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अवध ओझा की हार और भारतीय राजनीति- अखंड गहमरी

अखंड गहमरी

अवध ओझा का उत्तर प्रदेश के गोंडा के रहने वाले हैं। आज अवध ओझा सर के नाम से प्रसिद्ध अवध ओझा एक शिक्षक ही नहीं एक बहुत अच्‍छे मार्ग-दर्शक हैं। उनके पढ़ाने का अंदाज बिल्‍कुल अलग होता है । उनका अंदाज ठीक वैसे होता है जैसे कि परिवार का कोई मुखिया आँगन में बैठा कर अपने लोगों को मजेदार वाक्‍या सुनाता हो।
दिल्‍ली विधान सभा में उन्‍होनें ने अध्‍यापक के साथ-साथ एक राजनेता की नई भूमिका की शुरूआत किया। झूठे वादें, शराब-शबाब और पैसों के लेन-देन, छल-कपट से दूर सादगी से अपना प्रचार किया। चुनाव लड़े और हार 28 हजार वोटो से चुनाव हार गये। हार जीत तो चलती रहती है। लेकिन क्‍या यह भारतीय लोकत्रंत व्‍यवस्‍था के लिए एक सुखद संकेत है? मुझे तो नही लगता है कि यह भारतीय लोकतंत्र के लिए एक सुखद संकेत है। आज भारत में एक हाथ की अंगुली पर गिने हुए ही ऐसे मंत्री और कुछ दर्जन ही ऐसे सांसद-विधायक है जिन्‍हें अपने अधिकारों का पता हो। आईएस लॉवी जो उनको समझायेगी वह उसी को समझ कर चल देगें। न उन्‍हें अर्थव्‍यवस्‍था का ज्ञान, न भौगोलिक स्थित का ज्ञान, न अपने क्षेत्र की समस्‍या का ज्ञान। वह तो बस पी0एम0, सी0एम0 के चेहरे पर चुनाव जीत कर भारतीय वी0आई0पी0 कल्‍चर का हिस्‍सा बन गये।
ऐसे में अवध ओझा जैसे पढ़े लिखे लोग जो किताबों को समझते हैं, बोलते है जब हमारे विधान सभा या लोक सभा में जायेगें तो वह जनता की बात तर्क और संविधान के साथ उठायेगें। उन्‍हें बातों में बरगलाया नहीं जा सकेगा। आज भ्रष्‍टाचार और अज्ञानता का रोना रोने वाली जानता मनोज तिवारी, निरहूॅ, पवन सिंह, विजय यादव, और न जाने किस किस नचनीया-गवैया को तो वोट देकर अपना सिरमौर बना देती हैं। मगर जब बात किसी पढ़े लिखे उम्‍मीद्वार की आती है तो वही जनता उसमें दल और राजनीति देखने लगती है और बाद में शिकायत करती है कि हमारे जनप्रतिनिधि ने कुछ किया नहीं। और यह बात तब अधिक सलाती है जब दिल्‍ली के पटपटगंज जैसे ईलाके जहॉं लोग शिक्षित और सम्‍पन्‍न हैं। यह जानते हुए भी यदि विधायक जानकार और मंत्री अनपढ़ भी है तो मंत्री के कलम पर सवार होकर विधायक अपने क्षेत्र के लोगों के लिए मनमाना कार्य करा लेगा क्‍योंकि शिक्षा में बहुत ताकत होती है।
अवध ओझा ने जिस प्रकार अपने हाथ की नैतिक जिम्‍मेदारी लेते हुए अपनी असफलता पर कहा कि सपनों को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी और कभी हार नहीं मानना होगा।जीवन में सफलता पाने के लिए आपको अपने लक्ष्यों पर ध्यान देना होगा।खुद के मन और तन को ताकतवर बनाओ, जिंदगी की लड़ाई में तुम्हें यही जीत दिलाएगी।इस दुनिया में जो आया है, उस हर व्यक्ति को संघर्ष करना है, जो हंसकर करेगा वो राजा बनेगा।
