूरतों की पगडंडी पर हसरतों के हवाले तक अदम्य साहस से आगे बढ़ते रहना चाहती हैं।”

यह पंक्तियाँ जीवन में निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं, जो हर समाज के लिए महत्वपूर्ण है।

भाषा और अभिव्यक्ति की सार्वभौमिकता

हालाँकि ‘अनछुए स्पर्श’ हिंदी में लिखा गया है, लेकिन इसकी भावनाएँ और संवेदनाएँ किसी भी भाषा के पाठक को उतनी ही गहराई से प्रभावित कर सकती हैं। कविताओं में प्रयुक्त सरल और सहज भाषा इसे हर वर्ग के पाठक के लिए सुलभ बनाती है।
“‘अनछुए स्पर्श’ की कविताएँ सरल, सहज और अनुग्राह्य मौलिक अभिव्यक्तियाँ हैं, जो दिल से दिल तक उतरती हैं।”

यह सरलता और सहजता ही कविताओं को सार्वभौमिक बनाती है, जिससे वे हर पाठक के दिल में अपनी जगह बना लेती हैं।


‘अनछुए स्पर्श’ की विशिष्टताएँ जो इसे अन्य संग्रहों से अलग बनाती हैं

डॉ. सुनीता शर्मा का ‘अनछुए स्पर्श’ एक ऐसा काव्य संग्रह है, जो न केवल अपनी विषयवस्तु के कारण अद्वितीय है, बल्कि इसमें निहित भावनाओं की प्रस्तुति, शैली, और दृष्टिकोण भी इसे अन्य काव्य संग्रहों से अलग करता है। इसमें मानवीय संवेदनाओं, प्रवासी अनुभवों और जीवन के विविध पहलुओं को अत्यंत मौलिकता के साथ प्रस्तुत किया गया है।

डॉ. देवेंद्र तोमर
अध्यक्ष: विश्व साहित्य सेवा संस्थान

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