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ऑनलाइन हैं बच्चे-डॉ राकेश चक्र

यंत्र – तंत्र – सर्वत्र बच्चों को ऑनलाइन देखा जा सकता है। बच्चों का जीवन और उनकी दिनचर्या पूरी तरह बदली – बदली नजर आ रही है । पहले माता – पिता ने बच्चों को खेल – खेल में मोबाइल पकड़ाया और कंप्यूटर पर बैठाया तथा अब बिना मोबाइल बच्चों का जीवन उसी प्रकार हो गया है , जैसे पानी …

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वर्तमान समय में शिक्षकों के समक्ष चुनौतियाँ

शिक्षक दिवस पर विशेष लेख परिचय-शिक्षण को अक्सर एक उत्तम कार्य माना जाता है, और शिक्षकों को समाज में ज्ञान और प्रगति का पथप्रदर्शक माना जाता है। भारत में, जहां शिक्षा को अत्यधिक महत्व दिया जाता है, शिक्षक देश के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालाँकि, अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद, भारतीय विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों में …

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हम भी ज़िंदा हैं-डॉ प्रिया सूफ़ी

भारत चांद पर पहुंच गया। पर क्या हमारा समाज भी इतना ही उन्नत हो पाया है? चलिए आज इसी पर विचार किया जाए। भारतीय समाज में आज भी भूत प्रेत की नौटंकी चली आ रही है। न जाने कितनी औरतें चुड़ैल घोषित कर मार दी जाती हैं और कितनी भूत द्वारा ग्रसित बोल कर ओझाओं से पिटवाई जाती हैं।नहीं मैं …

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बनारसी साड़ी-डॉ निशा

कमलेश द्विवेदी लेखन प्रतियोगिता -02 कहानी शीर्षक – बनारसी साड़ी। शब्द सीमा – 500 शब्‍द एक बार की बात है, बनारस की गलियों एक छोटे से दुकान में  अनुपमा  काम करती थी । वह बड़े साधारण दिखने वाली हिला थी,  वह अपने मीठी जबान से और बनारसी साड़ियों की काफी जानकारी होने से वह लोगों को अपनी दुकान की तरफ …

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दिल की बात -पूनम झा

साहित्‍य सरोज साप्‍ताहिक लेखन व चित्र प्रतियोगिता फोटो अखंड गहमरी

जब कभी अकेले बैठते हैं हम,मन के पिटारे खोल लेते हैं हम,हर पिटारे का अलग ही रंग होता है,सबका ही अलग-अलग ढंग होता है,कुछ जाने-पहचाने,कुछ अनजाने से होते हैं,जाने-पहचाने तो अब बेगाने से लगते हैं,अनजानों का बोल-बाला है,खुला जैसे उसका ही ताला है,मन को भी बतियाते सुनते हैं,पिटारे भी कुछ ऐसे कहते हैं,एक पिटारे से…कितने मासूम थे तुम,अपनों को अपना समझते थे जो तुम, दूसरे पिटारे से….मासूम …

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बनारसी साड़ी- यशोधरा

कमलेश द्विवेदी लेखन प्रतियोगिता -02 कहानी शीर्षक – बनारसी साड़ी। शब्द सीमा – 500 शब्‍द चारों ओर उदासी और अवसाद…सब कुछ बिखरा-बिखरा… मेरे  जीवन की तरह।   बालों को एक जूड़े में समेटने की असफल सी कोशिश कर,अनमनी सी कमरे को कुछ व्यवस्थित करने में जुट गई।फैले हुए कपड़े तहा कर,रखने के लिए अलमारी खोली तो साड़ियों के ढेर में सबसे …

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बनारसी साड़ी -डॉ. वर्षा

कमलेश द्विवेदी लेखन प्रतियोगिता -02 कहानी शीर्षक – बनारसी साड़ी। शब्द सीमा – 500 शब्‍द यूं तो विवाह वर्षगांठ तारीख के अनुसार मनाना चाहिए ,परंतु करवा चौथ के दिन ही इस घर में ब्याह के आई थी तो भला इस दिन से शुभ कौन सी तिथि होगी परिणय दिवस मनाने की। बड़ी ही मुश्किल परिस्थितियों में हुआ था हमारा विवाह …

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जब मैं छोटी बच्‍ची थी- अलका

कमलेश द्विवेदी लेखन प्रतियोगिता -02 लेख-आलेख विषय- जब मैं छोटा बच्‍चा था (संस्‍मरण) शब्द सीमा (700-1000) कभी-कभी बचपन की कुछ घटनाएं मानस पटल पर कुछ इस तरह अंकित हो जाती हैं कि लाख चाहो,परंतु इसकी स्मृति धूमिल नहीं होती। ऐसी ही एक घटना मेरी भी स्मृति में वो रात एक चमगादड़ की तरह चिपक कर रह गई है। यह घटना …

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दिल की बात-अलका

साहित्‍य सरोज साप्‍ताहिक लेखन व चित्र प्रतियोगिता

कमलेश द्विवेदी काव्‍य प्रतियोगिता -02 रचना शीर्षक – दिल की बात। किसी को आदत बनाने से डरते हैं।देखा है हाल इश्क वालों का,इसीलिए इस गली से बचकर गुज़रते हैं ।किसी को अपना बनाने से डरते हैं।।देखा है हाल……..है फ़रेब ये दुनियां, फ़रेबी लोग यहाँ,सजा कर सपना,बनाकर अपना, फिर देखो कैसे वो मुकरते हैं ।इसीलिए किसी को अपना बनाने से डरते …

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बनारसी साड़ी -अलका

कमलेश द्विवेदी लेखन प्रतियोगिता -02 कहानी शीर्षक – बनारसी साड़ी। शब्द सीमा – 500 शब्‍द बरसात के बाद, एक दिन सागर की मां ने अच्छी धूप निकलती देख अपने पुराने बक्सों को धूप दिखाने के लिए लाइन से छत पर खोल खोल कर रख दिए। तभी सागर को न जाने क्या हुआ उसने मां की साड़ियों के बीच से एक …

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