प्रतियोगिता

सुनो जवानों -डॉ.सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी

साहित्‍य सरोज साप्‍ताहिक प्रतियोगिता फोटाे अखंड गहमरी

सुनों  देश के  वीर जवानों , कर्मचारियों और किसानों । देश भक्ति भाव जो मन में , पहले  से भी  जादा  तानों ।। श्रमिक वर्ग और  व्यापारी , विकास धारा से  सारे जुड़े  । कन्धे से  कन्धा  मिलाकर , प्रगति  पथ पर  सभी मुड़ें ।। देश के बालक बालिकायें , विश्व  में  परचम  फहरायें । पहुॅंचा न  जहाॅं तक कोई …

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तुम से अच्छा कौन है-विनय बंसल

साहित्‍य सरोज साप्‍ताहिक लेखन व चित्र प्रतियोगिता

हमारे फेसबुक पेज को लाइक व फालो करें अपनी  धड़कन के झूले पर, तुमने मुझे झुलाया।पीड़ाओ को झेला, सहकर पल में उन्हें भुलाया।खुद गीले में सो कर मुझको सूखी सेज सुलाया।जाग जाग कर रात रात भर, अपनी गोद बिठाया।पाला पोषा मुझको तुमने, अपना दूध पिलाया।स्वयं भले भूखी रह जाती, मुझको मगर खिलाया।संस्कार दीन्हे अच्छे अरु अच्छा पाठ पढ़ाया।आन पड़ी हो …

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विकल आखर-रश्मि लहर 

साहित्‍य सरोज साप्‍ताहिक लेखन व चित्र प्रतियोगिता

अचानक एकनिर्वस्त्र सदी को देखफटने लगता हैस्तब्ध बादलों का मनबढ़ जाती हैरुग्ण वेदना की उलझनलहू चू पड़ता हैपीढ़ियों कीलहुलुहान ऑंखों सेबन्दी बने भावमाथा पीटने लगते हैंबेबसी की सलाखों से।सपनों के खेत मेंदहशत से भरी मिलती हैंकुछ अन-अकुवाई कल्पनाऍं।वर्तमान के कटीले पथ परदाॅंत भींचे टहलती रहती हैसभ्यता भाग्य रेखाओं को कुरेदती हुईविचलित हैंकुछ थरथराती उॅंगलियों की तटस्थता।यथार्थ के निस्तेज मुख परफैलती जा रही …

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मेरा नगर चाकसू- ललिता टाक

साहित्‍य सरोज साप्‍ताहिक लेखन व चित्र प्रतियोगिता

परिचय: मेरे गांव का नाम चाकसू है। जिसमें एक नगर पालिका ,एक तहसील है। चाकसू एक कस्बा है चाकसू भारत के राजस्थान राज्य के जयपुर जिले में स्थित एक नगर पालिका है। यह शहर जयपुर जिले के 13 तहसील मुख्यालयो में से एक है ।यह कस्बा जयपुर से कोटा राष्ट्रीय मार्ग संख्या 12 पर जयपुर से 40 किलोमीटर टोंक से  …

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इश्क का बुखार-दीपा टाक

साहित्‍य सरोज साप्‍ताहिक लेखन व चित्र प्रतियोगिता

हमारे फेसबुक पेज को लाइक व फालो करें दिव्या अभी-अभी रूम में पहुंची ही थी कि संजू मैम जो कि उनकी प्रिंसिपल थी उनका फोन आया उन्होंने कहा, दिव्या जी आपको कल सुबह जोधपुर सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग हेतु लाल मैदान पावटा स्कूल जाना है। दिव्या ने कहा,’ ओके मैम, थैंक यू हम सुबह पहली बस से पहुंच जाएंगे’ संजू …

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कन-कन में है वास तेरा-डॉ. इन्दु कुमारी

