“हाऊ आर यू वर्जिन किंग” – राजीव राठी ने पवन मिश्रा को छेड़ते हुए कहा – “यार, तूने शादी नहीं की, अभी तक कुँवारे के कुँवारे हो .. बिना पार्टनर के जिन्दगी कितनी अधूरी और रंगहीन होती है,यह अब तक तुम समझ ही गए होगे ।” “किंग विंग नहीं, छड़े कहो छड़े” – वीरेंद्र, जिसने उन दोनों की बातें सुन ली थी, ने कहकहा लगाते हुए कहा । पवन मिश्रा ने हँसते हुए बात को टालना चाहा – “यार, समझ लो मेरी किस्मत में शादी नहीं थी, तो नहीं हुई .. अपनी खुशी के लिए छड़ा ही समझ लो भई वीरेंद्र” राजीव, वीरेंद्र और पवन पच्चीस सालों बाद मिले थे, बिलकुल वैसे ही बिन्दास और बेलौस जैसे तीनों कॉलेज के दिनों में हुआ करते थे । राजीव, पवन की बात से संतुष्ट नहीं हुआ, बोला – “यार लगता है तुम प्रभजोत को भूल ही नहीं पाए .. वह तो अपना घर बसाकर पता नहीं कहाँ होगी अब, बड़े-बड़े बच्चे होंगे उसके .. एल्युमिनी मीट में उसे बुलाने के लिए भी रामेंद्र नागर ने अनेक लोगों से सम्पर्क किया था पर उसके बारे में किसी को कुछ मालूम नहीं था”।
“अरे यार उससे सबसे ज्यादा नजदीक तो अपना यह कुँवारा बादशाह ही था .. जब इसे ही नहीं पता तो किसे पता होगा” – वीरेंद्र ने कहा, फिर पवन के कंधे पर हलके से धौल जमाते हुए बोला – “और कितना इन्तजार करोगे उसका, अभी बहुत देर नहीं हुई है .. लड़की हम ढूँढ़ देंगे .. जिन्दगी में एक पार्टनर होना ही चाहिए जिससे नितान्त अकेले पलों को बाँटा जा सके ।” “अरे यार तुम भी ये क्या बात लेकर बैठ गए, हम यहाँ एल्युमिनी मीट में एन्जॉय करने आए हैं या बेकार की बातों में समय गवाँने” – पवन ने एक बार पुन: बातों का रुख मोड़ने की कोशिश की – “भाभी भी आईं हैं साथ में या अकेले ही आए हो” । “भाई .. मैं उनके बिना कहीं आता जाता नहीं .. दोपहर में मिलवाता हूँ तुम्हें अपनी ड्रीम गर्ल से, अभी वह आराम फरमा रहीं हैं .. मेरा छोटा बेटा भी साथ आया है” – राजीव ने दाहिनी आँख दबाते हुए शब्दों को नाटकीय अन्दाज में चबाते हुए कहा। पवन चलने को हुआ ही था कि रत्नेश सारस्वत की आवाज सुनाई दी – “ओए पवन .. तुम तो हमसे भी पहले आ गए” – कहते हुए रत्नेश ने पवन को बाहों में भर लिया – “बहुत मुटा गए हो यार”।

“अच्छा .. तुम तो जैसे अभी भी सिंगल पसली वाले हो, कबसे आइना नहीं देखा तुमने .. पेट मटका
हो रहा है” – पवन ने ठहाका लगाते हुए कहा | इस ठहाके के मार्फत वह दोस्तों को यह भी जताना
चाहता था कि शादी न करके भी वह कितना खुश है |
“भाई ये सुखी लोगों की निशानी है” – रत्नेश ने भी हँसते हुए कहा – “रत्ना, इनसे मिलो .. हमारे बैच
के एकमात्र लकी फेलो, जिन पर कॉलेज की एकमात्र लड़की फिदा थी”
“अच्छा, तो ये पवन भाई हैं .. नमस्ते भाई साब .. इनके मुँह से अनेक बार आपका नाम सुना है” –
रत्ना ने हाथ जोड़ते हुए कहा |
