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गुप्तकथा-गोपालराम गहमरी

गोपालराम गहमरी साहित्‍य महोत्‍सव गहमर की यादें

पहली झाँकी जासूसी जान पहचान भी एक निराले ही ढंग की होती है। हैदर चिराग अली नाम के एक धनी मुसलमान सौदागर का बेटा था। उससे जासूस की गहरी मिताई थी। उमर में जासूस से हैदर चार पाँच बरस कम ही होगा, लेकिन शरीर से दोनों एक ही उमर के दीखते थे। मुसलमान होने पर भी हैदर जैसे और मुसलमान …

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राजा रामपाल-गोपालराम गहमरी

गोपालराम गहमरी साहित्‍य महोत्‍सव गहमर की यादें

  राजा रामपाल सिंह हिन्दी के प्रमियों मे थे। उन्होंने विलायत में 14 वर्ष प्रवास किया था। वहां से हिन्दी और अंगरेजी में एक साप्ताहिक पत्रा ‘हिन्दोस्थान’ निकालते थे। आपने स्वदेश लौटकर हिन्दी में पहले पहल ‘ हिन्दोस्थान’ दैनिक निकाला था उसके पहले कानपुर से ‘भारतोदय’ कुछ दिनों तक उदय होकर अस्त हो गया था। स्थायी रूप से कालाकांकर ‘हिन्दोस्थान’ …

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होली का सपना -गोपालराम गहमरी

आज आंखें क्या लगीं, होनहार ही होनहार दिखाई देने लगा। ठीक जैसे पुराने जमाने का रसांजन या सिद्धांजन लगाने से धरती के गड़े खजाने लोगांे को दिखाई देते थे। वैसे ही आज नींद ने मेरी आंखें क्या बंद की, मानो होनहार देखने के लिए ज्ञान की भीतरी आंखें खोल दी। देखा तो मोटे-मोटे सोने के चिकचिकाते अक्षरों से आसमान उज्जवज …

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मैं पिंकी हूँ

मैं पिंकी हूँ

मैं एक मध्यमवर्गीय संयुक्त परिवार में पैदा हुई,  पिताजी तीन भाई थे । भाइयों में सबसे बड़े हमारे ही पिता जी थे जो पेशे से होमगार्ड और किसान थे । मैं उनकी पहली संतान थी ।  सबसे बड़े होने के नाते मुझे बहुत जल्दी जिम्मेदारियों का एहसास करा दिया गया । कहीं ना कहीं ईश्वर ने मुझे जिम्मेदारियां उठाने की शक्ति पहले …

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चिराग तले अंधेरा -मिन्नी मिश्रा

रात होने वाली थी।झुग्गी में रहने वाले दीपक की नजरें बार बार सामने  खड़े आलीशान बंगले पर जाकर चिपक जाती। वाह!कितने अमीर हैं ये लोग ,भाग्य के धनी भी! सब कुछ है इनके पास।वह बंगला रंग-बिरंगी चाइनीज लड़ी से सजकर  जगमगा रहा था! अनारदाने और रॉकेट की तेज रोशनी बंगले की चाहरदीवारी से निकल कर उसकी आँखों को चौंधिया रही …

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बच्चों का बचपन -कुमकुम

*आधुनिक युग में अति महत्वाकांक्षा की  भेंट चढ़ गया है बच्चों का बचपन* परिवर्तन सृष्टि का अटूट नियम है।वक्त के साथ हर चीज बदलती है परंतु विगत दो से तीन दशकों में बदलाव की रफ्तार बहुत तेज हो गई है।यह बदलाव कई बार हमारे जीवन में उथल-पुथल भी ला रही है।आज जब हम अपने बचपन के दिनों को याद करते …

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राजा पास हो गया -सुधा भार्गव 

एक राजा था बड़ा ही चतुर ! अक्सर वह रात में प्रजा के हालचाल जानने को अकेला ही निकल पड़ता लेकिन भेष बदलकर। भेष बदलने में भी  बड़ा  कुशल! कभी ग्वाला बन कर जाता  तो कभी चूड़ियाँ बेचने का स्वांग रचता। भरे बाजार में आवाज लगाने लगता -दूध ले लो –दूध !चूड़ियाँ ले लो –रंग बिरंगी चूड़ियाँ!  इससे राजा की पांचों …

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वो अब भी याद आती है-यशोदा

वो अब भी याद आती है

बार-बार करवटें बदलती रही  पर सीने का दर्द था कि बेचैनी संग बढ़ता ही जा रहा था। चेहरा दर्द से सफेद हो गया और आवाज गले में ही जम गई। सर्द निगाहें खिड़की से झाँकते नीम की फुनगी पर टंँगे चाँद पर पड़ी। चाहे-अनचाहे,जाने-अनजाने उसे चाँद को देखना अच्छा नहीं लगा और उसके मुँह से निकल ही गया ” चाँद …

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मुक्तावकाश-डा बबीता गुप्‍ता

गणतंत्र दिवस की परेड में  सभी दूरदर्शन पर, परेड में मिताली की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे थे तभी मिताली को सलामी करते हुये, लगभग सौ पुरुषों के दल का कुशलता से संचालन हुये जैसे ही दूरदर्शन पर दिखाई दी,तो उसका दस साल का बेटा,हिमांशु खुशी से ताली बजाते हुये कहने लगा,’देखिए दादाजी,मम्मी, पापा जैसी ड्रेस पहने हुये सलाम कर …

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समन्वय की भाषा है हिंदी -सत्येन्द्र कुमार पाठक

विश्व हिंदी दिवस 10 जनवरी के अवसर पर   भारत की आत्मा  हिंदी देश के भूभागों में वृहद् स्तर पर बोली जाती है। देश की राजभाषा के रूप में स्थापित हिंदी ने देश के विभिन राज्यों के बीच महत्वपूर्ण सेतु के रूप में कार्य किया है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान  देश के सभी भूभाग के निवासियों को एक साथ लाकर स्वतंत्रता …

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