अवध ओझा ने अपनी भी हार को गंभीरता से लिया है और फिर से एक बार हार न मानने की ठानी है. वह पटपड़गंज सीट से हारे तो उन्होंने कहा, ‘ये मेरी व्यक्तिगत हार है. मैं लोगों से कनेक्ट नहीं कर पाया. मेरे पास कम समय था. एक महीने में मैं जितने लोगों से कनेक्ट कर पाया, उतना वोट ही मुझे मिला, तो ये मेरी व्यक्तिगत हार है. इसकी मैं खुद जिम्मेदारी ले रहा हूं. अब फिर लोगों से मिलूंगा और अगला विधानसभा चुनाव फिर पटपड़गंज से ही लड़ूंगा। यह बताता है कि एक शिक्षित नेता और एक किसी के नाम पर यू ही लड़ने वाले नेता में कितना अंतर होता है।
आज सोशलमीडिया पर  दो कौड़ी के आई0टी0सेल के ज्ञान को परोसने वाले जिन्‍हें अपने खानदान के बारे में पूरी जानकारी न हो अवध ओझा पर तरह-तरह के कमेंट और पोस्‍ट लिख रहे हैं। कोई लिख रहा है कि 30 सेकेंड के रील और रीयल में अन्‍तर होता है तो कोई केजरीवाल का चमचा, तो कोई साफ ओझा का बोझा लिख रहा है।  तो कोई लिख रहा है कि राजा नहीं बन पायेगें सर। अवध राजा भले नहीं बन पाये लेकिन न जाने कितने राजा वह तैयार कर चुके है। वह 30 सेकेंन्‍ड का जो रील है न वह न जाने कितनो को रीयल हीरो बना दिया। उन दो कौड़ी के सोशमीडिया पर उल्‍टी करने वालो को पता ही नहीं है कि वह एक शिक्षक हैं, उनके आगे खड़े होकर बात करना तो दूर उनके आगे उनकी मुंह खोलने की औकात नहीं है। उस शख्‍़स के आगे आज न जाने कितने आईएस, पीसीएस नतमस्‍तक होकर खड़े रहते है। क्‍योकि उसके दिये ज्ञान के बदौलत ही वह संसार की सबसे कठिन परीक्षा को पास कर आज कंधे पर स्‍टार लगाये है। कुमार विश्‍वास बिल्‍कुल सत्‍य कहते हैं कि आज कल वाटस्‍एप पर सुबह सुबह शौचालय में बैठ कर मोबाइल को स्‍क्रोल करते हुए जो मैसेज पढ़ा और फारवर्ड किया जाता है वह उसी शौच के तरह ही होता है।
मुझे याद आती है अनिल कपूर की एक फिल्‍म नायक, जिसमें परेश रावल का एक डॉयलाग जिसमें उसने कहा था कि भारतीय राजनीति को गटर तो सब कहता है लेकिन उस गटर को साफ करने के लिए उसमें कोई उतरना नहीं चाहता। अवध ओझा उसी लोगों में एक हैं जो उस गटर में उतर कर गटर को साफ करने का प्रयास किये।
अवध ओझा की हार के लिए भी मैं उन्‍हें शुभकामना देता हूँ कि कम से कम उत्‍तर प्रदेश के एक गोड़ा जैसे पिछड़े जिले से पोस्‍ट मास्‍टर पिता और वकील माता की संतान जो  इतिहास विषय में विशेषज्ञता के साथ अपना टीचिंग करियर शुरू किया। जिसके पास हिंदी साहित्य में एमए, एलएलबी, एमफिल और पीएचडी सहित कई शैक्षणिक योग्यताएं हैं दिल्‍ली पहुँच कर राजनीति में व्‍याप्‍त गंदगी को साफ करने के लिए गटर में तो उतरा। आज नही तो कल वह अपने उद्वेश्‍य में सफल होगा ही क्‍योंकि सरस्‍वती पुत्र देर से आते हैं लेकिन मैली गंगा को साफ कर जाते हैं। भारतीय राजनीति जरूर वह समय आयेगा जब पढ़े लिखे ही लोग चुन कर राज्‍य एवं देश की पंचायत में पहुँचेगें।
*अखंड प्रताप सिंह, अखंड गहमरी*
संपादक साहित्‍य सरोज
9451647845

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