“अच्छा तो इसकी जलन अभी तक बरकरार है .. भाभी, आपने ठीक से खबर नहीं ली इसकी, अब
ध्यान रखिए” – पवन ने भी मजाकिया लहजे में कहा |
“आप अकेले ही आए हैं भाई साब, भाभी जी को नहीं लाए” – रत्ना ने पूछा |
“मेरी किस्मत रत्नेश जैसी कहाँ .. अकेला हूँ तो अकेला ही आऊँगा” – कहते हुए पवन रवि की ओर बढ़ गया जिसकी कार उसी समय गेस्ट हाउस के सामने रुकी थी । दोनों गले मिले .. कुछ औपचारिक बातें हुई – “तू कुछ तैयारी करके आया है कि नहीं .. तुझे स्टेज पर परफॉर्म करना पड़ेगा”। “कहाँ यार .. अब सब छूट गया, और फिर पुराने एक्टर्स की मिमिक्री कौन पसंद करता है आजकल ..। कन्हैयालाल और ओमप्रकाश के तो नाम भी नहीं सुने होंगे इन बच्चों ने, नए एक्टर्स की मिमिक्री अपने से होती नहीं”। “भई सब पुराने लोग ही इकट्ठे हो रहे हैं .. शाम को धमाल मचने वाला है और तू छूट नहीं सकेगा”। पवन कुछ और दोस्तों से मिलकर अपने कमरे में आ गया | हरेक की नजरों में उसे एक ही प्रश्न तैरता दिखाई दिया, ‘कि उसने शादी क्यूँ नहीं की ‘| जो दोस्त उसके और प्रभजोत के बारे में जानते। थे उनकी आँखों में तो उसने संशय के साथ ही उपहास का भाव भी देखा था | उनकी भेदती आँखों का उसने फिलहाल सामना तो कर लिया था लेकिन लंच और फिर उसके बाद शाम को होने वाले मिलन कार्यक्रम में वह किस-किसको जवाब देगा | अधिकतर लोग अपनी पत्नियों के साथ आए थे, कुछ के साथ बच्चे भी थे | जिनकी पत्नियाँ नहीं आईं थी उनके पास कोई न कोई वाजिब कारण था। | उसके पास भी वाजिब कारण था लेकिन उसी कारण ही तो वह प्रश्नों के चक्रव्यूह में घिर गया था। मन खिन्न हो गया था – “कैसे दोस्त हैं उसके .. यहाँ जिन्दगी की भागमभाग से दूर अपने पुराने साथियों के साथ एन्जॉय करने एकत्र हुए हैं या उसकी शादी को डिस्कस करने, उसके जीवन की पर्तें उधेड़ने । नहीं की उसने शादी, नहीं करनी थी उसे .. यह उसका व्यक्तिगत मामला है, फिर इनका इतना इंटरेस्ट क्यूँ है इस बात में |” उसके मन का उत्साह फीका पड़ गया था, मन में अजीब सी बेचैनी अनुभव होने लगी थी।
पवन और प्रभजोत बैचमेट थे | दोनों की पहली मुलाकात इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमीशन के लिए डॉक्युमेंट सब्मिट करने के दौरान हुई थी | पवन के बाद प्रभजोत का नम्बर था । पवन डॉक्युमेंट जमा करने के बाद जैसे ही मुड़ा था उसकी नजरें प्रभजोत से मिलीं और उसने हैलो कहा । प्रत्युत्तर में प्रभजोत मुस्करा दी थी | इसके बाद दोनों ने ही अपने भीतर कुछ-कुछ होता महसूस किया था । ये कुछ-कुछ क्या है, किशोरावस्था के उत्तरार्द्ध की देहलीज पर खड़े उन दोनों में से किसी को समझ में नहीं आया था | कॉलेज खुलने पर जब दोनों दुबारा मिले और पवन ने अपने दिल में तुलिप के सैकड़ों फूल महमहाते मससूस किए