लेख-आलेख

अभिभावक  की महत्वाकांक्षा में खोता  बचपन-मनोरमापंत 

आज की दुनिया पूर्ण बनने के पीछे पागल है और इसी धुन में दुनियां अवसाद तथा दुःख से गुजर रही है । भारत  जैसे देश में  बच्चों को  पूर्ण बनने की धुन में  अभिभावक  उनका बचपन  स्याह  कर रहे हैं ।  जिससे  आत्महत्याओं  का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है। दुनियाभर  की आत्महत्याओं में भारतीय  किशोरों तथा  युवाओं  का 17.5 …

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न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा, हमारे पांव का कांटा हमीं से निकलेगा

न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा, हमारे पांव का कांटा हमीं से निकलेगा’ मक़बूल शायर राहत इंदौरी साहब की ग़ज़ल का यह मिसरा अपने आप में गहरे अर्थ समेटे बहुत कुछ कहता है।आस और उम्मीद एक ऐसा शब्द है जो इंसान को शिथिल और निष्क्रिय बनाता है। यही आस और उम्मीद जब हम दूसरों से बांध लेते हैं ।तो हम अपनी …

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हनुमान जन्मोत्सव पर सुंदरकांड विशेष-सोनल मंजू

       हिंदू पंचांग के अनुसार, हनुमान जन्मोत्सव हर वर्ष चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। इस वर्ष यह तिथि 23 अप्रैल को मनाई जाएगी। इस बार हनुमान जन्मोत्सव मंगलवार को पड़ने से यह और भी खास हो जाता है क्योंकि माना जाता कि हनुमान जी का अवतार दिवस मंगलवार ही था। इसीलिए मंगलवार को …

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भारतीय संस्कृति -हिंदी सिनेमा, बाजारवाद और नारी

नारी हमारे घर, परिवार, समाज, देश व दुनियां की वह धुरी है जिसके बगैर इस सृष्टि की कल्पना करना ही संभव नहीं है। ब्रह्मा जी अवश्य इस सृष्टि के रचयिता हैं किन्तु उनके लिए भी नारी के बिना इस सृष्टि की रचना कर पाना असंभव ही था। एक नारी ही है जिसे प्रकृति ने इतना सक्षम व सशक्त बनाया है …

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स्वच्छ रहो,निरोग रहो-डोली शाह

पूतनी गांव में पली- बढ़ी एक साधारण परिवार की इकलौती बेटी थी। उसका छरहरा वदन ,साधारण एवं सरल व्यवहार हर किसी को भाता था । मां के साथ ही सूरज की लालिमा के साथ उठने वाली पूतनी घर के हर काम को बखूबी करती, मगर हां घर की साफ- सफाई, सजाने- संवारने से उसका दूर-दूर तक कोई वास्ता न रहता।पूरा …

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महत्वाकांक्षाओं में खोता बचपन-अमिता मराठे

  वह छात्रावास में रहती थी। बहुत समझाने पर भी उसकी उदासीनता का कारण पता नहीं चल रहा था।अंत में वार्डन ने उसके पालकों को विद्यालय में बुलाया ।वह रो रही थी। बीच-बीच में आक्रोश भरी निगाहों से माँ को देख रही थी।”मेडम, ये मेरी माँ नहीं ,दुश्मन है।” सामने बैठी माँ फूट-फूट कर रोते हुए प्राचार्या से गुहार लगा रही …

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अभिभावक की महत्वाकांक्षा में खोता बचपन-सृष्टि

बच्चों का संसार जितना सहज है, उतना ही सरल भी। आज बच्चों की दुनिया पूरी तरह से बदली दिखती है। आज के युग के बच्चों का बचपन दादी-नानी की कहानी सुनकर नही, टीवी और मोबाइल के सामने गुज़रता है। बच्चों के लिए बनाए गए पार्क सूने पड़े हैं, आज कल के बच्चों की खासियत यह है कि उनका हर चीज़ …

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मुझे भी घर बसाना है-रोहित

भारतीय समाज में विवाह अत्यंत ही पवित्र रिश्ता माना जाता है, विवाह मनुष्य के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है, इसके बिना मनुष्य आधा अधूरा ही रहता है। कर्ई लोगो के सुखी दाम्पत्य जीवन को देख कर लगा कि अब मुझे भी विवाह के बंधन में बंध जाना चाहिए। पर मुझसे विवाह करेगा कौन ? एक तो उम्र 38 के पड़ाव पर …

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अभिभावक की महत्वाकांक्षा में खोता बचपन

बचपन मानव जीवन का सर्वश्रेष्ठ समय है। बचपन हर प्रकार की चिंता से कोसों दूर होता है। यह वह समय है, जब एक बालक या बालिका अपना जीवन बिना किसी छल-कपट, राग-द्वेष, ऊंच-नीच, बड़ा-छोटा सहित अन्य विरोधी भावनाओं से परे रहकर व्यतीत करता या करती है। बचपन एक व्यक्ति के समाजीकरण की शुरुआत का समय भी होता है। बच्चा अपने …

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राष्ट्र के सतत भविष्य का द्योतक हैं महिलाएं-डॉ. शंकर

नारी राष्ट्र का अभिमान है। नारी राष्ट्र की शान है। भारतीय परिवेश व परिधान की शोभा है नारी। नर से नारायण की कहावत को चरितार्थ करती है नारी। मानवता की मिशाल है नारी। महिला सशक्तिकरण से लैंगिक समानता का संचार होता है। महिला मानवता को धार देती है। नारी संघर्षों की कहानी है। प्यार और सम्मान की मूरत है नारी। …

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