कई न्यूज चैनल में 15 से 16 वर्ष की आयु से लेकर 18 से 20 वर्ष की आयु तक के कुछ लड़के वॉट्सऐप वगैरह के ग्रुप में नाबालिग लड़कियों के साथ बलात्कार करने जैसी बातें, नाबालिग लड़कियों के आपत्तिजनक फोटो और नाबालिग लड़कियों के आपत्तिजनक वीडियो शेयर करने के आरोप में पकड़े गए हैं। नाबालिग लड़कों के विरुद्ध नाबालिग कानून …
Read More »अति महत्त्वकांक्षा की भेंट चढ़ती ज़िंदगी-सीमा रानी
‘अति महत्त्वकांक्षा की भेंट चढ़ती ज़िंदगी’अपनी पहचान बनाने के लिए,सर पर एक जुनून होता है।निस्वार्थ जग कल्याण के लिए,महत्त्वकांक्षी व्यक्ति जीता है।‘महत्त्वकांक्षा’ का अर्थ- उन्नति करने की प्रबल इच्छा, बड़ा बनने की इच्छा है। प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन को लेकर कोईन कोई सपना देखता है। अधिकांश लोग केवल सपने ही देखते रह जाते हैं और करते कुछ नहीं। किंतु कुछ …
Read More »वर्तमान समय में हिंदू त्योहारों का बदलता स्वरूप
धन्य है वह देश, धन्य है वह प्रदेश, धन्य है वह धरती, और धन्य है वह भारतीय संस्कृति, जहा मानव को उच्च उदार और भगवत भक्त बनाने में सहायक व्रत और त्योहारों को अत्यधिक महत्व दिया जाता है। कालिदास ने उचित कहा है…. *उत्सव प्रिया: खलु मनुष्या:* सभी को उत्सव या त्योहार मनाना अच्छा लगता है …
Read More »पुस्तक चर्चा-कोणार्क
पुस्तक चर्चाकोणार्कडा संजीव कुमारइंडिया नेट बुक्स ,नोयडामूल्य १७५ रु , पृष्ठ ११६चर्चा … विवेक रंजन श्रीवास्तव , भोपाल कोणार्क पर हिन्दी साहित्य में बहुत कुछ लिखा गया है . कोणार्क मंदिर के इतिहास पर परिचयात्मक किताबें हैं . प्रतिभा राय का उपन्यास कोणार्क मैंने पढ़ा है . जगदीश चंद्र माथुर का नाटक “कोणार्क” भी है . स्फुट लेख और अनेक …
Read More »महत्वाकांक्षा की भेंट चढ़ गया है बच्चों का बचपन ‘
आधुनिक युग में अति महत्वाकांक्षा की भेंट चढ़ गया है बच्चों का बचपन ‘प्रतियोगिता लेखन सम्मानित बचपन अर्थात मौज-मस्ती, आमोद-प्रमोद, खेलकूद, नटखटपन, शरारत, चुहलबाजी ये ही तो सब हैं ना …? ये तभी संभव है जब बच्चों को उसका साथ मिले I ज्यादा ढीलाई या ज्यादा कसना दोनों नुकसान हीं करते हैं I फिर भी पढ़े-लिखे समझने वाले समाज ने …
Read More »बच्चों का बचपन -कुमकुम
*आधुनिक युग में अति महत्वाकांक्षा की भेंट चढ़ गया है बच्चों का बचपन* परिवर्तन सृष्टि का अटूट नियम है।वक्त के साथ हर चीज बदलती है परंतु विगत दो से तीन दशकों में बदलाव की रफ्तार बहुत तेज हो गई है।यह बदलाव कई बार हमारे जीवन में उथल-पुथल भी ला रही है।आज जब हम अपने बचपन के दिनों को याद करते …
Read More »समन्वय की भाषा है हिंदी -सत्येन्द्र कुमार पाठक
विश्व हिंदी दिवस 10 जनवरी के अवसर पर भारत की आत्मा हिंदी देश के भूभागों में वृहद् स्तर पर बोली जाती है। देश की राजभाषा के रूप में स्थापित हिंदी ने देश के विभिन राज्यों के बीच महत्वपूर्ण सेतु के रूप में कार्य किया है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान देश के सभी भूभाग के निवासियों को एक साथ लाकर स्वतंत्रता …
Read More »ऐतिहासिक मानव कला है मधुबनी पेंटिंग-सत्येन्द्र कुमार
कलात्मक उत्कृष्टता की सुदीर्घ परंपरा चित्रकला प्राक ऐतिहासिक मानव कला और मनोविनोद की गतिविधियां रही है । प्रागैतिहासिक चित्रकला उच्च पुरापाषाण काल 40000 से 10000 ई. पू. में मिश्रित गेरू का प्रयोग चित्र मानव आकृतियों , मध्य पाषाण काल 10000 से 4000 ई. पू . तक लाल रंग , ताम्र पाषाण काल 1000 ई.पू. में तथा भारतीय भित्तिचित्र 10 वीं …
Read More »बैंक वालों का वेलेंटाइन डे-जयप्रकाश
मेरे प्राणनाथ, वेलेंटाइन डे बीत गया और तुम बैंक में बीमा का टार्गेट करते रहे। वेलेंटाइन डे के इतने दिनों बाद तुम्हें पत्र इसलिए लिख रहीं हूँ ताकि तुम्हें आश्चर्य भी हो और खुशी भी हो कि इस बार हमने वेलेंटाइन डे एक दिन पहले तुम्हारी ब्लेक एंड व्हाइट तस्वीर के साथ इसलिए मना लिया था क्योंकि उसके पीछे …
Read More »भारतीय सिनेमा अब तक-कौशल
लूमियर ब्रदर्स, एक फ्रेचं आविष्कारक, प्रथम अन्वेषक, फोटोग्राफिक उपकरण के अग्रणी निर्माता, जिन्होंने एक प्रारंभिक कैमरा और प्रक्षेपण तैयार किया जिसे सिनेमैटोग्राफ कहते हैं l सिनेमा की उत्पत्ति सिनेमैटोग्राफ से हुई l 22 मार्च, 1895 को लूमियर ब्रदर्स ने अपनी डेब्यू /पहली शार्ट फ़िल्म “Workers Leaving the Lumière Factory” प्रदर्शित की और दुनियाँ बदल दी l इस फ़िल्म को व्यापक …
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