तो उसे लगा कि यह कुछ विशेष अनुभूति है जो प्रभजोत के सामने आते ही उसका दिल अनुभव करने लगता है | प्रभजोत के मन की स्थिति भी कुछ-कुछ ऐसी ही थी | उसे भी पवन से मिलकर अपनी साँसों में जास्मिन की खुशबू महसूस हुई थी और फिर लज्जा वश वह नजरें उठाकर पवन को देखने की हिम्मत नहीं जुटा पाई थी । प्रभजोत ने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग को पहली पसंद के रूप में चुना था जबकि पवन की प्रथम चॉइस सिविल इंजीनियरिंग थी । एक साल हो गया था दोनों को साथ पढ़ते हुए पर दोनों अपने ही दायरे में सिमटे रहे | दोनों के बीच कभी ज्यादा बात नहीं हुई । जब कभी बात हुई भी तो सेसनल, ड्राइंग और
प्रैक्टिकल को लेकर । दोनों के बीच दिल का अजीब रिश्ता था, आँखों में प्रेम झिलमिलाता था लेकिन संकोच, दुविधा और अनजाने डर ने जुबान को बाँध रखा था ।
आँखें मिलती भी तो दोनों तुरंत नजरें फेर लेते, जैसे कोई अपराध करते रंगेहाथ पकड़े गए हों । दूसरा साल भी ऐसे ही गुजर गया, कहानी में कोई रोमांचक ट्विस्ट नहीं आया | पर इतना जरूर हुआ कि दोनों अपने नोट्स एक्सचैंज करने लगे । एक बात और हुई । नाम की शुरुआत समान अक्षर से होने के कारण वर्कशाप और डम्पीलेवल सर्वे प्रैक्टिकल में दोनों ही पार्टनर बना दिए गए | फॉउन्ड्री शॉप में मोल्डिंग के लिए पैटर्न बनाना और वेल्डिंग करना प्रभजोत को सबसे कठिन काम लगता । पवन कोशिश करता कि वह प्रभजोत के हिस्से का भी काम कर दे | लकड़ी के पैटर्न बनाने का काम वह करता और प्रभजोत उनपर कट लगाने और कोर्स फाइलिंग का काम करती | उस दिन प्रभजोत और पवन, दोनों ने ही खुद को अजीब स्थिति में घिरा पाया । दोनों ही एक दूसरे से नजरें चुरा रहे थे | एक डरावनी चुप्पी दोनों के बीच पालथी मारकर बैठ गई थी । कैसे हैं सर भी, बोलते हुए जरा सा भी संकोच नहीं किया और न ही नैतिकता का ख्याल किया | हाथ में एक टू पीस पैटर्न लेकर आए और दोनों को दिखाते हुए बोले – “प्रभजोत आज तुम इस तरह का मेल ज्वाइंट और पवन तुम इस तरह का फीमेल ज्वाइंट पैटर्न बनाओगे, साइज में आधे सूत का भी अंतर नहीं होना चाहिए .. ज्वाइंट करने पर दोनों परफेक्टली फिट होना चाहिए ।” सर काम सौंप कर मोल्डिंग शॉप में चले गए, पर दोनों को अजीब दुविधापूर्ण स्थिति में डाल गए । मेल ज्वाइंट पैटर्न हाथ में पकड़े प्रभजोत नजरें जमीन में गड़ाए पता नहीं किस सोच में डूब गई थी ।
पवन को भी कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या बोले ? उसके मन में पैटर्न को मेल और फीमेल ज्वाइंट नाम देने वाले के प्रति गुस्सा
