इस वर्ष की गर्मी ने मेरे जीवन में एक विशेष स्थान बना लिया है। बचपन में गर्मी का मौसम अक्सर छुट्टियों और मौज-मस्ती का समय होता था। आइसक्रीम, आम के फल, और दादी के हाथ की बनी ठंडी खीर, ये सब चीजें गर्मी के दिनों को खुशनुमा बनाती थीं। परन्तु इस वर्ष की गर्मी ने कुछ अलग ही अनुभव कराए।जब …
Read More »पर्यावरण पर संस्मरण-विजय मिश्र
बात लगभग साठ वर्ष पहले की है।गर्मियों में तब से लेकर अब तक मैं अपने गाँव में ही रहता आया हूँ।मेरा बचपन गाँव में ही बीता है।मुझे वे दिन याद हैं जब मैं अपने सहपाठियों के साथ मिडिल स्कूल में पढ़ने के लिए पैदल जाया करता था।हम लोग गर्मी के मौसम में स्कूल जाने के लिए प्रातःकाल छः किलोमीटर की …
Read More »मदर-डे संस्मरण-आशा गुप्ता
उसका जन्म लेना भी जैसे कोई कयामत था। खबर सुनते ही पिताजी फट पड़े और खुशखबरी सुनाने वाली दाई को ही डांट दिया- “चुप कर…लड़की हुई है तो क्या करूं, ये भी कोई खुशी की बात है जो तुम्हें ईनाम दूं।…चल भाग यहां से।“ बेचारी क्या कहती, कुछ समझ ही ना पाई कि सेठ जी को अचानक क्या हो गया। …
Read More »मां पुत्र की नोक झोंक
बच्चों की शरारत बात कुछ पुरानी है। हमारी शादी को 6-7 वर्ष गुजर चुके थे हम संतान सुख से वंचित थे। डाक्टर, इलाज एवं आयुर्वेद से इलाज करा चुके थे धन अभाव के कारण इलाज रुक रुक कर चलता था इन वर्षों में श्रीमती जी सन्तान प्राप्ति हेतु बहुत व्याकुल रहती थी कभी उपवास, व्रत करती सोमवार पिले सोमवार, मंगलवार, …
Read More »वो रिक्शा-अवनीश
बहुत पुरानी याद आप के साथ बांटना चाहता हूँ, ये याद है बालपन की। ये बालपन भी अजीब है, रहता है हम सभी के अन्तर्मन में, बहुत सी भूली बिसरी व कुछ पत्थर की अमिट लकीर सी खिंची यादों के रूप में।अब तो मैं भी वरिष्ठ नागरिक की कैटेगरी में आ गया हूँ,दिखता भी वैसा ही हूँ, जब उम्र 65-70के …
Read More »बेदर्द दिल -पूजा
अभी हम हवन करके उठे थे हवन में मेरे साथ मेरे पति राकेश दोनों पुत्र लव एवं कुश भी बैठे थे। वह शांति हवन हमने बाबूजी के लिए रखा था। सभी रिश्तेदार मित्र एवं परिचित भी इस अवसर पर आए हुए थे। पूजन हवन के पश्चात भोज का आयोजन किया गया था। हलवाई अपने सहयोगियों के साथ पकवान खीर पूरी …
Read More »मेरा गांव और बचपन-मुकेश
“याद आता है वो बचपन वो खिलखिलाते हुए मासूम चेहरे, वो एक साइकिल पर दोस्तों के साथ लगते गलियों के फेरे।वो गांव का दृश्य हमें अब भी याद आता है और याद आते ही शहर की भागादौड़ी से दूर फिर से गांव चले जाने का मन बना जाता है।” राघव अपने ऑफिस से अभी अभी आया था और घर पर …
Read More »बच्चों का खोते बचपन और स्वास्थ्य का दुश्मन निजी स्कूल
बचपन के दिन भी क्या दिन थे, उड़ते फिरते तितली बन”… यह गीत तो हम सबने सुना ही है और खूब मन लगा कर गाते भी होंगे। कभी हमने सोचा है कि बचपन आखिर क्यों सबको इतना प्यारा होता है? हम क्यों अपने बचपन को छोड़ नहीं पाते? इसका जवाब होगा…..स्वतंत्रता, निश्चिंतता व अल्हड़पन, इन स्वभाव के साथ हम अपने …
Read More »“राजधानी का वो रिश्तों का सफर था-पूजा गुप्ता
बात उन दोनों की है जो मुझे दिल्ली से जम्मू के लिए अकेले सफर करना था मैंने राजधानी एक्सप्रेस की टिकट ली जिसका किराया पांच हजार रुपये था। जाना भी बेहद जरूरी था। घर की बेटी की शादी जो थी। फिर भी इतना महंगा रिजर्वेशन कराकर मैं राजधानी एक्सप्रेस में चढ़ गई। बेटा बाहर पढ़ता है वर्ना उसे लेकर मैं …
Read More »बेदर्द दिल-अखंड गहमरी
(सत्यकथा) अभी 18 साल उम्र भी पूरी नहीं किया था कि खेल कोटे से सीमा सड़क संगठन में सिपाही के पद पर तेजपुर असम में नौकरी लग गई। पूरा परिवार खुशियों से झूम गया। अभी नौकरी करते दो साल भी नहीं बीता कि रिश्तेदारों ने विवाह के लिए परेशान कर दिया। अन्त में पिता जी ने आनन-फानन में विवाह कर …
Read More »