साहित्‍य सरोज साप्‍ताहिक लेखन व चित्र प्रतियोगिता

        हे जग के रचयिता स्वामी,कन कन में है बा स तेरा।तुम बिन हूं दुखियारी मैं,अब तो लगाओ पार मेरा। अब करा दे दीदार अपना,मछली जैसी है तरप मेरा।हे नाथ अपनी शरण लगा,कन कन में है वास तेरा। जैसे मेहंदी में छुपी लाली,जुगती से हाथों में सजती।जैसे घी रहते हैं दूध में ही,बिन युक्ति निकलते नाहीं। घट …

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हलवाहा- सतीश “बब्बा”

साहित्‍य सरोज साप्‍ताहिक लेखन व चित्र प्रतियोगिता

  कंधे पर,धरे हल ,किसान कहें,या हलवाहा! धरती की छाती,चीरता,धूप, वर्षा,जाड़ा सहता! गांव,किसान,मेहनत से,बना भारत! खो सा गया,अब वह गांव,किसान वाला,भारत! मेंड़ बांँधता,पसीने से,लथपथ,किसान!बैलों को,ललकारता,नंगे बदन,हलवाहा!थककर,चकनाचूर,हराई मारकर,बैलों को,सुस्ताने,के लिए,हल रोकता,और,खुद,बरगद के नीचे,महुए की छाया,या आम के,बगीचा में,जाकर,धूप से,बेहाल,छाया पाता है,तब के सुख,का वर्णन,वह खुद नहीं,कर पाया है! वह स्वर्गिक,सुख,अब छूट गया,श्रमेव जयते,का नारा,भूल गया! अब,मृगतृष्णा में,कूलर, पंखे,वातानुकूलक,से तमाम,बीमारियों,को,गले लगाकर,परेशान हैं!बूढ़े …

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दिल की बात -पूनम झा

साहित्‍य सरोज साप्‍ताहिक लेखन व चित्र प्रतियोगिता फोटो अखंड गहमरी

जब कभी अकेले बैठते हैं हम,मन के पिटारे खोल लेते हैं हम,हर पिटारे का अलग ही रंग होता है,सबका ही अलग-अलग ढंग होता है,कुछ जाने-पहचाने,कुछ अनजाने से होते हैं,जाने-पहचाने तो अब बेगाने से लगते हैं,अनजानों का बोल-बाला है,खुला जैसे उसका ही ताला है,मन को भी बतियाते सुनते हैं,पिटारे भी कुछ ऐसे कहते हैं,एक पिटारे से…कितने मासूम थे तुम,अपनों को अपना समझते थे जो तुम, दूसरे पिटारे से….मासूम …

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दिल की बात-अलका

साहित्‍य सरोज साप्‍ताहिक लेखन व चित्र प्रतियोगिता

कमलेश द्विवेदी काव्‍य प्रतियोगिता -02 रचना शीर्षक – दिल की बात। किसी को आदत बनाने से डरते हैं।देखा है हाल इश्क वालों का,इसीलिए इस गली से बचकर गुज़रते हैं ।किसी को अपना बनाने से डरते हैं।।देखा है हाल……..है फ़रेब ये दुनियां, फ़रेबी लोग यहाँ,सजा कर सपना,बनाकर अपना, फिर देखो कैसे वो मुकरते हैं ।इसीलिए किसी को अपना बनाने से डरते …

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डाॅ बिपिन पाण्डेय की कविताएं

साहित्‍य सरोज साप्‍ताहिक लेखन व चित्र प्रतियोगिता

करनी होगी जंग दहशत भरकर दुनिया में जो,करते हैं जीवन बेरंग।करनी होगी उनसे जंग।डाल  गले में  पट्टा  घूमें,लगता जैसे धर्म अफीम।गर्हित सोच बवंडर लाती,घूमें  बच्चे बने यतीम।जो मजहब की  पगड़ी बाँधे,चले न कोई उनके संग।वहशी लोगों के प्रति जिनकेउमड़ रहा है दिल में प्यार,ऐसे लोगों को नरता का,माना जाता है गद्दार।मिलकर उन्हें सिखाना होगादुनिया में रहने का ढंग।कोई गद्दी बचा …

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