उमड़ रहा था .. निश्चित ही बड़ा ही घटिया आदमी होगा वह, जिसने ऐसे नाम रखे। पवन उस दिन अचानक पेट में दर्द उठने का बहाना बनाकर वर्कशाप से चला आया ताकि प्रभजोत अपना जॉब पूरा कर ले। तीसरे साल से दोनों की कक्षाएँ अलग होने वाली थीं | पवन सोच कर परेशान था फिर सहसा उसने एक ऐसा निर्णय ले लिया कि सारे हैरान रह गए | प्रिंसिपल से अनुरोध कर उसने अपनी ब्राँच सिविल से इलेक्ट्रिकल करवा ली | उसके इस निर्णय से कुछ साथियों ने पहली बार प्रभजोत के प्रति उसके
लगाव की गर्माहट को महसूस किया | उसके रूममेट नें तो नाराजगी जाहिर करते हुए कहा भी था -“तुम दीवाने हो गए हो .. इस दीवानगी में तुम अपना कैरियर दाँव पर लगा रहे हो |” इसके बाद रत्नेश ने भी उसे बहुत समझाया था – “सिविल ब्रांच छोड़कर तुम बहुत बड़ी गलती कर रहे हो .. बाद में बहुत पछताओगे” |
साथ पढ़ते हुए दो साल और बीत गए | दोनों के बीच नजदीकियाँ बढ़ी भी और नहीं भी | दोनों कैम्पस में अक्सर साथ दिखते और खूब बतियाते भी लेकिन जब दिल की बात कहने का अवसर आता तो अधर मौन हो जाते | आँखों में स्पष्ट पढ़ी जाने वाली भाषा को दोनों ही शब्द देने में कृपण हो जाते | जुबान मौन रहे तो मन के कोमल भाव भी अन्दर ही अन्दर सिसकते रह जाते हैं | बीज को भी अंकुरित होने के लिए हवा, पानी और रोशनी चाहिए होती है फिर ये तो प्रेम का बीज था जो चार सालों से रोशनी की आस में लहलहाने की राह देख रहा था ।इन चार सालों में अनेक अवसर ऐसे आए थे जब दोनों का एक-दूसरे के प्रति अनन्य लगाव सामने आया था | पहले ही साल पवन एक सीनियर से केवल इस बात पर भिड़ गया था कि उसने प्रभजोत के हेयर क्लिप को लेकर कमेंट कर दिया था | बहुत सामान्य सी बात थी लेकिन पवन को नागवार गुजरी थी | बदले में सीनियर्स ने उसे कमरे पर बुलाकर रात भर उसकी रैगिंग ली थी । थर्ड ईयर की बात है, इलेक्ट्रिकल ड्राइव्स और ट्रैक्शन सिस्टम के प्रैक्टिकल के दौरान मैग्नेटिक फील्ड में हाथ आ जाने के कारण प्रभजोत झटके से गिर कर बेहोश हो गई थी । उसे इस स्थिति में देखकर पवन सुध-बुध खो बैठा था । वह प्रभजोत का सिर गोदी में रखकर देर तक किंकर्तव्यविमूढ़ सा शून्य में निहारता रहा था | दूसरे लड़के प्रभजोत को होश में लाने का प्रयत्न करते रहे |
उसी दिन शाम को वह प्रभजोत को लेकर डॉक्टर को दिखाने भी गया था ।दोनों के मन में डर था, एक-दूसरे से प्रेम का इजहार करने के बाद कहीं उनका रिश्ता उड़ान भरने के पूर्व ही जमीन पर औंधे मुँह न आ गिरे। पवन को शंका थी कि उसके घर वाले कभी भी प्रभजोत को स्वीकार नहीं करेंगे । लहसुन-प्याज तक से परहेज करने वाला उसका सनातनी परिवार कैसे अण्डे-माँस
