अपूर्ण प्रेम-दीपमाला

जनवरी का ठंड संक्रांति का समय सुबह सुबह ठंडी ठंडी सी हवा में स्वर्णिम धूप का आनंद l अपने आप में रोमांचित करने वाली l आज बच्चों को बाहर स्कूल प्रांगण में ही विद्या अध्ययन करवा रहे थे l सहसा टेबल पर रखी अखबार पर नजर पड़ी l बटालियन के छह जवान शहीद, मुख्य समाचार को देखते ही मैंने आगे पढा l सभी जवानों का नाम दिया था l एक जवान का नाम पढ़ते ही जैसे हृदय की धड़कन थोड़े देर के लिए रुक गया हो l सांसे जैसे थम सी गई हो l न नयन से आंसू बह पा रहे न संवेदनाये बाहर आ पाई l क्योंकि बाँकी साथी भी बैठे हुए थे l बिल्कुल पुतले के जैसे मैं बैठी रही अपनी भावनाओं को समेटते, जैसे शरीर संवेदना शून्य हो गया हो l
अभी अभी तो मिला था वो चार महीने पहले l मैं बस में चढ़ी तो वो पहले से बैठे थे, उसके बगल वाली सीट में मैं बैठ गई l थोड़ी देर सफर के बाद वो मेरे से बात करने लगे l वो सिक्किम के थे तो उनकी हिंदी मैं अच्छे से समझ नहीं पा रही थी l तो बस सिर हिला कर हाँ या ना ही कर रही थी l वो उत्सुक हो रहे थे बात करने के लिए पर मैं शांत रहना चाहती थी तो आंख बंद करके सीट में टिक गई l उन्होंने तुरंत वैसे ही मोबाइल से मेरा फ़ोटो ले लिया मैंने फिर आँचल से चेहरा ढंक लिया ये उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं आ रहा था l
एक स्टॉप पर बस चाय नास्ता के लिए रुकी l लगभग सभी सवारी उतर चुकी थी चाय नास्ता के लिए l मेरा उपवास था मैं नहीं उतरी l फिर उन्होंने मुझसे बात करने की कोशिश की l उनकी भाषा अच्छे से समझ नहीं पा रही थी परंतु जहां तक समझ पा रही थी वो कह रहे थे मुझे आपसे बात करना है, आप बात करिये l मैंने कहा मैं क्यों बात करूं आपसे l उन्होंने कहा आपको देखते ही प्यार हो गया आपसे, मुझे शादी करना है आपसे l मैं अपनी हंसी नहीं रोक पाई l हंसते हुए मैंने कहा पागल हो क्या ऐसे कैसे प्यार हो जाता है चलते-चलते l मजाक है क्या l उन्होंने कहा पता नहीं, पर मुझे ऐसे लग रहा कि आप हमेशा मेरे पास रहो, मुझसे दूर न हो l
मुझे ये सब सामान्य लगा l थोड़े देर बाद मेरा मंजिल आ गया और मैं उतरने लगी l पर वो बहुत बेचैन लग रहे थे l वो बाहर सीट में थे तो जब मैं उतरने लगी तो पैर से रोक लिया और कहा मत उतरो l मैंने चिल्लाने की बात कही तो भी नहीं माने, बहुत बोलने पर पैर हटाये फिर मैं उतर गई l
थोड़े दिन बाद एक नया नंबर से फोन आया मैंने उठाया और बहुत हैरान रह गई l वो उन्हीं का फोन था l मैंने कहा मैंने तो नंबर दिया नहीं था फिर कैसे l तब उन्होंने बताया बस में मेरे ऑफिस से फोन आया था तब मैंने अपना व्हाट्सएप नंबर बताया था तब उन्होंने भी ले लिया था l पता नहीं क्यों मुझे भी उनसे बात करना अच्छा लगा l कुछ समझ में आता था कुछ नहीं फिर भी l बस दो या तीन बार ही बात हुआ था l मुझे जंगल की बाते जो वो जंगल में बिताते थे, उनके संस्कृति की बातें, कभी उनके बटालियन की बातें, मैं पूरे उत्साह से सुनती थी l पर काफी दिनों से बाहर ड्यूटी के कारण बात नहीं हो पाया था l अंतिम बार बात हुआ था तो शादी के लिए बहुत जिद कर रहे थे, l पर मैंने समझाया था उन्हें क्योंकि मैं विवाहित थी, एक प्यारे से बेटे की मां l और मुझे अपनी मर्यादा और कर्तव्य का बोध था l मैं अपने परिवार में खुश थी l
आज अचानक इस खबर ने स्तब्ध कर दिया l मैं क्यों बेचैन हो गई ऐसा लगा मानो मेरा भी कुछ चला गया l भोजन अवकाश में मैं जब ऑफिस में अकेले थी बहुत रोई, जी भरकर l अंतिम सांस लेते समय उन्होंने मुझे याद किया या नहीं, मुझे नहीं पता l पर अगर उनका प्रेम सच्चा रहा होगा और पुनर्जन्म होता होगा तो उनकी मनोकामना जरूर पूर्ण हो ताकि एक मर्यादित प्रेम पूर्णता को प्राप्त कर सके l
दीपमाला वैष्णव
कोंडागांव, छत्तीसगढ़
9753024524

 

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