चिर चिर नूतन होए-मंजू भारद्वाज

lबात 1981 की है । विदाई का वक्त था।घर का माहौल बहुत भावुक था।सब की आँखें भरी हुई थी। पापा से गले लग कर मैं रो रही थी। पापा ने गले लगाते हुए भरे गले से कहा। ” बेटा सदा खुश रहना ” चिर चिर नूतन होए ” हमेशा इसे याद ही नही रखना बल्कि अपने जीवन मे उतारने की कोशिश करना । यही जीवन का गूढ़ मन्त्र है।”
पापा सदा से मेरे आदर्श रहे है।उनकी कही हर बात मेरे लिए अनमोल रही है । पर उनकी कही इस बात की गूढ़ता, इसका महत्व मुझे उस वक्त समझ नही आया । विवाह के वक्त मैं सत्तरह साल की थी, कुछ उम्र की मासूमियत थी तो कुछ अनुभव की कमी । पापा की कही बात का अर्थ मैं समझ नही पाई थी पर वो पंक्ति सुनने में बहुत अच्छी लगी थी । इसलिए मेरे जेहन में कहीं अंकित हो गयी थी । मैंने उसे डायरी में लिख लिया था । हर रोज अच्छी अच्छी साड़ी पहनना ,अच्छे से तैयार होना । मेरी समझ से शायद पापा के कहे शब्दों का यही अर्थ था । मैं भरे पूरे सम्पन्न परिवार में ब्याही गयी थी । ससुराल में बहुत लाड़ दुलाड़ ,औऱ सम्मान मिला । कुछ वर्ष तो पंख लगा कर उड़ गए ।कुछ वर्ष जिम्मेदारियों के भेंट चढ़ गए।धीरे -धीरे जीवन में एकरसता सी आने लगी थी । एक जैसी दिन चर्या के तहत हम ऊबने लगे थे । कपड़ों के साथ रंगत भी फीकी पड़ने लगी थी। ।कोई कुछ कहता हम चिढ़ जाते। न अच्छे से खाना बनाने की इक्छा होती, न कहीं जाने आने की इच्छा होती । बेमन से किया गया काम घर मे कलह का कारण बनने लगा था । पति से भी अक्सर तकरार हो जाती थी। बच्चे भी अक्सर मेरे गुस्से का शिकार हो जाते । मेरे अंदर का फ्रस्टेशन किसी न किसी सूरत में सब पर निकलता रहता । मैं सब से कटी कटी ,दूर दूर रहने लगी थी ।