खाने वाले परिवार की लड़की को बहू बना कर लाने के लिए तैयार होगा । दोनों परिवारों की आर्थिक असमानता भी उसे अपनी भावनाएँ व्यक्त करने से रोक देती थी । जहाँ उसके पिताजी पण्डिताई के खानदानी पेशे से अपना पेट काटकर उसे इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ा रहे थे वहीं प्रभजोत का परिवार शहर के सम्पन्न परिवारों में गिना जाता था जिनके पास फिएट कार और बजाज स्कूटर की एजेंसियाँ थी | प्रभजोत को भी आशंका थी कि उसका परिवार भी सिख बिरादरी के बाहर कभी उसका रिश्ता कबूल नहीं करेगा । दोनों इसी ऊहापोह से लड़ते हुए अपने मन को खोल कर एक दूसरे के सामने नहीं रख पा रहे थे | अजीब कशमकश थी । दोनों को लगता कि वे एक दूसरे के लिए ही बने हैं। दोनों का जीवन एक दूसरे के बिना अधूरा है पर कैसे ये रिश्ता एक मुकम्मल मुकाम तक पहुँचे, दोनों ही नहीं समझ पा रहे थे | दोनों ने ही मन के इर्द-गिर्द मकड़जाल बुन रखे थे जिसमें उनके अंदर की भावनाएँ उलझ कर रह गईं थी ।
फायनल की परीक्षाएँ चल रहीं थी कि खबर मिली प्रभजोत की सगाई बटाला के सतविंदर से होने वाली है जिनकी वहाँ पर साइकिल बनाने की फैक्टरी है। सुनकर पवन को आघात लगा लेकिन उसने परिस्थिति को स्वीकारने में देर नहीं लगाई । प्रेम को लेकर वह फिलॉस्फर हो गया – “प्रेम क्या केवल पाने का नाम है ? प्रेम तो त्याग का दूसरा स्वरूप है । प्रेम एक ऐसा वरदान है जो ऊपरवाला केवल निश्छल और निर्मल दिल वालों को देता है | प्रभजोत को उसने निर्मल मन से प्यार किया है, दिल की गहराईयों से चाहा है, अब उसी गहराई से उसके भावी जीवन के लिए मंगलकामनाएँ देने का समय आया है तो वह पीछे कैसे हट सकता है ? उसका प्रेम कमजोर नहीं है जो उसके लिए बेड़ियाँ लिए खड़ा हो | प्रभजोत के लिए वह अपनी सारी खुशियाँ समर्पित कर सकता है .. सब कुछ त्याग सकता है | वह ताउम्र इस प्रेम को दिल में सहेज कर रखेगा | प्रेम उसकी ताकत है कमजोरी नहीं ।” कई दिनों तक लगातार ऐसे ही भाव उसके मन में आते रहे |
अन्तिम पेपर के बाद जब दोनों मिले तो पवन ने उसे भावी जीवन की मंगल कामनाएँ देते हुए कहा “तुमको बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ प्रभजोत .. “। पवन ने दो-तीन दिनों तक यह कहने के लिए स्वयं को मानसिक रूप से तैयार किया था लेकिन
हिम्मत इस मुहाने पर आकर जवाब दे गई | उसने तुरन्त मुँह फेर लिया और भीगी आँखों को पोंछने लगा |
“और कुछ नहीं कहना तुम्हें” – प्रभजोत की आवाज भी भीगी हुई थी |
“कहना है .. बहुत कुछ कहना है प्रभजोत” – पवन ने अपने मन को काबू में करते हुए प्रभजोत की ओर देखा – “तुम कॉलेज से निकलते ही नए जीवन में प्रवेश करने जा रही हो .. मैं ईश्वर से तुम्हारे सुखद और इन्द्रधनुषी जीवन के लिए सदा प्रार्थना करूँगा”
