बच्‍चों का मोबाइल प्रयोग- लक्ष्‍मी

हिन्‍दी दिवस प्रतियोगिता- नौनिहालों के हाथों में पुस्तक की जगह मोबाइल।

शिक्षा जहां देश विकसित वहां हमारा आने वाला कल आज की युवा पीढ़ी पर निर्भर करता है। आज के बच्चे कल का भविष्य है।बच्चो का मन स्वभाविक रूप से बहुत चंचल होता है।जैसा हम उनको करने के लिए बोलते हैं या करवाते हैं वैसा ही बच्चे सीखते हैं। बच्चो के हाथों में पुस्तक की जगह मोबाइल होना ये हमारे देश के लिए बहुत बड़ा सवाल बन चुका है। और इसका सबसे बड़ा कारण है बच्चो के अभिभावक। बच्चो का रोना, चिड़ना जिद करना ये स्वभाविक है  बच्चो की इन्हीं हरकतों को देख कर उनके माता, पिता उनको खुश करने के लिए उनके हाथ में मोबाइल थमा देते हैं। ताकि वो खुश हो जाए, लेकिन उनको ये ज्ञात नहीं रहता कि हमारा इस तरह बच्चो को खुश करना उनके भविष्य के लिए कितना घातक सिद्ध होगा। तो इसका सबसे बड़ा कारण अभिभावक और उनका आचरण है।
निवारण- नौनिहालों के हाथों में पुस्तक की जगह मोबाइल का होना इसका कारण भी परिवार के लोग ही है और इसका सबसे बड़ा निवारण भि बच्चो के अभिभाक ही है। समय परिवर्तन के चलते हुए अभिभावक बच्चों को टाइम नहीं दे पाते हैं, इसका निवारण हम पूरी तरह से तो नहीं कर सकते लेकिन बच्चो पर मोबाइल से होने वाले कुप्रभावों को रोक सकते हैं। इसके कही सारे उदाहरण हैं। जैसे बच्चो की बाते सुनना और उनको समझना। उन्हें वक़्त देना।उनको महापुरुषों की कहानियां सुनाना।बच्चो का मन जिज्ञासु प्रवृत्ति का होता है इस लिए उन्हें ऐसी चीजों से अवगत करवाना जिनको देख कर उन्हें आंनद की अनुभूती हो और वो अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सके।
लाभ -मोबाइल चीज बुरी नहीं है। इसको केसे इस्तेमाल किया जाए ये हम और बच्चो पर निर्भर करता है। इसके लाभ की बात करे तो कहीं सारे है। जैसे, इसके द्वारा बच्चा पूरी दुनिया से जुड़ कर गर बेटे हर जानकारी प्राप्त कर सकता है। ऑन लाइन पड़ना लिखना, ऑन लाइन पेमैंट, बिजली बिल भरना, खरीदारी सब कुछ इंटरनेट के जरिए गर बेटे आसानी से कर सकते हैं।

हानि-मोबाइल जितना लाभ देता है उसका दुरुपयोग उतना ही घातक है। इससे कहीं सारे बच्चों के लिए नुकसान है।इसका बच्चो की मानसिक और शारीरिक क्रिया पर भारी दुष्प्रभाव पड़ता है। जादा तर युवा वर्ग इसका शिकार होता है। वह अपनी   बदलती शारीरिक क्रिया की वजन से उनके मन में कही सारे सवाल उठते हैं। उनको सही गलत की समझ नहीं होती वो जो करते हैं उन्हें वहीं सही लगता है। कुछ बच्चे मोबाइल का इस्तेमाल इस तरह करते हैं कि गन्दी मूवी, कहानियां, रील, और फोटो, देखने लग जाते हैं जिससे उनका शारीरिक और मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है। और कही सारी बीमारियों के शिकार हो जाते हैं।और कभी कभार बच्चो के हाथों कोई फ्रॉड हो जाना या कुछ ऐसी चीजे वायरल होना जिससे बच्चो के मन में भय पैदा हो जाता है। कुछ गलत होने के बाद बच्चे भयभीत होते हैं और वहीं भय उनको गलत कदम उठाने को मजबूर करते हैं। और इसका सबसे बड़ा कारण है मोबाइल।
मोबाइल की वजह से हमारे पौराणिक खेलों का पतन होता जा रहा है। जैसे गूली डंडा, कंचा, सितोलिया ये अब बहुत कम देखने को मिलते हैं। इन खेलों से बच्चो का मन पूरे दिन प्रफुल्लित हो उठता था। और बचे प्रसन्न रहते थे।ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि बच्चो को मोबाइल से बिल्कुल भी दूर रखा जाए क्यू की आज के समय को देखते हुए मोबाइल भी जरूरी है। लेकिन हर अभिभावक की जीमेदारी होती हैं कि वो अपने बच्चो के भविष्य का सोचे और उनको भी अपना समय दे। युवा बच्चा जितना शिक्षित होगा।भारत उतना ही जल्दी विकसित होगा। हमे इस प्रतियोगता की जानकारी साकेत साहित्य संस्थान समूह से प्राप्त हुई।

लक्ष्मी लोहार।
राजसमन्द।
खमनोर।(sloda ka kheda) 

 

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