यों तो धीरे- धीरे उम्र की सीढ़ियाँ चढ़ते-चढ़ते मैं समझदार होरही थी पर अपनी वर्तमान स्तिथि से कैसे उभरुं समझ नही पा रही थी। एक दिन पुरानी डायरी के पन्ने उलटते समय मेरी नजर एक पंक्ति पर अटक सी गयी । अचानक पापा की कही पंक्ति “चिर चिर नूतन होए ” मेरे अनुभव की चौखट पर दस्तक देने लगी। अब मैं उस पंक्ति में छिपे मन्तव्य को कुछ-कुछ समझने लगी थी पर हर दिन नया कैसे हो इस पर मेरे अंदर विचारों का मंथन शुरू हो गया । जीवन मे उत्साह की स्थिरता तभी सम्भव है जब जीवन जीने का कोई मकसद हो वरना जीवन मे उदासीनता का आना बहुत स्वभाविक है । तब नया क्या ,पुराना क्या सब बेमानी सा लगता है । जिम्मेदारियां तो हर मोड़ पर अपने होने का अहसास दिलाने आती रहेंगी पर इसमें दब कर दम तोड़ना तो जिंदगी नही हो सकती । मैने अपने अंदर को कुरेदना शुरू किया । मैं अपनी मरणासन अवस्था मे पड़ी रुचियों को जगाने की कोशिश की। अपनी प्रतिभाओं पर पड़ी धूल झाड़ने लगी । अपनी कला को फिर से जीवंत करने की कोशिश में जुट गई । मुझे डायरी पर पड़ी धूल झाड़ते-झाड़ते महसूस हुआ । मैं खुद को ही भूल गयी हूँ। मेरे अंदर सोई पड़ी इक्छा शक्ति फिर से अंगड़ाई लेने लगी थी। हर उलटते पन्नों में दबी खूबसूरत यादें उभरने लगी थी। मेरे अंदर ही अंदर बहुत कुछ बदलने लगा था । मैं कभी बहुत अच्छी डांसर हुआ करती थी। की स्टेज शो किया था मैंने। मेरे सामने मेरे द्वारा बनाये हस्त कला की खूबसूरत कलाकृतियों की तस्वीरें बिखरी पड़ी थी । मेरे सामने पुराने पेपरों की कटिंग भी मुझे याद दिलाने का प्रयास कर रही थी कि मैं कभी एक उम्दा राइटर थी। कहाँ खो गई थी मैं ,,,,,,,पति, बच्चे, सास ससुर ,अपने- परायों के बीच जिम्मेदारियों और फर्ज,के चक्रव्यूह में खो कर मैं अपनी पहचान भूल गयी थी। मैंने अपने प्रयासों को गति देने की कोशिश की । मैंने अपने घर के एक कमरे में अपना डांस इंस्चिउट खोला, उसमे बच्चों और बड़ों के लिए बहुत तरह की आर्ट एंड क्राफ्ट की क्लासेस भी शुरू की।
कुछ ही वक्त में कला की खुश्बू कला कारों तक पहुँचने लगी । अब हर दिन मेरे सामने एक नया चैलेंज होता और उसका सामना मैं नए जुनून से करती।अब कपड़ों में फिर से रंगत चढ़ने लगी थी।चेहरे पर विश्वास की चमक झलकने लगी थी। घर और बाहर दोनों जगह मैं बहुत व्यवस्थित होने लगी थी।
मेरे अंदर आये इस बदलाव से घर मे सब बहुत खुश थे। मेरी उदासीनता की वजह से मुझसे दूरी बनाए रखने वाले मेरे करीब आने लगे थे।अब मेरे पास हर दिन को नए उत्साह से जीने की वजह थी और यही उत्साह सबों को मेरे हर काम में नजर आने लगा था। रोज रात बहुत उत्साहित होकर मेरे पति मुझसे क्लासेस के विषय मे पूछते ,बच्चे भी इसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते। मेरे प्रति सबों की नजर बदल गयी थी और जिंदगी के प्रति मेरा नजरिया बदल गया था।
पापा के अनमोल कथन ने मेरी जिंदगी बदल दी। हमें हर दिन की शुरुआत ऐसे करनी चाहिए जैसे आज ही जिंदगी का पहला दिन हो और रात ऐसी हो मानो आज ही जीवन की अंतिम रात हो। हमें अपना हर दिन नए उत्साह ,नए जोश, नए संकल्प के साथ जीना चाहिए। तभी जिंदगी आनन्द और जोश से भरी रहेगी । एक खुशहाल इंसान , अपने परिवार को ,एक खुशहाल परिवार अपने समाज को ,एक खुशहाल समाज देश को खुशहाल बनाने में एक अहम भूमिका निभाता है अर्थात खुद को कभी छोटा न आँके और सदा चिर-चिर नूतन होयें इस मंत्र को याद रखें।

मंजू भारद्वाज कृष्णप्रिया
बंगलौर
91 9830453289

अपने विचार साझा करें

    About sahityasaroj1@gmail.com

    Check Also

    संस्मरण कथा-कुर्सी जिसने इतिहास बदला 

    यह कुर्सी भी अजीब होती है चाहे वह लकड़ी की बनी हो या लोहे की …

    Leave a Reply

    🩺 अपनी फिटनेस जांचें  |  ✍️ रचना ऑनलाइन भेजें  |  🧔‍♂️ BMI जांच फॉर्म