“बस यही कहना है, और कुछ नहीं ..” -कहते हुए प्रभजोत का गला भर आया था । “अपने जीवनसाथी के साथ सपनों में रंग भरते-भरते पुराने साथियों को भूल मत जाना, कभी-कभी याद करती रहना” – कहते हुए पवन का गला रुँधने लगा | अब उसे वहाँ रुकने में परेशानी अनुभव होने लगी थी, बड़ी मुश्किल से खुद को सँभालते हुए आगे कह सका – “मुझे आज ही गाँव के लिए निकलना है .. कुछ दिन अपने माँ बापू के साथ रहना चाहता हूँ .. रिजल्ट आते ही मुझे ज्वाइन करने भी तो जाना है फिर पता नहीं कब उनके साथ रहने को मिले”। पच्चीस साल पुरानी कितनी ही घटनाएँ पवन की स्मृति में साकार हो गईं थी | कितना अर्सा बीत गया लेकिन वह कभी प्रभजोत को भूल नहीं पाया, हर समय उसके प्रेम की जोत उसके भीतर जलती रही, हर समय उसकी प्रभा से उसका दिल आलोकित रहा आया | प्रभजोत हमेशा खुश रहे वह यही चाहता रहा । उसके बारे में जानने की कोशिश भी इसलिए नहीं की कि उसके वैवाहिक जीवन में उसके कारण कोई समस्या न खड़ी हो जाए | पवन ने बिस्तर पर लेटे-लेटे ही घड़ी की ओर देखा।
शाम के पाँच बज रहे थे | दोस्तों की बातें याद कर उसका सिर भारी हो गया था | दोपहर का खाना भी मिस हो गया था | कोई भी दोस्त उसे खाने के लिए बुलाने नहीं आया था । सब व्यस्त थे, किसी के पास उसके लिए टाइम नहीं था । उसे लगने लगा कि यहाँ आकर गलती की है उसने । लोगों के प्रश्नों ने उसे फिर अतीत की खाइयों में नीचे उतार दिया था । लोग नहीं समझ सकते उसके दिल को। इस भौतिकवादी समय में प्रेम की निर्मलता बची ही कहाँ है | प्रेम को वस्तु समझने वालों की दुनिया में प्रेम की परालौकिक परिभाषा को कौन समझना चाहेगा | अब उसकी इच्छा नहीं थी शाम के कार्यक्रम में जाने की, उसे सामने देखेंगे तो यार लोग फिर सुबह वाली बातें छेड़ देंगे । उसे अब चाय की तलब के साथ ही कुछ खाने की इच्छा हो रही थी । सब दोस्त कार्यक्रम स्थल की ओर जा चुके थे | वह चुपचाप कमरे से निकला | उसे याद आया कि कॉलेज के पिछले गेट के पास एक चाय का टपरा हुआ करता था । हो सकता है अब भी हो | वह पैदल चलते हुए पिछ्ले गेट तक पहुँच गया । अब पहले जैसा टपरा तो नहीं था अपितु उसी जगह पर एक छोटा सा रेस्टॉरेंट जरूर बन गया था । वह जाकर बैठ गया और एक प्लेट गरम-गरम मंगौड़े के साथ ही चाय का ऑर्डर दे दिया ।
“सर, आप नए लगते हैं | क्या आप भी कॉलेज के प्रोग्राम के लिए आए हैं” – मंगौड़े की प्लेट रखते हुए रेस्टॉरेंट के मालिक ने पूछा |
“हाँ .. पहले यहाँ मानिक लाल का चाय का टपरा हुआ करता था .. जब हम पढ़ते थे तब अक्सर यहाँ घण्टों बैठते थे”
“जी, मानिक लाल मेरे पिताजी थे उन्हें गुजरे छ: वर्ष हो गए हैं, तबसे मैं ही यह रेस्टॉरेंट चलाता हूँ”
“ओह .. तब तो तुम नीलेश या परेश में से कोई होगे” – उसने सोचते हुए कहा – “बहुत छोटे-छोटे थे
उस समय दोनों .. पाँच या छ साल के”
“यूँ समझो अभी-अभी .. रामागुण्डम थर्मल पॉवर प्लांट में पोस्टिंग है आजकल .. ” पवन प्रभजोत को देखे जा रहा था और प्रभजोत उसे | हृदय इतना व्यथित तो उस समय भी नहीं हुआ था जब दोनों ने अपने रास्ते जुदा कर लिए थे। “अकेले आए हो ..”
