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बच्चों में बढ़ती अवसाद की भावना-सीमा रानी

आज के समय में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर चिंताएं दिनों दिन बढ़ती जा रही हैं। बच्चों पर जरूरत से ज्यादा पढ़ाई का दबाव बढ़ता जा रहा है , माता-पिता की अपेक्षाएं भी बच्चों से बढ़ती जा रही है। सामाजिक प्रतिस्पर्धा की भी वही स्थिति है और तकनीकी युग में बढ़ता स्क्रीन टाइम बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं। इन सब कारणों की वजह से बच्चों में अवसाद की भावना तेजी से बढ़ रही है।इसके बहुत से कारण हो सकते है :-
1.पढ़ाई का दवाब -वर्तमान शिक्षा प्रणाली में बच्चों पर अच्छे अंक लाने और प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल होने का भारी दबाव होता है। परिवार और समाज मानसिक रूप से इतने प्रताड़ित करते है कि तुम्हें नम्बर एक पर आना है,इससे उनमें आत्मविश्वास की कमी और असफलता का डर पैदा होता है।
2.पारिवारिक तनाव:-एकल परिवार होने के कारण माता-पिता के बीच काम और पैसे को लेकर तनाव, तलाक की बढ़ती समस्या , या परिवार में आर्थिक समस्याएं बच्चों को गहरे मानसिक आघात दे सकती हैं।
3.सामाजिक प्रतिस्पर्धा :-स्कूलों और समाज में बच्चों को दूसरों से तुलना का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा, इसके अलावा साइबर बुलिंग भी बच्चों को मानसिक रूप से कमजोर बना रही है।
4.तकनीकी युग का प्रभाव:-मोबाइल का बढ़ता प्रकोप , वीडियो गेम, और सोशल मीडिया का अधिक उपयोग बच्चों को वास्तविक दुनिया से काट रहा है। इससे उनमें अकेलापन और असुरक्षा की भावना विकसित होती जा रही है।
            जिसके कारण बच्चे परिवार से कटकर अकेले रहना पसंद करने लगे है।किसी भी कार्य में वे रुचि नहीं लेते है।बच्चों में चिड़चिड़ापन और गुस्सा बढ़ता जा रहा है।रात -रात भर जागकर उन्हें दोस्तों से चैटिंग करनी होती है, जिसके कारण उनमें नींद की समस्याएं उत्पन्न होती जा रही है।कोई रूटीन नहीं होने की वज़ह से पढ़ाई में प्रदर्शन खराब होता है।छोटी -छोटी बातों को लेकर उनमें आत्महत्या के विचार आना,ये सब अवसाद के हीं कारण है।
           इन सबसे बचने के लिये सर्वप्रथम माता-पिता की भूमिका अहम है।माता-पिता को चाहिए कि वो बच्चों के साथ समय बिताये और उनकी समस्याओं को समझने की कोशिश करे। उन्हें बच्चों पर किसी बात के लिये अत्यधिक दबाव नहीं डालना चाहिए। शिक्षक का भी बच्चों के प्रति कुछ कर्तव्य है।स्कूलों और समाज में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता बढ़ाई जानी चाहिए। बच्चों को भावनात्मक समर्थन देने के लिए स्कूल में काउंसलिंग सेवाएं उपलब्ध करानी चाहिए।  आजकल के बच्चे, जो सोशल मीडिया से बहुत ही जुड़ गए हैं, उन्हें शारीरिक गतिविधियों, जैसे -योग, और ध्यान में शामिल करना चाहिए। यह सब उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हो सकता है।बच्चों के स्क्रीन टाइम को सीमित करना होगा और उन्हें रचनात्मक गतिविधियों में शामिल करना महत्वपूर्ण होगा।बच्चों में बढ़ता अवसाद एक गंभीर समस्या है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इसके समाधान के लिए परिवार, स्कूल, और हम सबको को मिलकर काम करना होगा। बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए, ताकि वे एक खुशहाल और संतुलित जीवन जी सकें और उनमें अवसाद की भावना विकसित ना हो सके।
सीमा रानी 
शिवपुरी 
 पटना

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