आज हमारे समाज में बदलता दौर एक ऐसी ओर इशारा कर रहा है जिसका परिणाम बहुत ही भयानक होने वाला है वह है कि हम सभी के बीच अपने सभ्यता का पतन बहुत ही रफ्तार से पनप रहा है अपने संस्कृति का हम मजाक बनाने में कोई भी कसर नहीं छोड़ रहे हैं ।इसके साथ ही दूसरों के सभ्यता को अपना कर उस सभ्यता में हम इतना खोते जा रहे हैं कि हमारी असलियत क्या है हमारी संस्कृति क्या है हमारा संस्कार क्या है वैदिक सभ्यता क्या है इन सबसे दूर होते जा रहे हैं?
इसका मूल्य कारण अगर उठाकर देखा जाए तो वह है हमारा परिवार हमारे अभिभावक हमारा समाज क्योंकि आज हमारा समाज हमारे लोग हमें उस संस्कृति से जोड़ना चाहते हैं जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं और हमें एक दूसरे का नकल कर प्रतियोगिता के लिए तैयार किया जा रहा है किताबी ज्ञान हमारे अंदर इतना भरा जा रहा है कि हमारे दिमाग में व्यावहारिक ज्ञान घूस ही नहीं रहा है बहुत ही कष्ट होता है हमारी पीढ़ियां हमें जब गाली देंगी कि हमने क्या किया हमने अपने संस्कृति का बचाव क्यों नहीं किया?
हम पश्चिमीकरण की ओर क्यों बढ़े हमारे अंदर की सोच वीरता अचानक कैसे विलुप्त हो गई क्या हम इसी भारत देश में है जहां हमारे ज्ञान और हमारे बौद्धिकता का मिसाल दिया जाता था किंतु आज क्या हो गया कि हम अगले का नकल करके स्वयं की बुद्धि नष्ट कर रहे हैं वैज्ञानिक करण होने से पहले ही हमारे संस्कृति में हर वो कार्य हो चुका है जो आज का विज्ञान कर रहा है हम और हमारा समाज एक ऐसी भयावह स्थिति को ग्रहण कर रहे हैं जिसमें हमारा भविष्य अंधकार में ही समाप्त हो जाएगा जब तक हमारे ऊपर हमारे संस्कृति का प्रकाश पड़ेगा तब तक हमारा विलोपन हो चुका होगा।
कहने का तात्पर्य है कि हम क्यों अपने वैदिक परंपरा ,अपनी भाषा, अपना पहनावा ,अपना खान-पान अपनी बौद्धिक स्थिति और अपनी संस्कृति पर शर्माने लगते हैं।
क्या इसके बिना हमारा जीवन आज सुरक्षित है क्या हमारे आने वाली पीढ़ियां हमारे संस्कृति के बिना अपने भविष्य का निर्माण कर पाएंगे यह सब सवाल हमारे दिमाग में आए दिन उमड़ता रहता है कि क्या होगा हमारा और हमारे बच्चों का क्योंकि जब हमें ही ज्ञान नहीं है तो हम अपने बच्चों को ज्ञान कैसे देंगे उन्हें भी अज्ञानता के गड्ढे में छोड़ने को विवश हो जाएंगे ऐसी बहुत सारी बातें हैं जो हमारे मन मस्तिष्क को हमेशा झकझोर रही है किंतु हम चाह के भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं।
क्यों इसका जवाब भी हमें खुद से प्राप्त करना होगा क्या हम इतना दुर्बल हो चुके हैं कि हम अपने ऊपर प्रतिबंध नहीं लगा पा रहे हैं? क्या हम दुश्मनों के चाल को नहीं समझ पा रहे हैं? क्या हम अपने संस्कृति को आगे बढ़ाने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं ऐसा नहीं है हम सब कुछ कर पाएंगे किंतु हमारे अंदर हमारे दिमाग में एक ऐसी क्षुद्र बुद्धि वाली भावना पनप रही है जो हमें आगे नहीं बढ़ने दे रही है जो हमें स्वयं का चेहरा पहचानने से रोक रही है इसका कारण है हमारे मन का अधिक चंचल होना हम किसी भी संस्कृति को इतना सम्मान देते हैं कि अपने ही संस्कृति का अपमान करने में कोई कसर नहीं छोड़ते यह हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि सारे लोग जानते हैं कि हमारी संस्कृति ही हमारा संस्कार है और उस संस्कार के तले हम अपने संस्कृति का अपमान करके अपने पूर्वजों का अपमान कर रहे हैं अपने देश का अपमान कर रहे हैं और स्वयं का अपमान कर रहे हैं।
यह अपमान तभी हम अपने अंदर से निकाल सकते हैं जब हम स्वयं के अस्तित्व को पहचाने और अपने हर पुराण , ग्रंथों का ज्ञान अर्जन करें जिसकी जरूरत हमें बहुत ही आवश्यक होता जा रहा है इसके अभाव में हम किसी के भी संस्कृति को अपना लेते हैं किसी के भी बहकावे में आकर उनके धर्म को अपना लेते हैं यह हमारी मूर्खता है क्योंकि हमें अपने वैदिक पुराण ग्रंथ का ज्ञान नहीं है हमने उसे कभी उठाकर पढ़ा ही नहीं उसे कभी समझना ही नहीं चाहा त्रेता युग, सतयुग, कलयुग ,द्वापर युग यह चारों युग नदी, जल ,सूर्य प्रकाश यह सब हमारे धर्म संस्कृति का प्रमाण है फिर भी हमें दूसरों के सभ्यता पर अभिमान है ।
यह तो हमारी मूर्खता का प्रदर्शन कर रहा है क्योंकि हम वह है जो हम ने साक्षात चांद सूरज नदिया पेड़ पौधे सभी को पूजा हैं।
और अनेक चमत्कारों से हमारे धर्म का उद्धार हुआ है इसलिए मैं बस इतना ही कहना चाहूंगी कि हमारे संस्कृति का पतन तो हमने बहुत किया क्या हम उसका जतन करने में सफल हो पाएंगे?
यह सवाल बार-बार मैं इसलिए कर रही हूं क्योंकि इस सच्चाई को जानते हुए भी सब अंजान बने हैं और इस अनजान पन से हमारी पीढ़ियां सदैव पीड़ित रहेगी मैं नहीं चाहती कि हमारी पीढ़ी हमारे संस्कृति के अभाव में अपने जीवन का आरंभ करें।अपने संस्कृति का जतन कौन करेगा? अपनों के लिए अब कौन लड़ेगा? लुका छिपी का खेल बहुत खेल लिया हमने
सभ्यता का पतन कर लिया तूमने अब तो हमें संभल कर चलना होगा बच जाए संस्कृति इसके लिए कुछ तो करना होगा।
ज्योति राघव सिंह
वाराणसी- ( उत्तर प्रदेश)
वर्तमान पता-लेह-लद्दाख
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