“ये प्रश्न तो मुझे तुमसे करना चाहिए ..”।
“क्या तुमने शादी नहीं की” – पवन की बात का उसने कोई उत्तर न देते हुए प्रतिप्रश्न किया |
“इच्छा ही नहीं हुई शादी की .. लेकिन तुम यहाँ कैसे .. तुम्हारे पति कहाँ हैं”
“मैंने भी शादी नहीं की” – प्रभजोत निर्विकार भाव से बोली |
“क्या ? तुम्हारी वो सगाई .. सतविंदर” – पवन ने हकलाते हुए कहा |
“मैंने घर वालों को सब बता दिया था कि मैं सतविंदर को खुशियाँ नहीं दे पाऊँगी .. अपने हिस्से का प्रेम मैं किसी को दे चुकी हूँ | सतविंदर समझदार निकले लेकिन मेरे घर वालों ने मुझसे सारे रिश्ते तोड़ लिए। मैं किस्मत वाली थी कि मुझे उसी समय एमपीईबी में जॉब मिल गया । दो महीने वहाँ नौकरी की पर मन नहीं लगा | तभी टीचर की पोस्ट निकली और मैंने इंजीनियर की नौकरी छोड़ दी तथा टीचर बनकर बच्चों के बीच अपनी खुशियाँ तलाश लीं .. “
“तुम अंदर से इतनी बहादुर हो कभी पता ही नहीं लगा .. इतनी आसानी से तुमने घरवालों को कह दिया लेकिन मुझसे ..” “कैसे मर्द हो तुम ?” – प्रभकोत पवन की बात को बीच में ही काटते हुए बोली – “तुम्हारे हिस्से का काम भी क्या मैं करती | मैंने तो उस दिन कितनी बार तुमसे पूछा था पर तुम कुछ बोले ही नहीं । कैसे समझती मैं ..” – प्रभजोत का गला भर आया | आँसू ढुलक कर गालों पर झिलमिलाने लगे । “मुझे माफ कर दो प्रभजोत, मुझमें उत्तर देने की हिम्मत ही नहीं थी लेकिन उसके बाद मैं भी किसी
और के बारे में कभी सोच नहीं पाया | बहुत कमजोर था मैं, वास्तविकता से दूर भागता रहा .।” “मैं भी दोषी हूँ .. यही चाहती रही कि पहल तुम करो फिर मैं पीछे-पीछे चल दूँगी .. सामाजिक मर्यादाएँ मन पर इतनी हावी थीं कि अपनी-तुम्हारी खुशी ही भूल गई”। “सच कहूँ प्रभो, मुझे डर था कि मेरे माँ बाबू जी तुम्हें स्वीकार नहीं करेंगे | उन्होंने जीवन में कभी प्याज भी नहीं खाई थी और न ही कोई सुख देखा था, सदा अभाव की जिन्दगी जीते रहे .. मैं उन्हें नहीं छोड़ सकता था” “कितने गलत थे हम दोनों .. अपने ही बुने मकड़जाल में उलझे रहे, अपनी भ्रांतियों में जीते हुए दिल की पुकार भी सुन नहीं सके”। “तुम अम्मा बाबूजी से कब मिली, उनने कभी तुम्हारे बारे में चिट्ठी में लिखा ही नहीं” “किस्मत ने मिला दिया था उनसे .. नौकरी करते तीन वर्ष हो गए थे कि मुझे एन०एस०एस० का कैम्प लगाने इस गाँव में आना पड़ा | हमारा कैम्प मंदिर के पास ही लगा था ।
