अपनी अपनी पूजा - अपूर्वा अवस्‍थी

अपनी अपनी पूजा-अपूर्वा अवस्‍थी

पति पत्नी दोनों भगवान के भक्त थे। हर पूर्णिमा को सत्यनारायण स्वामी की कथा सुनते।भोग लगाते पंडित जी को भोजन करवाते। और यथाशक्ति दक्षिणा देते।पति सुबह नहा धोकर आफिस जाने से पहले पूजा करता ठाकुर जी को नहलाता चंदन का टीका लगाता फूल चढ़ाता और भोग लगाकर ही भोजन ग्रहण करता।पत्नी भी आफिस जाती थी वह नहा धोकर पति के लिए भोजन बनाती उसके कपड़े प्रेस करती बच्चों को स्कूल भेजती इस सब में वह मंदिर में बैठकर पूजा नहीं कर पाती बस भगवान के हाथ जोड़ लेती।पति पत्नी की कभी कभी तकरार होती तो पत्नी कहती आप सफाई नहीं करते सूखे फूलों को क्यारी में नहीं डालते मंदिर की धूल साफ नहीं करते आदि आदि।
पति कुछ नहीं बोलता लेकिन वह जानता था कि उसकी पत्नी छुट्टी वाले दिन मंदिर साफ करती है।एक दिन पति मथुरा चला गया ठाकुर जी के दर्शन करने पत्नी की रविवार की छुट्टी थी। पत्नी ने पूरे मंदिर की सफाई की और ठाकुर जी को नहला कर उनके वस्त्र उतार दिए।उनके माथे पर लगा चंदन साफ कर दिया।उनको नहलाकर वैजन्ती माला पहनाकर बैठा दिया।
असाढ़ का महीना था उमस और गर्मी भरा मौसम था पत्नी ने सोचा जब हम सबको इतनी गर्मी लग रही है तो ठाकुर जी को भी तो गर्मी लगती होगी । पत्नी ने ठाकुर जी को वस्त्र नहीं पहनाए ।दो दिन बाद पति आ गया नहा धोकर जब मंदिर में पूजा करने बैठा तो ठाकुर जी को वस्त्र धारण नहीं करने पर पत्नी पर क्रोध करने लगा । पत्नी ने अपनी बात बताई लेकिन पति नहीं माना दूसरे दिन बाजार जाकर हल्के वस्त्र लाया और ठाकुर जी को पहना दिए।ठाकुर जी ने पति पत्नी दोनों को स्वप्न दिया और पत्नी से बोले तुम ने मुझे।जो दो दिन वस्त्र ना पहना कर आनंद दिया वह अदृभुत रहा।और पति से बोले इस बार जो तुम हल्के वस्त्र लाए उसमें मुझे बहुत आराम मिल रहा।सुबह पति पत्नी दोनों आनंदित थे दोनों ने जाकर ठाकुर जी को प्रणाम किया।
जय वृंदावन बिहारी लाल की
डा अपूर्वा अवस्थी
लखनऊ

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