उस समय तक मुझे नहीं मालूम था कि ये तुम्हारा गाँव है | बाबू जी से मैं संध्या आरती के बाद मिली थी । बाद में अम्मा जी से भी मिली | दोनों के व्यक्तित्व में चुम्बकीय आकर्षण था, जो एक बार उनके निकट आई तो दूर नहीं जा सकी | तुम्हारी माँ तो प्रेम और त्याग की साक्षात देवीं थी पवन। त्याग का गुण भी तुम्हें उन्हीं से मिला है | मैं उसके बाद दो साल में कम से कम छ: बार तुम्हारे गाँव आकर माँ-बाबू जी से मिली | हर बार एन०एस०एस० शिविर के लिए बच्चों को इसी गाँव में लेकर आती थी। सोचती थी इसी बहाने माँ-बाबू जी की थोड़ी सेवा कर लूँगी । पर मैंने कभी उनसे हमारा-तुम्हारा जिक्र नहीं किया .. मैं कभी कमजोर नहीं पड़ी, उनसे भी कभी तुम्हारे बारे में नहीं पूछा । उन्होंने ही एक बार बताया था कि तुम किसी प्रोजेक्ट ट्रेनिंग के सिलसिले में एक साल के लिए जापान गए हो। वहाँ से लौटते ही वह तुम्हारी शादी करना चाहते थे .. किन्हीं शुक्ला जी की लड़की भी उनने पसंद कर रखी थी |
“तुम्हें इतना सब पता है .. मुझे तो इस बारे में जानकारी ही नहीं है .. जापान से लौटने के तुरंत बाद मेरी पोस्टिंग ऊँचाहार में दूसरी यूनिट की स्थापना हेतु कर दी गई | जिस दिन मुझे वहाँ जाना था उसी दिन दोपहर में बस-दुर्घटना में अम्मा-बाबू जी के निधन का टेलीग्राम मिला .. मैं सीधा गाँव आ गया, अम्मा बाबू जी के अंतिम दर्शन भी न कर सका ।” “किस्मत हमारे साथ हमेशा से खेल खेलती आ रही है .. किस्मत ने यहाँ भी मुझसे छल किया .. मैं दो वर्ष की एडवांस ट्रेनिंग के लिए कलकत्ता क्या गई, वाहे गुरु ने उसी समय माँ-बाबू जी को छीन लिया | मुझे तो उनकी मृत्यु की खबर भी दो साल बाद ही मिली | बहुत रोई, टूट गई थी मैं ..दोबारा मैंने अपने माँ-बाबू को खोया था .. तबसे उनकी पुण्यतिथि पर मैं हर साल यहाँ आती हूँ और उनकी याद में लगाए गए पोधों की छाँव में असीम आनन्द पाती हूँ”। “तुम इतना सब अकेले करतीं रहीं और एक मैं हूँ कि उनकी पुण्यतिथि की तारीख तक भूल जाता हूँ। मैं जीते जी कोई सुख उनको नहीं दे सका .. और प्रभजोत तुम .. ।” कुछ देर चुप्पी रही | पवन ने प्रभजोत का हाथ अपने हाथ में ले लिया – “तुमसे कुछ कह सकता हूँ”। “क्या” “जो उस दिन नहीं कह सका था”। “मैं तो उसी दिन से तुम्हारे उत्तर की प्रतीक्षा में हूँ | मैं अब भी पुराने विचारों की हूँ .. चाहकर भी मॉडर्न नहीं हो पाऊँगी, पहल तो अब भी तुम्हें ही करनी होगी “। पवन ने उसके मुँह पर ऊँगली रख दी । कुछ देर तक कोई कुछ नहीं बोला, बस एक दूसरे को
निहारते रहे | दोनों के आलिंगन में बँधते ही सुदूर आसमान में मुस्करा रहा चौदस का चाँद भी अधिक देर तक वहाँ ठहर न सका और प्रभजोत द्वारा लगाए गए वृक्षों की ओट में चला गया । मौन अधरों का संगीत बजते ही मन्दिर में जल रहा आरती का दिया जो टिमटिमाने लगा था अपनी पूरी दीप्ति से रोशन हो उठा |
अरुण अर्णव खरे
डी-1/35 दानिश नगर
होशंगाबाद रोड, भोपाल (म०प्र०),
पिन: 462026
मोबा०: 9893007744 ई मेल: arunarnaw@gmail.com
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